(२) कबीर हरिणी दूबली इस हरियालै तालि।
लक्ख अहेड़ी एक जिव, कित एक टालौं भालि॥३८॥[१]
(३) मालन आवत देखि करि, कलियाँ करी पुकार।
फूले फूले चुणि लिए, काल्हि हमारी बार॥११॥[२]
(४) दौंकी बाधी लाकड़ी, ठाढ़ी करे पुकार।
मति बसि परौं लुहार कै, जालै दूजी बार॥१०॥[३]
(५) बाढ़ी आवत देखि करि, तरवर डोलन लाग।
हम कटै की कुछ नहीं पंखेरू घर भाग॥१२॥[४]
(६) अहेड़ी दौं लाइया, मिरग पुकारै रोइ।
जा वन में झीला, दाझत है बन सोइ॥८॥[५]
(७) बुगली नीर बिटालिया, सायर चढया कलंक।
और पंखेरू पो गए, हंस न बोवै चंच॥३०॥[६]
(८) नीर पिलाक्त क्या फिरे, सायर घर घर वारि।
जो त्रिषावंत होइगा, सोपी पीवेगा झस मारि॥७॥[७]
इन अवतरणों में कबीर साहब ने बड़े मार्मिक शब्दों के प्रयोग द्वारा मानव जीवन की कई बातों को दूसरों के ऊपर डालकर बतलाया है। कबीर साहब अन्योक्तियों के प्रयोग में हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवियों में गिने जाते हैं।
(१) ज्यों धोबी की धमस सहि, ऊजल होय सुचीर।
त्यो शिष तालिब निर्मले, मार सहे गुर पीर॥९॥[८]
- ↑ 'कबीर ग्रंथावली' पृष्ठ ७५ (सा॰ ३८), पृष्ठ ७२ सा॰ ११), पृष्ठ ७३ (सा॰ १०), पृष्ठ १२ (सा॰ १२), पृष्ठ १२ (सा॰ ८), पृष्ठ ३५ (सा॰ ३०), पृष्ठ ६१ (सा॰ ७)।
- ↑ 'कबीर ग्रंथावली' पृष्ठ ७५ (सा॰ ३८), पृष्ठ ७२ सा॰ ११), पृष्ठ ७३ (सा॰ १०), पृष्ठ १२ (सा॰ १२), पृष्ठ १२ (सा॰ ८), पृष्ठ ३५ (सा॰ ३०), पृष्ठ ६१ (सा॰ ७)।
- ↑ 'कबीर ग्रंथावली' पृष्ठ ७५ (सा॰ ३८), पृष्ठ ७२ सा॰ ११), पृष्ठ ७३ (सा॰ १०), पृष्ठ १२ (सा॰ १२), पृष्ठ १२ (सा॰ ८), पृष्ठ ३५ (सा॰ ३०), पृष्ठ ६१ (सा॰ ७)।
- ↑ 'कबीर ग्रंथावली' पृष्ठ ७५ (सा॰ ३८), पृष्ठ ७२ सा॰ ११), पृष्ठ ७३ (सा॰ १०), पृष्ठ १२ (सा॰ १२), पृष्ठ १२ (सा॰ ८), पृष्ठ ३५ (सा॰ ३०), पृष्ठ ६१ (सा॰ ७)।
- ↑ 'कबीर ग्रंथावली' पृष्ठ ७५ (सा॰ ३८), पृष्ठ ७२ सा॰ ११), पृष्ठ ७३ (सा॰ १०), पृष्ठ १२ (सा॰ १२), पृष्ठ १२ (सा॰ ८), पृष्ठ ३५ (सा॰ ३०), पृष्ठ ६१ (सा॰ ७)।
- ↑ 'कबीर ग्रंथावली' पृष्ठ ७५ (सा॰ ३८), पृष्ठ ७२ सा॰ ११), पृष्ठ ७३ (सा॰ १०), पृष्ठ १२ (सा॰ १२), पृष्ठ १२ (सा॰ ८), पृष्ठ ३५ (सा॰ ३०), पृष्ठ ६१ (सा॰ ७)।
- ↑ 'कबीर ग्रंथावली' पृष्ठ ७५ (सा॰ ३८), पृष्ठ ७२ सा॰ ११), पृष्ठ ७३ (सा॰ १०), पृष्ठ १२ (सा॰ १२), पृष्ठ १२ (सा॰ ८), पृष्ठ ३५ (सा॰ ३०), पृष्ठ ६१ (सा॰ ७)।
- ↑ 'रज्जबजी की वाणी', पृष्ठ २० (सा॰ १९)