पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१४०

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११८ मचित्र महाभारत [ पहला खण्ड फिर वे द्रौपदी से बोले : हं द्रौपदी ! प्रतिविन्दा श्रादि तुम्हारे पुत्र बड़े मुशील बालक है। भले आदमियों के लड़कों का जिस तरह रहना चाहिए उसी तरह वे रहते हैं । सुभद्रा उनका पालन-पोषण तुम्हारी ही तरह बड़ी मावधानी से करती हैं। उन्हें सब बातों की शिक्षा देने की देख-भाल प्रद्युम्न करते हैं। तब युधिष्ठिर ने कृष्ण की बहुत कुछ प्रशंसा करके उत्तर दिया :-- हे केशव ! सब विपयां में पाण्डवों को उपदेश देनेवाले और कर्ता धर्ता तुम्ही हो। अब हमारे वनवाम के बारह वर्ष लगभग पूरे हो चुकं । और एक वर्ष अज्ञात वाम पृग करके तुममे फिर मिलेंगे और तुम्हारी महायता चाहेंगे। इस तरह बातचीत हो ही रही थी कि महर्षि मार्कण्डेय वहाँ आ गय। सबन भक्तिभावपूर्वक उनकी पूजा की । कुछ दिन वे वहाँ ग्रह और अनेक प्रकार की कथायें और पुगने वृत्तान्त कह कर मबका मन बहलाया। __ इस समय द्रौपदी और मत्यभामा, ये दोनों प्रिय बालनेवाली स्त्रियाँ, बहुत दिनों के बाद एक दृम न मिलने पर, कुरु और यद के वंश से सम्बन्ध रग्बनवाली तरह तरह की बातें बड़ी प्रसन्नता से करके अपना समय बिताती थीं। एक बार कृष्ण की प्यारी सत्यभामा एकान्त में द्रौपदी से कहने लगी :- हे द्रौपदी ! महाबली पारा व लोग तुमसे इतने प्रसन्न रहते हैं कि उनके प्रेम का देग्य कर मुझे आश्चर्य होता है । तुम्हारे पति तो एक दिन के लिए भी तुमसे जुड़ा नहीं होते; तुम्हारे सिवा किसी और को वे चाहत भी नहीं। मुझे यह बताओ कि किस व्रत, मन्त्र या ओषधि से तुमन उनको इस तरह वश में कर लिया है। मालूम होने में मैं भी कृष्ण को अपने वश में करके तुम्हारी ही नरह सौभाग्यवती बनॅगी। पतिव्रता द्रौपदी ने कहा :- • देखा सखी ! तुमने जिन उपायों की बात कही, उन्हें केवल नीच स्त्रियाँ ही करती हैं । कृष्ण की स्त्री होकर तुम्हें ऐसा प्रश्न करना उचित नहीं। यह जानने से कि मुझे वश में करने के लिए मंग स्त्री मन्त्र-यन्त्र सिद्ध करती है कभी किसी स्त्री का स्वामी शान्त और सुखी नहीं रह सकता। ओपधि दने से केवल शरीर ही नहीं, किन्तु प्राण तक नष्ट हो सकते हैं। हे सुन्दरी ! इन उपायों से पति कभी वशीभूत नहीं होते। मैं जैसा व्यवहार करती हूँ, इच्छा हो तो, सुनो । मैं पाण्डवों की दूसरी स्त्रियों के माथ कभी बुरा बरताव नहीं करती। अभिमान छोड़ कर पतियों की इच्छा के अनुसार सदा काम करती हूँ। मैं इस बात का सदा खयाल रखती हूँ कि कहीं मेरे मुँह से कोई बुरी बात न निकल जाय। पाते ही मैं सबकी बराबर सेवा करती हैं। इसके सिवा मैं घर सदा साफ रखती हैं और भोजन आदि ठीक समय पर तैयार करती हूँ। मैं सदा सच्चा प्रेम दिखाती हूँ और रमणीय वेश बना कर जी लुभानेवाली सुगन्धित मालाओं से सजी रहती हूँ। हे सत्यभामा ! पतियों को वश में करने का मैं यही सबसे अच्छा उपाय जानती हूँ। दुगचारिणी स्त्रियों की तरह बुरा व्यवहार करने की इच्छा कभी न करना। मत्यभामा बोली-हे द्रौपदी ! अपराध हुआ; क्षमा करो; सखियां की हँसी-दिल्लगी से क्रोध न करना। द्रौपदी ने कहा :-सखी ! स्वामी को रिझाने का जो सार्थक उपाय मैंने बताया, उसके अनुसार चलने से कृष्ण पूरी तौर से तुम्हारे वश में हो जायेंगे । इसमें सन्देह नहीं । सती स्त्रियों को पहले तो दुख भोगना पड़ता है, पर अन्त में वही सुख पाती हैं। इसके बाद जब कृष्ण के जाने का समय आया तब रथ पर चढ़ कर उन्होंने सत्यभामा को बुलाया। सत्यभामा ने द्रौपदी को बड़े प्रेम से भेंट कर कहा :-