पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/११७

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पहला खण्ड ] पाण्डवों का राज्यहरण हम तुमको वंशसहित मरा हुआ समझ कर इसका उचित उत्तर नहीं देते। तुम इस समय जो चाहा बे-खटके कगे। लड़ाई के मैदान में हम धृतराष्ट्र के पुत्रों का, अर्जुन कर्ण को, और सहदेव शकुनि को मारेंगे। अर्जुन ने कहा :-ह भीम ! जिम आदमी ने किसी बात की प्रतिज्ञा करली उस बान वनान म क्या मतलब ? तरह वर्ष बाद जो कुछ होगा वह सब लोग आप ही देख लेंगे। जो हो, तुम्हारे ही कहने के अनुसार हम प्रतिज्ञा करते हैं कि हम तीक्ष्ण वाणां के द्वारा इस हँसोड़ मृत-पुत्र का रक्त पृथ्वी का पिलायंगे। हिमालय अपना स्थान छोड़ सकता है, मूर्य का तंज भी नए हो सकता है, पर हमारी यह प्रतिज्ञा नहीं टल सकी। अर्जुन की वान समान होने ही माद्री के पुत्र महदेव आँखें गुरंग कर बाल :-- ह धून शकुनि ! पॉस समझ कर तुमनं जिन चीजों की संवा की है वहीं चीज. लड़ाई के मैदान में, वाणां के रूप में, तुम्हें माथे पर धारणा करनी होगी। नकुल ने कहा :-जा दुष्ट. ग्बल में, द्रौपदी के अपमान से प्रसन्न हुए है उन सबका हम यमलोक भेज बिना न रहंग। इसके बाद युधिष्ठिर गजसभा में आकर बाल अब हम पितामह भीष्म से, बड़े बड़े कौरवां स, द्रोण आदि गुरूजना में, धृतराष्ट्र से और उनके पत्री तथा विदर से विदा हान हैं। यदि वनवास के बाद लाटग ना फिर मिलेंगे। यह सुन कर सब लोग चुपचाप रहे। पर मन ही मन, पागढ़वां का नरह तरह के आशीर्वाद उन्हान दिय । विदुर ने कहा :-ई पागडव ! मब कहीं तुम्हाग मङ्गल हा । तुम्हारी माना सुकुमार्ग है; सुख ही में पली हैं; अब वृद्ध भी हुई है। उनका वन जाना किसी तरह उचित नहीं। इसलिए वे हमारे घर रहे । हम उन्हें बड़े आदर से रक्खेंग। पाण्डवां ने कहा :- हं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ ! आप हमारे पिता के तुल्य है और परम गुरु है। आपकी आज्ञा हम अवश्य मानेंगे । और जो आपकी इच्छा हा सा कहिए । विदुर बाल :-हे धर्मगज ! जिस धम्म-बुद्धि के बल से तुमने इन सब लाञ्छनाओ और अपमानों की परवा नहीं की, ईश्वर का, वह तुममें महा बनी रहे। तुम निर्विन लौट आओ, यही हमाग आशीर्वाद है। इसके बाद युधिष्ठिर ने सबका यथाचिन अभिवादन करके चल दिया। नव द्रोपदी दुःखी मन स कुन्ती के पास गई और उनका तथा वहां बैठी हुई गजवधुओं का.प्रणाम करके उनसे मिलीं। फिर उन्होंने उनसे अपने पतियों के साथ जाने की आज्ञा माँगी। यह देख कर कि द्रौपदी बिना गय न मानगी, कुन्ती शाक से विह्वल हो गई। उनका कंठ भर आया। वे कहने लगी :- बंटी ! इस घोर दुःख में व्याकुल न होना। तुम सदा ही से सुशीला और पतिव्रता हो। तुम्हें हम और क्या उपदेश दें। तुमस हमारे कुल की शोभा है। कौरव लाग बड़े भाग्यशाली थे जो तुम्हारे कोप की आग में नहीं जलं । हं वह ! हम सदा ही तुम्हारी मङ्गलकामना करेंगी। तुम ब-खटके जाओ; तुम्हाग बाल न बाँका होगा। नकुल और सहदेव का तम अच्छी तरह रखना। द्रौपदी ने कहा :--आपकी आज्ञा मरे मिर पर है । फिर उन्होंने अपनी चाटी बाल डाली और सिफ़ एक वस्त्र पहन कर आँखों में आँसू भरं पाण्डवां के पीछे पीछे चली । फा०१३