पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१०८

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मचित्र महाभारत [पहला खण्ड देखो, जुआ खेलने में कपट करना बड़ा पाप है। कपट करना कोई बहादुरी की बात नहीं। शठता से सुख और धन नहीं मिलते। और धूर्त श्रादमी अपने को चाहे कैसा ही बड़ा समझे, पर वह कभी प्रशंसा के योग्य नहीं। ___ शकुनि ने कहा :-बलवान् आदमी यदि दुर्बल को मारे तो उसे कोई धूर्त नहीं कहता। अथवा यदि पण्डित मूर्ख को हरा दे तो उसे कोई शठ नहीं कहता। खेलने में हमें अपनी अपेक्षा अधिक जानकार समझ कर यदि डर से हमें कपटी कहते हो तो खेलने की कोई जरूरत नहीं। युधिष्ठिर ने कहा :-यदि खेलन के लिए कोई हमें बुलाये तो हम ज़रूर खेलते हैं। जुआ ग्वेलन में भाग्य ही बलवान होता है। भाग्य में जो बदा होता है वही होता है। इसलिए उसी का भरोसा करके आज हम खेलेंगे। हमारे साथ दाँव लगाने के लिए कौन तैयार है ? दुर्योधन ने कहा :-हे युधिष्टिर ! हमारे राज्य में जितना धन और जिनने रत्न हैं, सब हम देंगे; पर ग्वेलेंगे हमारे बदले हमारे मामा। युधिष्ठिर ने कहा :-भाई, एक आदमी का दूसरे के बदले ग्वेलना हमारी समझ में ठीक नहीं। खैर, खेल शुरू कीजिए। जुआ शुरू होने की खबर पाकर सारे राजपुरुप धृतराष्ट्र को आगे करके सभा में पहुँचे । महात्मा भीष्म, द्रोण, कृप और विदुर दुखी मन से उनके पीछे पीछे आये। सबके बैट जाने पर खेल शुरू हुआ। युधिष्ठिर दुर्योधन से बोले :- हे राजन् ! हमने यह मोने का बना हुआ और मणियों से जड़ा हुआ हार दाँव में रक्खा। नुम क्या रखते हो ? ____ दुर्योधन ने कहा :-ला हम ये इतने मणि दाँव में लगाते हैं। किन्तु इसके लिए हम अहङ्कार नहीं करते । खैर आप इन्हें जीतिए। युधिष्ठिर के पासे फेंकने के बाद शकुनि ने उन्हें लिया और बड़ी चालाकी से फेक कर कहा :- देखिए महाराज ! हमी जीत ।। इस अचानक हार से रुष्ट होकर युधिष्ठिर बोले :- हे शकुनि ! क्या तुमने सोच रक्खा है कि चतुराई से पाँसे फेंक कर बार बार हमी जीनेंगे। आओ हमने अपना अनन्त ग्वजाना और ढेर का ढेर सोना दाँव में रक्खा । इस बार भी शकुनि ने पाँसा डालते ही दाँव जीत लिया। युधिष्ठिर ने कहा, इस बार नहीं तो अगली बार जरूर ही हमारा भाग्य चमकेगा। इससे पुनार हारने की लज्जा से उत्तेजित होकर वे बढ़ बढ़ कर दाँव लगाने लगे। उन्होंने रथ, हाथी, घोड़े, दास, दासी और अन्त में अच्छे अच्छे रथी और योद्धा एक एक करके दाँव में लगाये। पर युधिष्ठिर के वैरी दुरात्मा शकुनि को अपने बनाये हुए पाँसे फेंकने का इतना अभ्यास था कि जैसे वह चाहता था वैसे ही उनको फेंक सकता था। इसलिए छल-कपट से उसने उन सब चीजों को भी जीत लिया। जब इस सर्वनाशकारी जुए ने ऐसा भयानक रूप धारण किया तब विदुर से चुप-चाप न रहा गया। वे बोल उठे :- ___महाराज ! मरते हुए आदमी को जैसे श्रोषधि खाना अच्छा नहीं लगता, वैसे ही हमारा उपदेश भी शायद आपको न रुचे । तब भी जो कुछ हम कहते हैं, एक बार सुन लीजिए। जिस पापी