(२) अबकी लगी खेप हमारी।
लेखा दिया साह अपने को, सहजै बीठी कारी॥१॥
सौदा करत बहुत जुग बीते दिन दिन टूटी आई।
अबकी बार बेबाक भये हम, जम की तलब छोड़ाई॥२॥
चार पदारथ नफा भया मोहि, बनिजै कबहुं न जइहौं।
अब उहकाय बलाय हमारी, घरही बैठे खइहौं॥३॥
वस्तु अमोलक गुलै पाई, ताती वायु न लाओं।
हरि हीरा मेरा ज्ञान जौहरी, ताही सों परखाओं॥४॥
देव पितर औ राजा रानी, काहू से दीन न भाखौं।
कह मलूक मेरे रामैं पूंजी, जीव बराबर राखौं॥५॥[१]
(३) घटा गुरू आसोज की, स्वाति बूंद सत बैन।
सीप सुरति सरधा सहित, तहँ मुक्ता मन ऐन॥१३५॥[२]
(४) विरह केतकी पैठि करि, मन मधुकर ह्वै नाश।
रज्जब भुगतै कुसुम बहु, मरे न तिनको बास॥४३॥[३]
(५) घट दीपक वाती पवन, ज्ञान जोति सु उजास।
रज्जब सींचे तेल लें, प्रभुता पुष्टि प्रकाश॥७६॥[४]
(६) मन हस्ती मैला भया, आप वाहि सिर पूरि।
रज्जब रज क्यूं ऊतरै, हरिसागर जल दूरि॥१॥[५]
(७) तूमा तन मन रूप है, चेतनि आव भराय।
पीवत कोई संत जन, अमृत आपु छिपाय॥७॥[६]
- ↑ 'मलूकदास की बानी', पृष्ठ ८ (पद ५)।
- ↑ 'रज्जबजी की बानी', पृष्ठ ११ (सा॰ १३५), पृष्ठ ३३.
(सा॰ ४३) पृष्ठ ४८ (सा॰ ७६) और पृष्ठ ३२७ (सा॰ १)। - ↑ 'रज्जबजी की बानी', पृष्ठ ११ (सा॰ १३५), पृष्ठ ३३.
(सा॰ ४३) पृष्ठ ४८ (सा॰ ७६) और पृष्ठ ३२७ (सा॰ १)। - ↑ 'रज्जबजी की बानी', पृष्ठ ११ (सा॰ १३५), पृष्ठ ३३.
(सा॰ ४३) पृष्ठ ४८ (सा॰ ७६) और पृष्ठ ३२७ (सा॰ १)। - ↑ 'रज्जबजी की बानी', पृष्ठ ११ (सा॰ १३५), पृष्ठ ३३.
(सा॰ ४३) पृष्ठ ४८ (सा॰ ७६) और पृष्ठ ३२७ (सा॰ १)। - ↑ 'भीखा साहब की बानी', पृष्ठ ९९ (सा॰ ७)।