पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१८३

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पहला खण्ड ] पाण्डवों के अज्ञात वास की समाप्ति १५९ युधिष्ठिर को इस तरह डाँट कर विरांट ने उनके मुँह पर बड़े जोर से पाँसे फेंक कर मारे । इसस धर्मराज की नाक से खून बहने लगा। यह देख कर सैरिन्ध्री सोने के एक लोटे में जल ले आई और उनकी सेवा करने लगी। ___इसी समय राजकुमार उत्तर महल के दरवाजे पर आ पहुँचे । द्वारपाल ने उनके आने की खबर राजा का दी । मत्स्यराज ने बहुत प्रसन्न हो कर कहा :- __हे द्वारपाल ! उत्तर और बृहन्नला को शीघ्र भीतर ले आओ। उन्हें देखने के लिए हम बड़े व्याकुल हैं। यह सुन कर युधिष्ठिर ने द्वारपाल को अलग ले जाकर उसके कान में कहा :- ऐसा करना जिसमें बृहन्नला कुछ देर बाद आवे । नहीं तो, यदि वह देख लगा कि अकारण ही हमारी नाक से खून गिरा है तो महाराज न बचेंगे। ___ कुमार उत्तर ने सभा में आकर पिता के पैर छुए और कङ्क को प्रणाम किया ! उन्होंने देखा कि युधिष्ठिर का मुँह खून से लथपथ है। इससे व्याकुल होकर पिता से पूछा :-- हे पिता ! इन्हें किसने मारा ! किस साहसी को यह पाप करने की हिम्मत हुई ? विराट ने कहा :---पुत्र ! तुम्हारी जीत सुन कर हम बड़े प्रसन्न हुए । इससे हम तुम्हारी प्रशंसा करने लगे। पर यह ब्राह्मण हमारी बात न मान कर बार बार बृहन्नला की प्रशंसा करने लगा। इसलिए हमी ने इसे मारा है। उत्तर ने कहा :--महाराज ! आपने बड़ा अन्याय किया। इनका शीव ही प्रसन्न कीजिए । नहीं तो ब्रह्मशाप से आप अवश्य ही नष्ट हो जाइएगा। जब विराट ने धर्मराज से क्षमा माँगी तब उन्होंने कहा :-- महाराज ! घबराइए नहीं । हमने आपको पहल ही क्षमा कर दिया है । बलवान मनुष्य अपने अधीनां पर कभी कभी बिना कारण ही के क्रोध कर बैठते हैं । कुछ देर में युधिष्ठिर की नाक से खून निकलना बन्द हो गया। तब बृहन्नला ने आकर सबको प्रणाम किया। राजा ने उनका अभिनन्दन करके उनके सामने ही पुत्र की प्रशंसा आरम्भ की :-- वत्स ! तुम्हारे होने ही से हम सच्चे पुत्रवान् हुए । जा महाबली कर्ण दिन रात लड़ कर भी नहीं थकतं उन्हें तुमने कैसे हराया ! जिन कुरुकुल-श्रेष्ठ भीम के बराबर याद्धा तमाम दुनिया में नहीं उनसे तुमने कैसे युद्ध किया ? सब शास्त्रों में निपुण और यादवों तथा कौरवों के गुरु आचार्य द्रोण की विकट मार का तुम कैसे सह सके ? तुमने हरी हुई गायें लौटा कर बड़ा भारी काम किया है। • उत्तर ने बड़ी नरमी से कहा :- ____ हे पिता ! हमारी क्या मजाल कि ये सब भयङ्कर काम हम खुद कर सकतं । हम तो डर कर. भंग आते थे। पर एक देवपुत्र हमारे पास आया। उसी ने हमारे डर का दूर करके कौरवों को हराया और गायों का उद्धार किया। पुत्र की बात सुन कर विराट को बड़ा विस्मय हुआ। उन्होंने कहा :-- बेटा ! जिस महात्मा ने हमारा इतना उपकार किया वे इस समय कहाँ हैं ? उत्तर ने कहा :-हे पिता ! वे उसी समय अन्तर्धान हो गये थे। कल या परसां फिर प्रकट होंगे।