पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१७१

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पहला खण्ड ] पाण्डवों के अज्ञात वास की समाप्ति १४७ द्रोणाचार्य ने कहा:-पाण्डव लोग बड़े वीर, विद्वान, बुद्धिमान् और जितेन्द्रिय हैं। इसलिए वे मरे न होंगे। वे ज़रूर कहीं छिपे हुए समय की प्रतीक्षा करते होंगे । अतएव अच्छी तरह खोज करना बहुत ज़रूरी है। भीष्म ने कहा :-हमारा भी यही विश्वास है कि पाण्डव लोग मरे नहीं । धर्मराज बड़े समझदार हैं। इसलिए हम समझते हैं कि वे भाइयों और स्त्री के साथ किसी नीतिमान् सुशील राजा के हरे-भरे नगर में रहते होंगे। पाण्डव लोग आसाधारण बुद्धिमान और चतुर हैं। उनका पता लगा लेना किसी सामान्य आदमी का काम नहीं। कृपाचार्य ने कहा :-हमारी समझ में महात्मा भीष्म का कहना बहुत ठीक है ! पर पाण्डवों के प्रतिज्ञा किये हुए तेरह वर्ष पूरे होने में अब थोड़े ही दिन बाक़ी हैं। इसलिए उनके अभ्युदय के पहले ही हम लोगों को सब बातों की सलाह और तैयारी कर लेनी चाहिए । हे राजन् ! इस समय आप अपना खज़ाना और बल बढ़ाइए और सब कायदे कानून-ठीक कर लीजिए। इसके सिवा अपने सहायकों, मित्रों और सेना के सिपाहियों के सामर्थ्य की जाँच भी कीजिए। इसके बाद पाण्डवों का बल देख कर हम बतावेंगे कि उनके साथ मेल कर लेना चाहिए या लड़ाई। ___ इसके पहले कीचक की मदद से विराट ने त्रिगतराज को कई बार परास्त किया था । इस समय त्रिगतराज ने अच्छा अवसर हाथ आया जान कणे की तरफ़ देख कर कहा :- हे दुर्योधन ! महापराक्रमी कीचक के मारे जाने से विराटराज का घमण्ड ज़रूर चूर हो गया होगा। वे इस समय जरूर निराश्रय हो गये होंगे। क्योंकि उनकी सहायता करनेवाला अब कोई नहीं रहा। इसलिए यदि हम लोग मिल कर मत्स्यराज पर आक्रमण करें तो अवश्य हमारी जीत होगी और वहाँ की बहुत सी गायें, धन और रन हम लोगों को मिलेंगे। उन्हें हम लोग आपस में बाँट लेंगे। इसके सिवा मत्स्यराज हाथ में आ जाने से तुम्हारा बल भी ज़रूर बढ़ जायगा । त्रिगतराज, सुशर्मा की बात का अनुमोदन करके कर्ण ने दुर्योधन से कहा :- ___महाराज ! त्रिगत्तराज ने बड़े मौत की बात कही है । इसलिए यदि बुद्धिमानों में श्रेष्ठ भीष्म, द्रोणाचार्य और कृपाचार्य इस अच्छा समझे तो हम लोग शीघ्र ही मत्स्यगज पर आक्रमण करें। दरिद्र और निबल पाण्डवा की खज करने में समय वृथा नष्ट करने से तो अपना बल बढ़ाना अच्छा है। कर्ण की बात से प्रसन्न होकर दुर्योधन ने दुःशासन की आज्ञा दी :- भाई ! तुम वृद्ध लोगों से सलाह करके शीघ्र ही सेना तैयार करी । इससे बाद त्रिगत्तराज अपनी सेना सजा कर कृष्णपक्ष की सप्तमी का मत्स्यराज की ओर चलं। कौरव लोग भी विराटराज पर आक्रमण करने के इरादे से दूसरे दिन भिन्न मार्ग से रवाना इधर गुप्त वेशधारी पाण्डव लोग विराटराज के सब काम अच्छी तरह करते थे। जिस तरह कीचक उनकी सहायता करते थे उसी तरह वे भी उनकी यथेच्छ सहायता करते थे । इस तरह प्रतिज्ञा किये हुए अज्ञात वास का समय वे लोग बिता रहे थे। इसी समय त्रिगर्तराज ने मत्स्यदेश पर चढ़ाई करके विराट नगर के एक प्रान्त से बहुत सी गायें हरण कर ली। तब गायों की रक्षा करनेवाले ग्वाले शीघ्र ही रथ पर सवार होकर बहुत जल्दी पुरी में पहुँचे