पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१२३

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पहला खराड] पागडवों का वनवाम १०१ युधिष्ठिर ने कहा :- है. विदर ! जहाँ तक हो सकेगा हम अापक उपदेश के अनुसार ही काम करंग। ___ इधर विदुर की जुदाई से धृतराष्ट्र बड़े दुःग्वित हुए। उन्होंने समझा कि विदुर की सलाह से पाण्डवों का जहर भला होगा। इसमें वे डर गये और पाम बैठे हुए संजय मे घबग कर कहने लगे :- हम बड़े पापी हैं जो हमने अपने प्यारे भाई को निकाल दिया। वह बड़ा धार्मिक है। उसने हमाग कभी कोई अपराध नहीं किया । हमने माह के वश होकर बिना अपराध के उमका अपमान किया है। तुम शीघ्र जाकर उसे लिवा लाओ । रम आज्ञा के अनुमार मंजय काम्यक वन पहुँच। वहाँ उन्होंने दंग्या कि युधिष्ठिर आदि पागयों के बीच में विदर बैठे हैं। संजय न विदर में कहा कि महागज धतराष्ट्र ने आपका बनाया है। रहें अपने किये का बहुत पछतावा है । व अब आपके दंग्वन का तड़प रहे है । यह सुन कर अपने भाई- बन्धुओ मे म्ह बनवाल विदुर, युधिष्ठिर म विदा कर जल्द हस्तिनापुर लौट गये। अपने प्यारे भाई के पाते ही धतराष्ट्र ने उन्हें गाद में लकर माथा गया और कहने लग : - ___भाई ! हमाग बड़ा भान्य है जा तुम फिर हमारे पास आये। तुम्हारे वियोग में हमें नींद नहीं आई । हमाग अपराध क्षमा करो। विदुर बाल :-ह गजन ! आप हमारे परम गुरु हैं। हम वद ही आपके दर्शनों के अभिलापी थे, टमी में हम इतनी जल्द आ गये। हं भग्न-बल के निलक । अापक पुत्र और पागढ़ के पुत्र हमारे लिए बगवर हैं। पर पाण्डव लोग इस समय दीन-अवस्था में हैं: इसी में हमें उन पर दया आती है और हम उन पर अधिक म्नह प्रकट करते हैं। धृतराष्ट्र और विदुर हमी तरह बातचीत करते हुए दावाग मिलने में बड़े प्रसन्न हुए। पर विदर का लौट आना दुयोधन का अच्छा नहीं लगा। इसमें उन्हें उलटा दु:ख हुआ। वे शकुनि, कर्ण और दुःशामन को बुला कर कहने लगे : है मित्रगण । पाण्डवों की भलाई चाहनेवाला विदर ना फिा या गया। मालूम होता है कि पिता से पाण्डवों को गज्य दिलाय विना वह न मानगा। इससे उसके पहले ही हमें जो कुछ करना हो करना चाहिए। शकुनि बाल :-हे दुर्योधन ! तुम मृा की तरह सदा अनिए की चिन्ता क्या किया करत हा ? यह तुम्हारी नादानी है। अपना अनिष्ट मनुष्य को न माचना चाहिए। पागव लोग जब वनवाम की प्रतिज्ञा में बँध हैं तब वे तुम्हारे पिता के कहने पर भी न आवंग ! यदि माह के वश होकर व प्रतिज्ञा भंग भी करें तो ऊपर से तो हम लोग धनराष्ट्र की हाँ में हाँ मिलायेंगे, पर छिपे छिपे किमी न किमी तरह पाण्डवों का अनिष्ट जरूर करेंगे । दुःशासन ने कहा :-हे मामा ! आप जो कहते हैं वही हमें भी ठीक मालूम होता है । कणे ने मुमकग कर कहा :- हे दुर्योधन ! तुम्हें किस बात का डर है ? यदि पाण्डव लोग प्रतिज्ञा भंग काके श्रावंग तो हम लोग महज ही में उन्हें कपट-जुए में हरा सकेंगे। यह बात दुर्योधन को अच्छी न लगी । यह देख कर्ण अपने मन की बात खाल कर कहने लगे :- हे भाई ! जब हम सब विषयों में दुर्योधन की बात मानते हैं, नब, आओ, हम लोग दल