पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१४१

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पहला खण्ड ] पाण्डवों के पुत्रों का राज्य करना प्यारी सखी ! दुग्य न करो। तुम्हारे स्वामी अपने बाहुबल से शीघ्र ही फिर राज्य करेंगे । तब तक हम लोग तुम्हारे लड़कों का बड़े यत्र और स्नेह से लालन-पालन करेंगी। यह कह कर और कृष्ण के रथ पर सवार होकर मत्यभामा ने प्रस्थान किया। पाण्डवों के बहुत दिन तक एक स्थान पर रहने से मृग और फल-फूल आदि ग्वाने की चीजें जब न मिलने लगी तब फिर स्थान बदलने के इरादे से वे द्वैतवन गये और वहाँ सरावर के किनारे एक घर बना कर रहने लगे। ६-धृतराष्ट्र के पुत्रों का राज्य करना पाण्डव लोग द्वैतवन में वनवास का बचा हुआ अंश बिना रहे थे कि इतने में पाण्डवों के यहाँ सं एक ब्राह्मण हस्तिनापुर में महाराज धृतराष्ट्र के पास गया। बातचीत करने में ब्राह्मण बड़ा चतुर था। धृतराष्ट्र ने उसका अच्छा सत्कार किया और पाण्डवों का हाल उससे पूछा । ब्राह्मण ने महादुखी पाँचां पाण्डवों और क्लेशों से घिरी हुई द्रौपदी का सच्चा सच्चा हाल कह सुनाया। ____पाण्डवों का वृत्तान्त सुन कर गजा धृतराष्ट्र को बड़ी दया आई। अपने ही को इन सब दुखों की जड़ समझ कर पाण्डवों की प्रशंसा और अपने पुत्रों की निन्दा करते हुए उन्होंने बहुत विलाप किया। साथ ही अर्जुन की तपस्या और उसके द्वारा दिव्य अस्त्र-शस्त्र पाने के समाचार सुन कर वे बहुत डर भी। महाराज का विलाप करते देख दुर्योधन और कर्ण को शकुनि एकान्त में ले गया और उनसे सब हाल कहा । मूर्ख दुर्योधन इससे बड़ा दुखी हुआ। शकुनि ने धीरज देकर कहा :- ___ महाराज ! जब तुमने पाण्डवों को वनवास की प्रतिज्ञा में बाँध लिया है तब चिन्ता करने का कोई कारण नहीं । तुम अकेले इतने बड़े राज्य को निष्कंटक भाग कर सकते हो। इतने में दुर्योधन का दु:ख दूर करने की एक बड़ी अच्छी तरकीब कण को सहसा सूझ गई । वे बाले :- हे कुरुश्रेष्ठ ! सुनते हैं कि इस समय पाण्डव लोग पास ही द्वैतवन के एक सरोवर से कुछ ही दूर पर रहते हैं। यदि तुम अपना अतुल ऐश्वर्या दिखा कर उनकी इम दरिद्र और दीन हीन दशा में उनसे एक बार मिलने जाव तो बड़ी दिल्लगी आवे । शत्रुओं को दुर्दशाग्रस्त देखने से बढ़ कर और भला किस बात में अधिक सुख हो सकता है ? यह बान सुन कर थोड़ी देर के लिए दुर्योधन प्रसन्न हो गये । पर पीछ से मुँह लटका कर कहने लगे। हे कर्ण ! तुमने जो कहा उससे बढ़ कर प्रसन्नता की बात और नहीं हो सकती । भीम और अर्जुन की छाल और मृगचर्म, और द्रौपदी को गेमा वस्त्र पहने देख हमारे मब दुःख दूर हो जायेंगे, इसमें सन्देह ही क्या है ? किन्तु पिता की आज्ञा कैसे मिलेगी ? उसके लिए क्या करें ? तुम शकुनि से सलाह करके हमें इसका उपाय बताओ। तुम जिस तरह कहोगे हम सब मिल कर उसी के अनुसार विनती करके किसी न किसी तरह पिता से आज्ञा प्राप्त कर लेंगे। दुर्योधन की बात सुन कर कर्ण और शकुनि अपने अपने घर चले गये। दूसरे दिन सबेरे दोनों भाई आकर हँसते हुए कहने लगे :- महाराज ! उपाय ठीक हो गया। सुनिए द्वैतवन के पाम अहीरों की जो बस्तियाँ हैं उनकी निगरानी रखना आपका ज़रूरी काम है । अतएव उनकी देख-भाल करने के लिए जाने की आज्ञा आपके पिना जरूर ही दे दंग।