पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५७९

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५६६ सतकाय गोस्वामी तुलसीदास का भी नाम लिया जाता है । ये एक प्रतिभा शाली व्यक्ति थे और इन्हें उर्दू एवं फारसी के अतिरिक्त गणित में एम ० ए० तक की शिक्षा मिली थी । इन्होंने कुछ दिनों तक अध्यापन कार्य कियाकिंतु कृष्ण की भवितगीलानुशीलन एवं बेदांतदर्शन की ओर इनका ध्यान क्रमशः अधिकाधिक आकृष्ट होता गया और इनके हृदय में ऐसे भाव जाग्रत होने लगे जिनके प्रभाव में आकर इन्होंने अपना जीवन बदल डाला। केवल २४ वर्ष की हो अवस्था में इन्होंने एक पत्र द्वारा अपने पिता को सूचित कर दिया कि आपका पुत्र अब राम के आगे बिक गया, उसका शरीर अब अपना नहीं रह गया" और हरिद्वार आदि की यात्रा कर ये १९५५ से आत्मानुभूति में मग्न हो गए । तब से ये सदा आत्मानंद की मस्ती में विभोर हो पर्यटन करने लगे और अपने भावों को व्यक्त करतेकरते अमेरिका और जापान तक हो आए। इन्होंने कोई संप्रदाय नहीं चलाया औरअंत में, सं• १९६३ की कार्तिकी अमावस्या के दिन, टिहरी के निकटइन्होंने जल समाधि लेली । J स्वामी रामतीर्थ में ‘ब्राहो स्थिति उपलब्ध की थी जिसकी झलक उनकी विविध रचनाओं में मिला करती है । वे सभी कुछ को आत्म- स्वरूप में ही देखते थे और अपनी प्रत्येक चेष्टा को भी उन्होंने पूर्णतः उसी रंग में रंग डाल था। । उनकी दशा कभीकभी भावोन्माद की कोटि तक पहुंच जाती थी, किंतु उनके विचारों में किसी प्रकार की विश्रखलता नहीं लक्षित होती थी अपनी मानसिक स्थिति का परिचय इन्होंने एक बार ‘(A state of balanced reck- 1essness) अथत 'संतुलित प्रमाद की अवस्था के द्वारा दिया था और उनकी आत्मानुभूति की अभिव्यक्ति विश्वकल्याण का लक्ष्य लेकर ही हुआ करती थी। उन्होंने धर्मकी व्याख्या भी वैसी ही की है जिससे वह। अपने चित्त की एक ‘बढ़ीचढ़ी अवस्था' ही सिद्ध होता है जिसमें विश्वात्मा सावित्री के