पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१७२

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१४८ सचित्र महाभारत [पहला खण्ड और पाण्डवों से घिरे हुए विराटराज जहाँ बैठे थे, वहाँ रथ से उतर पड़े। फिर राजा के पास जाकर वे प्रणामपूर्वक बोले :- महाराज ! त्रिगर्त लोगों ने बड़ी भारी सेना लेकर हम लोगों पर आक्रमण किया और आप की हजारों गाये छीने लिये जा रहे हैं । आप रक्षा कीजिए । यह सुनते ही विराटराज ने ग्थ, हाथी, घोड़े और पैदल सेना का लड़न के लिए तैयार होने की आज्ञा दी। विराट की आज्ञा पाकर राजपुरुष बड़ी व्यग्रता से चित्रविचित्र कवच धारण करके युद्ध के लिए तैयार होने और सब सामानों से लैस रथां में लोहे की झूलें पड़े हुए घोड़े जुतने लगे। श्रीमान मत्स्यराज के सुन्दर सुनहले रथ पर उनकी पताका फहरात ही महाबली क्षत्रिय लोग अपने अपने रथों पर सवार हो गये। विराटराज ने कहा :-महावीर कङ्क, वल्लभ, तन्त्रिपाल और प्रन्थिक भी युद्ध करेंगे। इसलिए उन्हें अच्छे रथ, मजबूत कवच और तरह-तरह के हथियार दिये जायें। राजा की आज्ञा पाकर युधिष्ठिर, भीम, नकुल और सहदव उत्तमात्तम हथियार लेकर प्रसन्नता- पूर्वक रथ पर सवार हुए और मत्स्यगज के पीछे-पीछे चल । महाबली मत्म्यसना न दोपहर के पहले ही नगर के बाहर निकल कर गायों को हरण करनेवाले त्रिगत पर आक्रमण किया । ज्यां ही युद्ध- कुशल योद्धा लोग मैदान में पहुँच त्यों ही घोर युद्ध होने लगा । दोनों तरफ का बल बराबर था। इसलिए बड़ी देर तक काई किसी को हग न सका । मरे हुए सिपाहियों का खून बहने से पृथ्वी पर कीचड़ ही कीचड़ हो गया । इसी दशा में सूर्य अन्न हुआ। युद्ध के मैदान में अँधग छा जान म थाड़ी देर के लिए लड़ाई रुक गई। अन्धकार को दूर करकं ज्यों ही आकाश में चन्द्रमा उदित हुआ त्यां ही क्षत्रियों ने फिर एक दूसरे पर धावा किया । इतने में त्रिगत-नरेश सुशर्मा ने अपने छोटे भाई को रथ में बिठा कर विराटराज पर आक्रमण किया और पास जाकर हाथ में गदा लिये हुए शीत्र ही रथ से उतर पड़े। विराट के रथ के निकट बड़ी शीव्रता से पहुँच कर उन्होंने उनके सारथि का मार गिराया। फिर विराट को पकड़ कर अपने ग्थ पर बिठा लिया और उन्हें लंकर भागे। इससे सैनिक लोग ब-तरह डर गये और इधर उधर भागने लगे। यह दशा देख युधिष्ठिर ने भीम से कहा :- हे भीम ! यह देखो, सुशर्मा विराट को लिये जा रहे हैं। अब तक हम लोग इन्हीं के आश्रय में सुख और स्वतन्त्रता से रहे है। इसलिए तुम्हें उचित है कि उसके बदले में उनका शत्र के हाथ से शीत्र ही छुड़ाओ। भीम ने कहा :-आपके कहने के अनुसार हम महाराज का अभी छुड़ाये लात हैं । यह सामन- वाला पेड़ उखाड़ कर उसस वैरियों का हम संहार करने जाते हैं। __युधिष्ठिर ने कहा :-हे भीम ! तुम्हें ऐसा अद्भुत युद्ध न करना चाहिए। नहीं तो सब लोग तुम्हें पहचान जायँगे । हमारी समझ में इस समय साधारण रीति से युद्ध करके अपना काम निकालना ही अच्छा है। तब महाबली भीमसेन धनुष लकर धड़ाधड़ बाणों की वर्षा करते हुए सुशर्मा के रथ के पीछे दौड़े। त्रिगतराज ने पीछे फिर कर देखा कि भीमसेन साक्षात् यम के समान आ रहे हैं। इसलिए उन्होंने रथ फेर दिया और युद्ध करने लगे। ज़रा ही देर में बहुत सी सेना मार कर क्रोध से भरे हुए भीमसेन त्रिगतराज के पास जा पहुंचे। इस बीच में अन्य पाण्डव लोग भी उनकी मदद के लिए वहाँ