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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५८

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भूमिका

किसी में भी उक्त नियम का पालन किया गया जान नहीं पड़ता। ग्रंथ एक प्रकार से दोहों चौपाइयों के क्रमिक संग्रह मात्र का एक उदाहरण है, किंतु इन छंदों का क्रम भी किसी नियम के साथ वह बँधा हुआ नहीं दीख पड़ता। सिखों की मान्य पुस्तक 'आदिग्रंथ' के अंतर्गत 'असद पदीआ' नाम की कतिपय रचनाएँ गुरु नानक, गुरु अमरदास, गुरु रामदास तथा गुरु अर्जुन देव की कृतियों के रूप में आती हैं, जिनमें से कई एक आठ पद वाली नहीं हैं। गुरु अमरदास की एक रचना को 'असट पदी' नाम उसे औरों से पृथक करके दिया गया है जिसमें आठों पद वर्तमान हैं। संत हरिदास ने 'चालीसपदी योग', 'चतुर्दशपदी योग', 'तीसपदी योग' एवं 'बारहपदी योग' नामक इस प्रकार की चार रचनाएँ लिखी हैं जिनमें से पहली में ४१ द्विपदियाँ आती हैं और तीसरी में उनकी संख्या तीस की कही जा सकती है। किंतु, शेष के पदों के क्रमशः १४ एवं १२ होने पर भी उनकी पंक्तियों की संख्या में किसी नियम का पालन नहीं दीख पड़ता।

संतों की सांप्रदायिक रचनाओं में कतिपय 'गोष्ठियों' के भी नाम आते हैं जो प्रश्नोत्तरों के रूप में पायी जाती हैं। 'गोष्ठी' शब्द का अर्थ उसवार्त्तालाप से लिया जाता है जो ज्ञानवर्द्धन के उद्देश्य से किया गया होता है अथवा जो समान कोटि वाले व्यक्तियों में कुछ शंकाओं का समाधान कराने के लिए, पारस्परिक बातचीत के रूप में 'गोष्ठियों' की परंपरा कम से कम नाथ पंथी हुआ करता है। ऐसी 'जोगियों' के समय से चली आती है, जिनके लिए यह प्रसिद्ध है कि वे अपने योगबल द्वारा किन्हीं पूर्वपुरुषों की आत्माओं के भी साथ मिलकर वार्त्तालाप कर सकते थे और जिनके यहाँ वैसे लोग बहुधा ज्ञानवर्द्धन के लिए भी आया करते थे। ऐसी गोष्ठियों का एक दूसरा नाम 'बोध' भी पाया जाता है। वह विशेषकर किसी के शिष्य रूप में प्रश्न करने पर आरंभ होता। 'गोरख बानी' नामक संग्रह में 'गोरष गणेश गुष्टि', 'गोरष