सचित्र महाभारत [पहला खण्ड नहीं जिसे कृष्ण अपने तेज के बल से हरा न सकते हो । कृष्ण ने पैदा होने के दिन ही से जो बड़े बड़े अद्भुत काम किये हैं क्या आपने उन्हें नहीं सुना ? आपने अलग अलग राजों के जिन गुणों का वर्णन किया वे सब गुण अकेले कृष्ण में एकत्र विराजमान हैं। इसी लिए हमने अाज पहले इन्हीं की पूजा की; सम्बन्ध के खयाल से, या इसके बदले उनसे अपना उपकार होने की आशा से, नहीं की। ___ भीष्म बोले :-युधिष्ठिर ! सब लोगों के प्यारे कृष्ण की पूजा जिसे अच्छी नहीं लगती उससे विनती न करना चाहिए । मूर्ख शिशुपाल कृष्ण से डाह करता है; इससे वह उनके विषय में सदा ऐसी ही बातें किया करता है। इसलिए यदि कृष्ण की पूजा उससे बिलकुल न सही गई हो तो जो उसके मन में श्रावे करे। अपने दिये हुए अर्घ के सम्बन्ध में ऐसी अपमानकारक बातें सुन कर और यज्ञ के काम में विघ्न पड़ता हुआ देख कर सहदेव क्रोध से जल उठे। उन्होंने कहा :- जो नीच राजा लोग कृष्ण की पूजा को बुरा कहते हैं उनके सिर पर मैं लात मारने को तैयार हूँ। जिसमें शक्ति हो; वह इस बात का उचित उत्तर दे। यह कह कर सहदेव ने पैर उठाया और पैर को उठाये हुए चारों तरफ़ देखा । फिर, जिन और पूजनीय जनों को अर्घ देना था उन्हें, रीति के अनुसार, अर्घ देना प्रारम्भ किया। अभिमानी राजों में से किसी के मुँह से बात उस समय न निकली। किन्तु शिशुपाल आदि ऋद्ध हुए कुछ राजा लोग उठ कर इधर उधर आपस में बात-चीत करने लगे । वे बोले :- ___ हमें कोई ऐसा उपाय करना चाहिए जिसमें इस धर्मपूर्ण और रीति के विरुद्ध यज्ञ में युधिष्ठिर का तिलक न हो सके। ___ क्रोध से भरे हुए राजों के इस तरह आपस में सलाह करने से यह अच्छी तरह साबित हो गया कि वे युद्ध के लिए तैयारी कर रहे हैं। युधिष्ठिर डर कर भीष्म से बोले :- हे पितामह ! ये गजा लोग खीझ उठे हैं। इस समय क्या करना चाहिए, इसका आप ही निश्चय कीजिए। पितामह भीष्म बोले :- हे बुद्धिमान् ! शिशुपाल आदि राजों की बुद्धि भ्रष्ट हो गई है। कृष्ण जब हमारे पक्ष में हैं, तब डरने का कोई कारण नहीं । इस बात को सुनते ही शिशुपाल फिर कठोर वचन बोलने लगा :- हे भीष्म ! राजों को व्यर्थ डराते तुम्हें लज्जा नहीं आती ? तुम तुच्छ से भी तुच्छ कामों के लिए कृष्ण की प्रशंसा करते हो। इससे मालूम होता है कि तुम सठिया गये हो। लड़कपन में इस अहीर ने सिर्फ एक चिड़िया, एक घोड़ा और एक बैल मारा था। इसमें आश्चर्य की कौन सी बात है ? महाबली कंस के ही अन्न से पल कर इस दुरात्मा ने उन्हें मार डाला ! क्या इसके इस पुरुषार्थ से तुमको इतना आश्चर्य हुआ है ? स्त्री, गाय, ब्राह्मण, अन्नदाता और शरण में आये हुए मनुष्य पर हथियार उठाना महात्माओं ने सबसे बढ़ कर पाप माना है। वही पाप इस कुलांगार ने किया है । इसलिए, कुरुवंश में उत्पन्न हुए हे नीच ! हम तुम्हें कुछ उपदेश देते हैं, सुनो । बुढ़ापे से पैदा हुए डर के कारण यदि तुम्हें झूठी प्रशंसा ही करना हो तो कृष्ण से अधिक बलवान् जो राजा लोग यहाँ उपस्थित हैं उनकी करो । उनकी प्रशंसा और स्तुति से तुम्हारा अधिक भला होने की आशा है। सिंह के दाँतों में लगा हुआ मांस का टुकड़ा खाने की इच्छा रखनेवाले गीध की तरह अधिक साहस न करना । याद रखना, इन राजों की कृपा के ऊपर ही तुम्हारे जीवन का दारोमदार है।