पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१७८

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१५४ सचित्र महाभारत [पहला खण्ड और कोई नहीं है । हे आचार्य-पुत्र ! यह आपस के झगड़े का समय नहीं। इसलिए तुम भी क्षमा करके युद्ध में शामिल होगी। तब अश्वत्थामा ने कहा :- हमारी भी इच्छा विवाद करने की नहीं । पिता ने तो एक उदार याद्वा की तरह शत्र के गुणों का केवल वर्णन किया था । पक्षपात की उन्होंने कोई बात नहीं की। दुर्योधन ने भी द्रोण से कहा :- महाशय ! क्षमा कीजिए। आपके सन्तुष्ट रहने ही से हमारी भलाई है । द्रोण ने उत्तर दिया :- महात्मा भीष्म की बात ही से हम प्रसन्न हो गये हैं। फिर वे भीष्म से बोले :- ह भीष्म ! दुर्योधन की रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य है । यह नहीं हो सकता कि तरह वर्ष पूरे होने के पहले ही अर्जुन ने अपने को प्रकट कर दिया हो। इसलिए हिसाब लगा कर पहले इस बात का निश्चय कर लेना चाहिए। कुछ देर साच कर भीष्म ने कहा :- ताराओं की चाल में अन्तर होने के कारण हर साल कई दिन बच रहते हैं । फल यह होता है कि प्रति पांचवें वर्ष दो महीने बढ़ जाते हैं। इसलिए यद्यपि साधारण हिसाब से तरह वर्ष पूरे होने में कई दिन बाकी हैं, तथापि उक्त गणना के अनुसार पाण्डवों के निश्चित तरह वर्ष पूरे हो गये। यही नहीं, किन्तु पाँच महीने छः दिन और अधिक हो गये । इसी लिए आज अर्जुन लड़ाई के मैदान में इस तरह बे-खटके विराजमान हैं। अब इसके सिवा और कोई उपाय नहीं कि बड़ी होशियारी से युद्ध किया जाय । अतएव धर्म के अनुसार युद्ध करना चाहिए। यह तो निश्चित ही है कि एक पक्षवालं जीतेंगे और दूसरे पक्षवाले हारेंगे। इसलिए इसकी चिन्ता करना व्यर्थ है । हमाग उपदंश सुनिए-यह सारी संना चार भागों में बाँट दी जाय । एक भाग की रक्षा में दुर्योधन शीघ्र ही अपने नगर लौट जायें । दूसरा भाग गायें लेकर जाय । बाकी दो भागों से हम लोग अर्जुन का मुकाबला करें। इस बात को सब लोगों ने पसन्द किया। भीम ने पहल तो दुर्योधन को, फिर गायों का, हस्तिनापुर की ओर रवाना किया। इसके बाद वे मारचाबन्दी करने के लिए तैयार हुए। वे बोल :- हे प्राचार्य ! आप बीच में रहें। अश्वत्थामा बाई तरफ़ और कृपाचार्य दाहिनी तरफ रहें । कर्ण आगे बढ़ें और हम पीछे मदद करने के लिए रहें। सब लोग सज कर अर्जुन के आने की प्रतीक्षा कर ही रहे थे कि इतने में द्रोणाचार्य को बहुत दिनों के बाद अपने प्यारे शिष्य के दर्शन हुए। वे सब की तरफ़ देख कर कहने लगे :- यह सुनो, गाण्डीव की भयङ्कर टङ्कार सुनाई देती है। देखो, दो बाण तो हमारे पैरों तले श्रा गिरे और अन्य दो कानों को छूकर सनसनाते हुए निकल गये। इनके द्वारा माबली अर्जुन हमारे पैर छूते हैं और कुशल पूछते हैं। तब निकट पहुँच कर अर्जुन ने राजकुमार उत्तर से कहा :- हे सारथि ! तुम घोड़ों की रास खींचो; रथ को खड़ा करी । हम यह देखना चाहते हैं कि कुरु- कुलाधम दुर्योधन इस सेना में कहाँ पर है। अन्य कौरवों से लड़ने की कोई जरूरत नहीं। दुर्योधन के हारते ही सब हार जायेंगे। पर वह तो इन लोगों में कहीं देख नहीं पड़ता। यहां से कुछ दूर सेना के