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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५८४

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परिशिष्ट ५७१ अंडा भी दिया करती है जो पृथ्वी पर पहुंचने के पहले ही फूट जाता । और बच्चा उड़कर मां से मिल जाता है । इडा-मेरुदंड में वर्तमान वह योग नाड़ी जो उसकी बांयी ओर से उठकर सुषुम्ना में लिपटती हुई ऊपर की ओर चली जाती है और जो अंत में नाक की बांयीं ओर समाप्त होती है । इसको चंद्र नाड़ी अथवां गंगा नदी भी कहते हैं । उन्मन--उनमनी की वह दशा जिसमें चिस की वृत्तियां सदा परमारमतत्व में ही लगी रहती हैं। तमनस्फताअतिचेतना । कुंडलिनी--मूलाधार के निकट मेरुदंड के मूल में स्थित वह शक्ति जिसके विषय में कहा जाता है कि वह किसी सर्पिषो की भांति साढ़े तीन कुंडलों व लपेटों में सुप्तसी पड़ी रहती है और जो अंत : साधना द्वारा बुद्ध की जाती है 1 जागृत होने की दशा में वह सीवी होकर सुषुम्ना नाडी द्वारा प्रमशः ऊपर को अग्रसर होती है और ब्रह्मां रंधू के निकट पहुँच कर लीन हो जाती हैं उसकी इस अंतिम दशा को शक्ति का शिव के साथ मिल जाना कहा जाता है। उसका जागृत होना योगी की सिद्धि का परिचायक है । कुंवा-सहस्रदल कमल में स्थित उपयुक्त चंद्राकार विंदु जिसे ऑधा कुंआ' भी कहा जाता है । इसे ही अमृत कूप भी कहते हैं । कुंभक-प्राणायाम की वह संपक्रिया जिसमें प्राणों का संयमन हुआ रहता है । इसे कहींकहीं प्राणायाम का पर्याय भी माना गया गगन-—शरीर के भोतर का बह अकाशवत् अंतराल जिसमें ज्योति- सँय ब्रह्म का प्रकाश दीवता है और जहां से अनाहत की ध्वनि सुन 'पड़ती है । इस सो कभीकभी शून्य’ भी कहा करते हैं और इसके विभिन्न स्तरों की भी कल्पना की जाती है ।