दत्त गुष्टि', एवं 'महादेव-गोरष गुष्ठि', 'नाम की तीन गोष्ठियाँ उसके परिशिष्ट भाग में प्रकाशित है और 'मछींद्र गोरष बोध' उसके मूल भाग में है। इन सभी में प्रश्नोत्तरों के द्वारा नाथ पंथ की प्रमुख बातों का परिचय दिया गया है और पूछने वालों को कहने वाले से कुछ निम्न श्रेणी का प्रदर्शित किया गया है। कबीरपंथी साहित्य के अंतर्गत 'गोरपगोष्ठी' तथा 'रामानंद गोष्ठी' बहुत प्रसिद्ध हैं और 'लक्ष्मण- बोध', 'हनुमान बोध', 'मुहम्मद बोध', 'सुलतान बोध', 'भूपालबोध', 'गरुण-बोध', 'जग जीवन बोध' जैसे अनेक बोधग्रंथों का एक वृहद संग्रह उसके 'बोधसागर' में मिलता है। 'गोष्ठी' नाम का एक ग्रंथ 'दरिया साहब विहारी' तथा 'रामेश्वर जोगी' के वार्त्तालाप का पाया जाता है जो संभवतः काशी में हुआ था। संत तुलसी साहब की रचनाओं में ऐसी बातचीतों का नाम 'संवाद' पाया जाता है और उनकी 'घटरामायन', 'रत्नसागर', 'पद्मसागर' तथा फुटकर पदसंग्रह की पुस्तकों में वे एक अच्छी संख्या में दीख पड़ते हैं। 'गोष्ठियों' तथा 'बोधों' को 'ज्ञानगुष्टि' एवं 'आत्म बोध' जैसे नाम देने की भी प्रणाली देखी जाती है। वे अधिकतर एक विशेष विषय संबंध रखने वाले ग्रंथ हैं जो गुरु एवं शिष्यों के बीच की बातचीत के रूप में रहा करते हैं। ज्ञानगुष्टि का एक ऐसा उदाहरण 'गुलाल' साहेब कृत 'ज्ञानगुष्टि' है जो संत गुलाल साहब तथा उनके शिष्य भीखासाहब का वार्त्तालाप हूँ।'
संतों ने इसी प्रकार, 'बणजारा', 'व्याहलो', आदि से लेकर 'सहस्र-नाम' जैसी तक रचनाएं भी की है और उनकी व्यापार, यात्रा, वैवाहिक प्रसंग जैसी चर्चाओं के घटनात्मक आधार पर ही नहीं, अपितु केवल नामों के विवरणों द्वारा भी अपने विचारों को स्पष्ट करने की चेष्टाएँ की। अतएव, बावनी जैसे उपर्युक्त प्रकार के विविध ग्रंथों की रचना भी उन्होंने किसी साहित्यक प्रयास के रूप में नहीं की है।