पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/११६

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९६ सचित्र महाभारत [पहला खण्ड धृतराष्ट्र ने उदास होकर उत्तर दिया :- प्रिये ! यदि वंशनाश हो जाय तो भी कोई उपाय नहीं। किन्तु प्राणों से भी अधिक प्यारे अपने पुत्रों के विरुद्ध हम कोई काम नहीं कर सकते। पिता की आज्ञा पाते ही दुर्योधन तुरन्त युधिष्ठिर के पास पहुँचे। उस समय युधिष्ठिर जाने की तैयारी कर रहे थे। दुर्योधन ने कहा :-- हे युधिष्ठिर ! सभा में अब भी बहुत लाग बैठे हैं। पिता की श्राना है कि तुम्हारे जाने के पहले हम सब मिल कर फिर एक दफे जुश्रा ग्वेलें। युधिष्ठिर बोले :--जुश्रा सर्वनाशकारी ग्वेल है। यह हम अच्छी तरह जानते हैं। पर यदि चचा की ऐसी ही आज्ञा है तो इस बात का जान कर भी हम एक दफे और खेल डालेंगे। यह कह कर भाइयों के साथ युधिष्ठिर चुपचाप खेलने के घर में पहुँचे । शकुनि बोले :--महाराज ! वृद्ध राजा ने तुमको जो कुछ लौटाया है उसमें हम दखल देना नहीं चाहते। इस बार और तरह की बदाबदी हो। हममें या तुममें से जो हारे वह बारह वर्ष वनवास और एक वर्ष अज्ञात वास करे। अज्ञात वास के समय यदि पता लग जाय तो बारह वर्ष फिर वनवास करे। यदि इस तरह के खेल से तुम डरते न हो तो आओ खेल शुरू करें। यह सुन कर जो लोग सभा में बैठे थे घबरा गये। बड़ी व्याकुलता से हाथ उठा कर वे कहने लगे :- ___ भाइयो ! तुम लोगों को धिक्कार है ! मालूम होता है, युधिष्ठिर इस भयङ्कर दाँव के नतीजे को नहीं समझते; इसी से वे खेलने को तैयार हैं। पर युधिष्ठिर ने यह सोचा कि यदि हम न खेलेंगे तो लोग यह कह कर निन्दा करेंगे कि ये खेलने से डरते हैं। इससे, मरने के समय मनुष्य का हिताहित ज्ञान मोह के मारे जैसे जाता रहता है उसी तरह युधिष्ठिर को भले-बुरे का ज्ञान न रहा। उन्होंने शर्त स्वीकार कर ली और पाँसे फेंकने लगे। किन्तु सिद्धहस्त शकुनि ही की जीत हुई। पाण्डव लोग वनवास की प्रतिज्ञा में बंध गये। इसके बाद धर्मात्मा पाण्डव लोग चुपचाप हार मान कर वनवास की तैयारी करने लगे। दीनभाव से छाल और मृगचर्म पहन कर जब वे खेल-घर से निकले तब धृतराष्ट्र के दुर्मति पुत्र बड़े प्रसन्न हुए और तरह तरह से पाण्डवों का अपमान करने लगे। निर्दयी दुःशासन द्रौपदी से कहने लगा :- हे द्रौपदी ! वनवासी पाण्डवों को सेवा करकं तुम प्रसन्न नहीं रह सकती। इसलिए हममें से किसी को तुम अपना पति बनाओ जो तुम्हें जुए में न हार दे। तब भीम बोले :- रे पाखण्डी ! इस समय तू हमको जिस तरह मर्मविद्ध करता है उसी तरह तुझं भी हम, एक दिन, लड़ाई के मैदान में, मर्मविद्ध करेंगे। सिर्फ तुझको ही नहीं, धृतराष्ट्र के जिन जिन पुत्रों ने तेरा अनुकरण किया है उन सबको यदि हम यमलोक न भेज दें तो हमें पुण्यलोक न प्राप्त हो। यह सुन कर निर्लज्ज दुःशासन मृगचर्मधारी भीमसेन की दिल्लगी करते हुए चारों ओर नाचने लगा। सिंह की तरह चलनेवाले भीमसेन और अन्य पाण्डवों के पीछे पीछे चल कर दुर्योधन उनकी चाल की नक़ल करने लगे। उन्हें ऐसा करते देख दुर्योधन के सब भाई हँस पड़े। इस पर अभिमानी भीमसेन ने बड़े कष्ट से अपना क्रोध रोक कर पीछे की तरफ देखा और बोले :-