पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२२

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सचित्र महाभारत पहला खण्ड ] राजा शान्तनु को शिकार खेलना बहुत पसन्द था। शिकार पर उनकी बड़ी प्रीति थी। इस कारण उन्होंने गङ्गा के तट पर एक बहुत रमणीय स्थान बनवाया । वहीं जाकर कभी कभी वे रहते थे और शिकार के लिए वन वन पशुओं को ढूँढ़ते फिरते थे। एक दिन वे बहुत दूर तक वन में घूमते रहे और अनेक पशुओं को मार कर अपने स्थान को लौटे । मार्ग में उन्होंने देखा कि गङ्गा के किनारे एक अत्यन्त रूपवती स्त्री खड़ी उनको देख रही है । उस कामिनी का सुन्दर रूप, मनोहर वेश और नया यौवन देख कर राजा शान्तनु को बड़ा आश्चर्य हुआ । वे उस पर मोहित हो गये । वे उससे प्रेमपूर्वक मीठी मीठी बातें करने लगे। उन्होंने पूछा :-- हे सुन्दरी ! देवता, दानव, गन्धर्व या मनुष्य में से किस जाति को तुमने अपने जन्म से अलङ्कत किया है ? किस जाति में जन्म लेकर तुमने उसकी शोभा को बढ़ाया है ? हम तुम्हारी सुन्दरता को देख कर यहाँ तक तुम पर आसक्त हो गये हैं कि तुमसे विवाह करना चाहते हैं---तुम्हें अपनी गनी बनाना चाहते हैं। कृपा करके कहो, तुम्हारी क्या इच्छा है ? हमारे प्रश्न का उत्तर देकर हमारे हृदय के आवेग को--हमारे मन की उत्सुकता को-शान्त करो। राजा के इन मधुर वचनों को सुन कर मुसकराती हुई इस स्त्री ने इस प्रकार उत्तर दिया:-- महागज ! जब आप मुझे इतना चाहते है--जब मुझ पर आपका इतना अनुराग है-तब मैं आपको निराश नहीं कर सकती। मैं आपकी पत्नी होने को तैयार हूँ। परन्तु मुझसे आपको एक प्रतिज्ञा करनी होगी। मैं चाहे जो काम करूँ, चाहे वह अच्छा हो चाहे बुरा, आपको न तो मुझे मना करने का अधिकार होगा और न मेरा तिरस्कार करने का । यदि आप ऐसा न करेंगे-यदि आप इस प्रतिज्ञा का उल्लङ्घन करेंगे तो मैं तत्काल आपको छोड़ कर चली जाऊँगी। राजा प्रीति की फाँस में बिलकुल ही फंस चुके थे । उन्हें उस समय उचित अनुचित का ज्ञान न था । इससे बिना अच्छी तरह विचार किये ही उन्होंने उस सुन्दरी रमणी की बात मान ली। उन्होंने कहा, हमें यह प्रतिज्ञा मंजूर है। उस महारूपवती स्त्री को वे अपनी राजधानी को ले आये और अपनी सबसे बड़ी रानी बना कर उसे महलों में रक्खा। उसके साथ वे आनन्द से रहने लगे। कुछ समय बीतने पर राजा की रानी के एक पुत्र हुआ । परन्तु पुत्र होते ही रानी ने उस तत्काल जन्मे हुए बच्चे को गङ्गा में फेंक कर उसे नष्ट कर दिया। पत्नी के ऐसे अनुचित व्यवहार से राजा शान्तनु को बड़ा दुःख हुआ। उन पर वन सा गिरा । परन्तु उसे उन्होंने चुपचाप सहन किया। पत्नी के ऊपर बहुत ही अधिक प्रीति होने के कारण उससे कुछ भी उन्होंने नहीं कहा । इसी तरह एक के बाद एक ऐस सात पुत्र शान्तनु की रानी के हुए । परन्तु उन सातों को, एक एक करके, पैदा होते ही वह गङ्गा में डाल आई । इस कारण राजा का क्रोध धीरे धीरे बढ़ता गया। परन्तु अपनी प्रतिज्ञा याद करके, इस अनुचित काम से पत्नी को रोकने का उन्हें साहस न हुश्रा। वे डरे कि रोकने से वह तत्काल ही हमें छोड़ कर चली जायगी। परन्तु जब आठवाँ पुत्र हुआ और उसे भी रानी गङ्गा में फेंकने चली तब राजा से न रहा गया। पुत्र-शोक से वे अत्यन्त विह्वल हो उठे। वे रानी के पीछे पीछे दौड़े और बोले कि, खबरदार इस बालक को जल में न फेंकना। उन्होंने कहा : मैं और नहीं सहन कर सकता । हे पुत्रघातिनी ! तुम कौन हो ? क्यों ऐसा बुरा काम करती हो ? ऐसी निठुरता करना उचित नहीं । इस बालक को मैं गङ्गा में नहीं फेंकने दूंगा। इस पर उस रमणी ने उत्तर दिया-हे पुत्र की इच्छा रखनेवाले राजा ! मैं आपके कहने से इस पुत्र का नाश न करूँगी । किन्तु आपने जो प्रतिज्ञा की है-आपने जो वचन दिया है-उसके अनुसार अब मैं आपके पास नहीं रह सकती। मैं आपसे इसी समय जुदा होती हूँ। जब तक