पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१७३

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पहला खरड ] पाण्डवों के अज्ञात वास की समाप्ति जल्दी से पहुँच गये। सब लोगों ने एक ही साथ एसा भीषण युद्ध किया कि त्रिगत्तों की सारी सेना कट गई। इतने में मौका पाकर भीमसेन ने सुशर्मा के सारथि को मार डाला और उनके रथ पर चढ़ कर विराट के बन्धन खोल दिये। फिर सुशा को रथ से गिरा कर पकड़ लिया। यह देख कर युधिष्ठिर ने हँसते-हँसते कहा :- इस बार तो त्रिगतराज हार गय । अब उन्हें छोड़ दो। फिर उन्होंने सुशर्मा से कहा :- इस द] ता तुम्हें छोड़ देते हैं । पर दूसरं के धन के लोभ में आकर ऐसे साहस का काम अब कभी न करना। युधिष्ठिर की कृपा से छूट कर लज्जा से सिर झुकाये हुए त्रिगर्त्तगज ने विराट को प्रणाम किया और वहाँ से चल दिया। विराट ने वह रात लड़ाई के मैदान ही में बिताई। दूसरं दिन सबरं पाण्डवों को बहुत सा धन देने की आज्ञा देकर वे कहने लगे :- तुम्हार ही पराक्रम से हम छूट हैं; तुम्हारी ही कृपा से हमारी मान-रक्षा हुई है । आज से हमारे मारं धन-रन के हमारी ही तरह तुम भी मालिक हुए। तुमने हमें शत्रु के हाथ से बचाया है । इसलिए तुम्ही यहाँ राज्य करो। ____ पाण्डव लोग हाथ जोड़ कर विगट के मामने खड़े हुए और उनकी कृतज्ञता-भरी बातों का उन्होंने अभिनन्दन किया । तदनन्तर सबकी तरफ से युधिष्ठिर ने कहा :- महाराज ! हम इसी से बड़े सन्तुष्ट हैं कि आप शत्रु के हाथ से बच गये । इस समय दूता को नगर में भेजिए । वे जाकर सब लोगों का खुशखबरी सुनावें और सारे नगर में आपकी विजय- घोषणा करें। ___ इधर राजा नगर में लौटने भी न पाये थे कि दुर्योधन, भीष्म, द्रोण, कर्ण आदि ने कौरव-सेना लेकर विराट-नगरी घेर ली और ग्वालों को मार-पीट कर साठ हजार गायें अपने अधिकार में कर ली। उन लोगों का गायें ले जात देख ग्वालों का सरदार घबराया हुआ गजभवन में पहुँचा और राजकुमार उत्तर में बाला :- कौरव लोग आपकी साठ हजार गाय ज़बरदस्ती लिये जा रहे हैं। इसलिए आप जो उचित समझिए कीजिए। महाराज साग राज-काज आपको सौप गये हैं। इसलिए आप ही अब शत्रु को दण्ड देने का यत्न कीजिए। कुमार उत्तर उस समय स्त्रियों के बीच में बैठे थे । इस बात को सुन कर व शेती के साथ कहने लगे :- यदि हमें एक अच्छा सारथि मिल जाय तो हम युद्ध में शत्रुओं का सहज ही में मार डालें और कौरवों को आज ही अपना बलवीर्य दिखला दें। राजपुत्र की यह बात सुन कर अर्जुन ने एकान्त में द्रौपदी से कहा :-- प्रिये ! तुम राजकुमार उत्तर से कहो कि पाण्डवों का सारथि बन कर बृहन्नला ने एक बार एक बड़ी भारी लड़ाई जीती थी। इसलिए उसे सारथि बना कर आप सहज ही युद्ध में जा सकते हैं। अर्जुन के कहने के अनुसार द्रौपदी राजकुमार के पास गई और लजाती हुई धीरे-धीरे कहने लगी :-