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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/७

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और वाक्यांशों का अभिप्राय पूर्णतः स्पष्ट करते समय संतोष नहीं हो पाता। ऐसी कठिनाई विशेषतः वहाँ आ पड़ती है जहाँ पर पद्यों का पाठ यातो संदिग्ध रह गया है अथवा उनके रचयिताओं ने उनका बेतुके ढंग से प्रयोग कर दिया है और केवल थोड़ी ही असावधानी के कारण उनमें न्यूनाधिक जटिलता का समावेश हो गया है। ऐसी समस्या कभी- कभी उस समय भी आ उपस्थित होती है जब देशज शब्दों और मुहावरों के प्रयोग मिलते हैं और उनके समुचित ज्ञान का अभाव हमें, पद्यों में व्यक्त किये गए गंभीर भावों के अंतस्तल तक पहुँच पाने में, असमर्थ-सा बना देता है। ऐसे एकाध स्थल इस संग्रह के कतिपय पद्यों में भी दीख पड़ेंगे और उन पर दी गई टिप्पणी भी इसी कारण बहुत कुछ अनुमान पर ही आश्रित जान पड़ेगी। शब्दों एवं वाक्यांशों के अभिप्राय कहीं-कहीं उनके प्रतीकार्थों द्वारा भी स्पष्ट कर दिये गए हैं।

संत-परंपरा के अंतर्गत साधारणतः वे ही संत सम्मिलित किये जाते हैं जिन्होंने संत कबीर साहब अथवा उनके किसी अनुयायी को अपना पथ-प्रदर्शक माना है और उनमें ऐसे अन्य संतों की भी गणना कर ली जाती है जिन्होंने उनके द्वारा स्वीकृत सिद्धांतों को किसी न किसी रूप में अपनाया है। इसके सिवाय उसमें कभी-कभी वैसे महात्माओं को भी स्थान दिया जाता है जो, सूफ़ी, वेदांती सगुणोपासक भक्त, जैसी वा नाथपंथी समझे जाते हुए भी, अपने विचार-स्वातंत्र्य एवं निरपेक्ष व्यवहार के कारण संतक्त माने जाते रहे हैं। इस संग्रह में ऐसे सभी प्रकार के संतों की कुछ न कुछ बानियाँ संगृहीत है। इनका वर्गीकरण, भिन्न-भिन्न युगों के आधार पर किया गया है और प्रत्येक युग की प्रवृत्ति विशेष का परिचय देने के लिए उसके पहले 'सामान्य परिचय' जोड़ दिया गया है। फिर भी संतों की रचनाओं तथा उनके जीवन-वृत्तों में घनिष्ठ संबंध है, इस कारण पद्यों के पहले उनकी संक्षिप्त जीवनी भी दे दी