पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१३६

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११४ सचित्र महाभारत [पहला खण्ड हं बन्दरों में श्रेष्ठ ! तुम कौन हो ? वानर के वेश में यहाँ क्यों रहते हो ? कृपा करके अपना परिचय दो। तब बन्दर ने प्रसन्न होकर कहा :- हम सुग्रीव के भाई, रामचन्द्र के पुराने संवक, वायु के पुत्र हनूमान हैं । बुढ़ाप में प्रभु का ध्यान करते हुए यहाँ दिन बिताते हैं। तुम हमारे ही पिता के वर दिये हुए पुत्र हो। इसलिए तुम पर हमाग भाइयों का सा स्नेह हो पाया है । हे भाई ! इस रास्तं मनुष्य नहीं जा सकतं । इसलिए हमने तुम्हें रास्ता नहीं दिया। __इसके बाद भीम के आने का अभिप्राय जान कर हनूमान् ने उन्हें प्रमन्नता से आलिङ्गन किया और कहा :- तुम जिन फूलों का हुँ ढ़त हो व मिर्फ कुबर के मरोवर ही में पैदा होते हैं। वह सरोवर पास ही है। यह कह कर और कुवंर के घर का गस्ता बताकर हनूमान् वहाँ से चल दिये। वनवाम से दुखी प्रियतमा की इच्छा पूरी करने की धुन में भीमसेन दिन गत वन पर वन पार करते हुए, बहुत दूर तक फैल हुए गन्धमादन पर्वत पर हनूमान् के बताये हुए रास्ते से चले गये। दूसरे दिन, सबरे, गन्धमादन पर माला की तरह शाभा देनेवाली एक नदी उन्हें देख पड़ी। उसमें दो पहर के सूर्य के समान सुगन्धित बहुत से वही कमल ग्विल हुए थे। वह नदी बह कर कुवर के सरोवर में गिरती थी। भीम प्रसन्नता से उस सरोवर में उतर गये और आनन्दपूर्वक बड़ी देर तक उन्होंने स्नान किया। इम समय कुबर के बाग़ की रक्षा करनेवाल यक्षों ने भीम का दग्व कर गर्व से पूछा :-- तुम कौन हो ? एक ही साथ मुनि और वीर के वेश में यहाँ क्यों आये हो ? भीम ने उत्तर दिया :- हम दूसरं पाण्डव भीमसन हैं। अपनी पत्री के लिए फूल लेने आये हैं। यक्ष बाले :-हे भीमसन ! यह सरोवर यक्षों के राजा कुबर का है। यह उन्हें बहुत ही प्रिय है। यहीं वे क्रीड़ा करते हैं। उनकी आज्ञा के बिना यहाँ कोई नहीं घूम सकता। भीम बोले :-यह सरोवर पहाड़ पर बहनेवाल झरने से पैदा हुआ है। इसलिए इसमें कुबर की तरह सबका अधिकार है। फूल चुनना एक छोटी सी बात है : उसके लिए हम किसी से पूछने की ज़रूरत नहीं समझते । यह उत्तर सुन कर यक्ष लाग रुष्ट हुए। उन्होंने कहा-इस पकड़ा ! इस मारा ! इस काटा ! इस तरह चिल्लाकर उन्होंने गोल माल मचा दिया। भीम, ठहगे ! ठहगे ! कह कर और गदा उठा कर उनकी तरफ दौड़े। धीरे धीरे घोर युद्ध होने लगा। इधर युधिष्ठिर ने भीम को न देख कर द्रौपदी से पूछा :- हे द्रौपदी ! भीम कहाँ हैं ? प्रिया द्रौपदी ने कहा :- राजन् ! हमने जो मनाहर सुगन्धित फूल आपको दिया था उसे पाकर हमने भीमसेन से कहा था :- है भीम ! ऐसा अच्छा फूल क्या और भी कहीं देखा है ? मालूम होता है, हमाग बहुत अधिक प्यार करने के कारण वे वैसे ही फूल लाने के लिए पूर्वोत्तर-दिशा को गये हैं। युधिष्ठिर बाल :-चलो हम भी उधर ही जाकर उनम मिलें। हमें डर लगा रहता है कि बल के घमण्ड में आकर कहीं वे सिद्ध लोगों का कोई अपराध न कर बैठे।