पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१६८

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१४४ सचित्र महाभारत [ पहला खण्ड सा समय भी उसे कल्प तुल्य जान पड़ता था। ठीक समय पर वह उस अँधेरे स्थान में पहुँचा। भीमसेन वहाँ पहले ही से पहुँच गये थे और एक कोने में बैठे थे । मोहान्ध कीचक उन्हें द्रौपदी समझ कर कहने लगा :- देखो, असंख्य स्त्रियों से भरा हुआ अपना घर छोड़ कर हम तुम्हारे लिए यहाँ आये हैं। स्त्रियाँ सदा कहा करती हैं कि हमारी तरह सुन्दर आदमी दुनिया में और कहीं नहीं देखा । __ तुमने भी ऐसा म्पर्श-सुख कभी न पाया होगा-- यह कह कर भीमसेन झपटे और कीचक के बाल पकड़ कर उस पर आक्रमण किया । कीचक चौंक पड़ा । बड़े जोर से बाल छड़ा कर भीमसेन के दोनों हाथ उसने पकड़ लिय । तब उस अन्धकार में महा भयङ्कर बाहु युद्ध होने लगा। पहले कीचक ने भीम पर बड़े वेग से आघात किया। पर भीम उससे ज़ग भी न घबगये। वं उस घर के बीच में खींच लाये और इधर उधर रगेदने लगे। क्रोध के मार भीम बड़ी अधीरता से लड़ रहे थे । इमस अवसर पाकर कीचक ने टाँग मारी और एकदम से भीम को ज़मीन पर गिरा दिया। पर भीम ने इसकी कुछ भी परवा न की। उठ कर पहले की अपेक्षा दुने क्रोध और दूनी सावधानी से उन्होंने फिर कीचक पर आक्रमण किया। उन्होंने कीचक के एक ऐसा धक्का माग कि वह ज़मीन पर गिर पड़ा और उठने के योग्य न रहा । धक्का खाने और गिरने से कीचक को निर्बल देख कर भीम फिर उसके बाल पकड़ कर घसीटने लगे। इससे उस बड़ा कष्ट हुआ । जब कुछ उपाय न चला तब कीचक जोर से चिल्लाने लगा। तब भीमसन ने उमका गला दबा कर बोल बन्द कर दिया ओर कमर में हाथ देकर पशुओं की तरह मार डाला। कीचक के मर जाने पर भी भीम का क्रोध शान्त न हुआ । उन्होंने उसके शरीर को ज़मीन पर कई बार ज़ोर ज़ोर से रगड़ा। फिर उसके हाथ, पैर और सिर उसके पेट के भीतर घुसेड़ दिये । इससे उसकी देह की ऐसी दुर्दशा हो गई कि यह पहचानना मुश्किल हो गया कि यह मनुष्य की लाथ है। इधर पाम ही के घर में बैठी हुई द्रौपदी युद्ध के समाप्त होने की राह देख रही थी। भीमसेन ने उस बुला कर आग जलाई और उस मुर्दे की ठोकर मार कर द्रौपदी की निगाह के सामने कर दिया । फिर कहा :- देखो, इस कामी की कैसी दुर्दशा हुई है। जा तुम्हाग अपमान करेगा उसकी यही दशा होगी। यह कह कर भीमसेन चल दिये। । तब द्रौपदी ने सभासदों को कहला भेजा :- हे सभासद ! देग्वा, जिस आदमी ने हमाग अपमान किया था, उसकी हमारे गन्धर्व-पतियों ने कैसी दुर्दशा की है। तब सब लोग मशालें ले लेकर नाचघर में पहुँचे और मृत कीचक का हाथ, पैर और मस्तक- रहित तथा खून से लथपथ शरीर देख कर बड़े विस्मित हुए । उन्हें निश्चय हो गया कि यह काम मनुष्य का नहीं, किन्तु गन्धर्वो ही का है। कीचक के महाप्रतापी आत्मीय लोग भी धीरे धीरे वहाँ आये और चारों ओर बैठ कर रोने लगे। जब अन्त्येष्टि-क्रिया की तैयारी की बातचीत हो रही थी तब कीचक के भाइयों ने पास ही खड़ी हुई द्रौपदी को देख कर कहा :- हे भाइयो ! जिसके लिए हमारे भाई का नाश हुआ, यह देखो, वही पापिनी खम्भे को पकड़े खड़ी है। इसलिए इसे मारो। अथवा इस समय इसे मारने की ज़रूरत नहीं । कीचक की चिता के साथ इसे भस्म कर देना चाहिए। ऐसा करना इस लोक में न सही तो परलोक में ता अवश्य ही कीचक की प्रसन्नता का कारण होगा।