पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१७६

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१५२ सचित्र महाभारत [पहला खण्ड , दिव्य अस्त्र चलाना सीख आये हैं। हम लोगों में कोई भी ऐसा नहीं जो उनका मुक्ताबला कर सके । इस पर कर्ण बोले :- हे प्राचार्य ! अर्जुन की प्रशंसा और हम लोगों की निन्दा श्राप सदा ही किया करते हैं। पर यदि हम और दुर्योधन दोनों युद्ध करेंगे तो अर्जुन की क्या मजाल कि हमें हरा सकें। इस बात से प्रसन्न होकर दुर्योधन बोले :- हे कर्ण ! यह स्त्री-वेश-धारी पुरुप यदि सचमुच ही अर्जुन हो तो बिना लड़े ही हमाग मतलब सिद्ध हो जायगा। क्योंकि प्रतिज्ञा किये हुए तेरह वर्ष समाप्त होने के पहले ही हम उन्हें पहचान लेंगे। इससे पाण्डवों को फिर बारह वर्ष वनवास करना पड़ेगा। और यदि और ही कोई यह अदभुत वेश बना कर आया है तो हम उसे ज़रूर मार डालेंगे। ___ इधर अर्जुन ने उत्तर से उसी शमी वृक्ष के पास चलने को कहा । वे बोले :- हे राजकुमार ! यह तुम्हारा धनुप-बाण बहुत ही कमजोर है। लड़ाई के समय हमारे बाहुबल को यह न सह सकेगा । इस पेड़ पर पाण्डवों ने अपने हथियार रकम्व हैं। इस पर चढ़ कर तुम उन्हें ले आओ। उन्हीं को लेकर हम युद्ध करेंगे। उत्तर ने कहा :-हमने सुना है कि इस पंड पर एक मुर्दा बँधा है। हम गजकुमार हैं। इसलिए इम अपवित्र चीज़ को कैसे छू सकते हैं ? ____ अर्जुन ने कहा :-कपड़े में लिपटे हुए हथियार मुर्दे की तरह जान पड़ते हैं। हम जानते हैं कि तुम अच्छे कुल में उत्पन्न हुए हो । यदि कोई अपवित्र चीज़ होती तो उसे छूने के लिए हम तुमसे कभी न कहते। ___ अर्जुन के कहने से उत्तर उस शमी वृक्ष पर चढ़ गये और हथियारों को ज़मीन पर उतार कर उन्हें खोला । पाण्डवों के धनुप-बाण आदि मब अस्त्र-शस्त्र एक-एक करके उन्होंने बाहर निकाले । उन बड़े बड़े सुनहले हथियारों को देख कर उत्तर बड़े विस्मित हुए और पूछने लगे :- पाण्डवों के हथियार तो सब माफ रकग्वे हैं, पर वे लोग इस समय कहाँ हैं ? प्रसिद्ध स्त्री-ग्न द्रौपदी भी उनके साथ वन में गई थीं: उनका भी कुछ पता है ? तब अर्जुन ने उत्तर से अपना और अन्य पाण्डवों का सच्चा हाल कह सुनाया। उत्तर चौंक पड़े। उन्होंने विनयपूर्वक अर्जुन को प्रणाम करके कहा :- हे महाबाहु ! बड़े सौभाग्य की बात है जो आपके दर्शन हुए। अज्ञानता के कारण यदि कोई अनुचित बात हमारे मुँह से निकल गई हो तो हमें क्षमा कीजिए। आपका परिचय पाने से हमारा सब डर दूर हो गया । हम बड़ी प्रसन्नता से आपके सारथि बनेंगे । बताइए, किस तरफ़ चलना होगा। अर्जुन ने कहा :-हे राजकुमार ! हम तुम पर बहुत प्रसन्न हुए हैं। तुम ब-खटके शत्रुओं के बीच में रथ ले चलो। हमने बहुत दफे अनेक लोगों के साथ अकेले युद्ध किया है। अब तो महादेव की कृपा से हमें कितने ही दिव्यास्त्र प्राप्त हो गये हैं। इसलिए जीत में कोई सन्देह नहीं। यह कह कर अर्जुन ने स्त्रियों का वेश बदल डाला और हथियारों के साथ रक्खा हुआ कवच पहन कर सफेद कपड़े से बालों को ढक लिया। फिर सारे शस्त्रास्त्र और गाण्डीव लेकर अत्यन्त भयङ्कर धनुपटङ्कार और महा विकट शङ्खध्वनि करते हुए वे कौरवों की ओर चले। यह देग्य द्रोणाचार्य कहने लगे :-- हे.कौरवगण ! देखो इनके रथ की चाल से पृथ्वी काँपती है। अतएव ये निश्चय ही अर्जुन हैं। इनकी परिचित धनुषटकार और शङ्खध्वनि सुन कर योद्धा लोग सहम गये हैं और उनके चेहरे पीले