पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१०५

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पहला खण्ड ] पाण्डवा का राज्यहरण पाण्डवां को जीत सकते हैं । उनक हार जाने से जो राजा लोग उनके अधीन हैं वे भी हमारे वश में हो जायेंगे और यह अनन्त धन, मभा और सारी पृथ्वी हमारं हाथ में आ जायगी। दुर्योधन का बहुत आग्रह करने दख सुबल के पुत्र शकुनि मुसकरा कर बाल :- हं राजन् ! यदि मित्रों के सहित पाण्डव लोग इकट्ठे हों तो उनके सम्मुख युद्ध में देवता लोग भी उन्हें नहीं हरा सकतं । इसलिए सोच समझ कर काम करना होगा। जिस उपाय से युधिष्ठिर को हराना सम्भव हो वही उपाय करना ज़रूरी है। यह बात सुन कर दुर्योधन खुशी से उछल पड़े और कहने लगे :- तुम जिस उपाय को ठीक करोगे हम, और हमारे सहायक, उसी को करेंगे। तब धूर्त शकुनि कहने लगा :- राजा युधिष्ठिर का जुआ खेलने का बड़ा शौक है। पर उसमें वे निपुण नहीं हैं। हम पक्के जुआरी ही नहीं, किन्तु जुआरियों के उस्ताद हैं। आज तक इस खेल में हमें कोई भी नहीं हरा सका। इसलिए युधिष्ठिर को जुआ खेलने के लिए बुलाओ। आने पर यदि उनकी इच्छा भी न होगी तो भी लज्जा के मारे वे बिना खल न रहेगे । तब हम चालबाजी से युधिष्ठिर का राजपाट तुम्हारं लिए जीत लेंगे। पर इस विषय में पहले तुम्हें अपने पिता को राजी करना होगा। उनकी आज्ञा से यधिष्ठिर को नेवता दिया जायगा। दुर्योधन ने कहा :-हममें इतना साहस नहीं कि पिता से इस तरह का प्रस्ताव करें । तुम्ही किसी अच्छे मौके पर उन्हें राजी कर लेना। गजधानी में लाटन पर यह बात शकुनि के ध्यान में चढ़ी रही । मौका पाकर एक दिन शकुनि धृतराष्ट्र सं कहनं लग :- __महाराज ! दुर्योधन बहुत दुबले हो गये हैं। उनका मुँह पीला पड़ गया है। वे सदा चिन्ता में मग्न रहत है । आपको उचित है कि अपने जेठे पुत्र के दुःख का कारण जान लें । यह सुन कर धृतराष्ट्र बड़े व्याकुल हुए। उन्होंने दुर्योधन को बुला कर पूछा : पुत्र ! यदि हमसे कहने के योग्य हो तो बताओ, तुम क्या दुखी रहते हो ? तुम्हार मामा कहते हैं कि तुम दुबले-पतले और पील पड़ते जाते हो। हमने बहुत साचा, पर दुःख का कोई कारण न जान पाया। यह साग राज-पाट तुम्हारा ही है। तुम्हारं भाई और राजपुरुप तुम्हारं ही आज्ञाकारी हैं । इच्छा करत ही तुम्हें सब चीजें महज में मिल सकती हैं। तब किम लिए. तुम दुखी रहते हो? इसके उत्तर में दुर्योधन ने कहा :- हे पिता! आपने ठीक ही कहा कि अब तक हम, कायरों की तरह, भाजन और वस्त्र से ही सन्तुष्ट रहे । किन्त महाराज ! सन्तोष से ही धन-दौलत, राज-पाट नष्ट होता है। वैग पर क्रोध न करने से बड़प्पन नहीं मिलता-महिमा नहीं बढ़ती । जिम दिन से हमने युधिष्ठिर का राज्यवैभव देखा उसी दिन से सुखभोग की चीजों से हमारी तृप्ति नहीं होती। स्फटिक और मणियां से जड़ा हुआ वह अद्भुत सभा-मण्डप, वैश्यों की तरह बड़े बड़े राजों का युधिष्ठिर को वह कर देना, असंख्य ब्राह्मणों का वह स्तति करना, देवताओं के समान वह राज-लक्ष्मी जब सं हमने देखी तभी से हमारा मन ऐसा वेचैन हो रहा है कि किसी तरह हमें शान्ति नहीं मिलती। पुत्र के दुःख से धृतराष्ट्र को अत्यन्त दुखी देख शकुनि ने समझा कि यह अच्छा मौका है। इससे व दुर्योधन से कहने लगे :- हे पराक्रमी वीर । पाण्डवों का जो यह अद्भुन गवर्य देवते हो उसका पाना असम्भव