पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/११३

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पहला खण्ड ] पाण्डवों का राज्यहरण तब भी सबको निरुत्तर देख विकर्ण आप ही कहने लगे :- और कोई बोले चाहे न बोले, हमारी समझ में तो जुआरी आदमी का किया हुआ काम नहीं माना जा सकता। द्रौपदी नो पाँचों पाण्डवों की पत्नी है। फिर अकेले युधिष्ठिर उसको किम तरह दाँव पर रख सकते हैं ? इमसे यह नहीं कहा जा सकता कि द्रौपदी जुए में जीत ली गई है। विकर्ण की बात सुनते ही सभासद लोग बड़े जोर से उनकी प्रशंसा करने लगे और कहन लगे कि विकर्ण ने बहुत ठीक कहा। थोड़ी देर में जब वह हाहाकार शान्त हो गया तब क्रोध से भर हुए कर्ण ने विकर्ण का हाथ पकड़ कर कहा :- हे विकर्ण ! सब सभासदों के मन की बात जानने के लिए ही कौरववृद्ध मौन थे। तुम लड़कों की तरह अधीर होकर और ऊटपटाँग बातें कह कर सभासदों को चचल करते हो, यह बहुत बुरी बात है। युधिष्ठिर ने जब अपना सर्वस्व दाँव पर रख दिया तब वे अपनी पत्नी को भी अवश्य ही दॉव पर रख सकते हैं। फिर जो तुम यह कहते हो कि द्रौपदी जीत नहीं ली गई, इसका क्या मतलब है ? इसके साथ दासियों का सा व्यवहार करने में बाधा क्यों ? देखा, पाण्डव लोग यहाँ प्रत्यक्ष उपस्थित हैं। वे कुछ नहीं कहतं । वे इस तरह के व्यवहार में कोई बात अनुचित नहीं देखते । क्या तुम समझते हो कि सभा में एकवस्त्रा अवस्था में लाई जाने से द्रौपदी को लज्जा आती होगी ? जिसके पाँच पति हों उसे संसार में किसकी लज्जा ? हे दुःशासन ! यह विकणे अभी कल का छोकड़ा है। पाण्डवों के पास जो कुछ था वह धर्म से जीता गया है। इसलिए पाण्डवों के और द्रौपदी के दुपट्टे ले लो। पाण्डवों ने यह सुनते ही अपने अपने दुपट्टे दे दिये। याद रहे, द्रौपदी के पास एक ही साड़ी थी। वही वह पहने थी, वही ओढ़े। इससे जब दुःशासन एकवस्त्रा द्रौपदी का कपड़ा, भग सभा में, खींचने लगा तब द्रौपदी अत्यन्त दुखी होकर आर्तनाद करने लगी। इस विपद में स्वयं धर्म ने आकर द्रौपदी की लाज रक्खी । उस कपड़े की कमी नहीं होने दी। यह देख कर सभा में बड़ा गोलमाल होने लगा। राजों ने दुःशासन का डॉट कर रोका। भीमसेन से बैठे न रहा गया। क्रोध से उनके ओंठ काँपने लगे। उन्होंने हाथ मल कर कसम खाई और कहा :- क्षत्रिय लोग, सुना ! भरत-वंश में उत्पन्न हुए इस नीच कुलाङ्गार दुःशासन की छाती युद्ध में फाड़ कर यदि हम उसका रुधिर न पियें तो हमें अपने पूर्व-पुरुषों की गति न प्राप्त हो। ___ जव दुःशासन द्रौपदी का वस्त्र न खींच सके तब लज्जित होकर सभा में बैठ गये । सारे सभासद धृतराष्ट्र के पुत्रों को धिक्कारने लगे। कितने ही सज्जन धृतराष्ट्र की निन्दा करके दुःख प्रकाशित करने लगे। विदुर ने देखा कि सभा के सब लोग पाण्डवों के साथ अन्याय किये जाने के कारण क्षब्ध हो उठे हैं और कौरवों से अप्रसन्न होकर कोलाहल मचा रहे हैं। इससे अपने दोनों हाथ उठा कर उन्होंने उस गोलमाल को बन्द कराया और कहने लगे :- हे सभासद ! इसके पहले कि इस निरपराध द्रौपदी पर और अत्याचार किया जाय, आप लोग उसके प्रश्न का उत्तर देकर इस मामले का निपटारा करें। जहाँ अधर्म होता है वहाँ चुप रहना भी पाप है। इसलिए यह शीघ्र ही निश्चय कीजिए कि युधिष्ठिर द्रौपदी को दाँव में रख सकते थे या नहीं। किन्तु आँखों में आँसू भरे हुए द्रौपदी को देख कर भी धृतराष्ट्र के डर से कोई न बोला । तब दुर्योधन ने द्रौपदी से कहा :- हे द्रौपदी ! तुम अपने पतियों से अपने प्रश्न का उत्तर पूछो। वे जो कुछ कहेंगे हम उसी