यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८४
संत-काव्य
अर्थंतिरन्यास
दृष्टांत
(१) संत न छाड़ैं संतई, जे कोटिक मिलें असंत।
चंदन भुवंगा बैठिया, सीतलता न तजंत॥२॥[४]
(२) रज्जब जग जलता मिलै, साधू सीतल अंग।
चंदन विष या नहीं, जो कोटिक सिदै भुवंग॥१२॥[५]
(३) पसस्यूं पग पग मारहै सिमट्यूं सों नहिं होय।
जन रज्जब दृष्टांत कूं, मन कच्छप दिसि जोय॥१५॥[६]
(४) कुंभे बधा जलु रहे, जल बिनु कुंभ न होइ।
गिआन का बधा मनु रहे, गुर बिन गिआन होइ॥[७]
तुल्ययोगिता
(१) मनका सूतकु लोभ है, जिहवा सूतकु कू।
अरवी सूतकु देखणा, परत्रिय परधन रूयु॥[८]
- ↑ 'आदिग्रंथ' महला २ (गुरु अंगद, सलोक)।
- ↑ 'चरणदास की बानी', पृष्ठ ४७ (सा॰ ४)।
- ↑ 'सहज प्रकाश', पृष्ठ ३७ (सा॰ १३)।
- ↑ क॰ ग्रं॰, पृष्ठ ५१ (सा॰ २)।
- ↑ 'रज्जबजी को बानी', 'पृष्ठ ७० (सा॰ २) पृष्ठ २५१ (सा॰ १५)।
- ↑ 'रज्जबजी को बानी', 'पृष्ठ ७० (सा॰ २) पृष्ठ २५१ (सा॰ १५)।
- ↑ आदि ग्रंथ, महला १ (गुरु नानक सा॰)।
- ↑ आदि ग्रंथ, महला १ (गुरु नानक सा॰)।