पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१९८ सचित्र महाभारत [ दूसरा खण्ड पाण्डवों की पताका देख पड़ते ही कौरवों ने लड़ाई की चाल शुरू कर दी। भीष्म पितामह ने सब सेनाध्यक्षों को इकट्ठा करके कहा :- हे क्षत्रिय वीर ! रोग से पीड़ित होकर घर में पड़े पड़े जान दे देने की अपेक्षा युद्ध के मैदान में अस्त्रों के आघात से मर जाना ही क्षत्रियों के लिए अधिक अच्छा है। युद्ध ही को स्वर्ग में प्रवेश करने का खुला हुआ द्वार समझना चाहिए। इससे, इस समय, जिसे स्वर्ग जाने की इच्छा हो, वह इसी द्वार का आसरा लेकर जाने के लिए तैयार हो जाय । - इसके बाद कर्ण को छोड़ कर प्रत्येक सेनाध्यक्ष ने काली मृगछाला धारण कर, दुर्योधन के लिए प्राण तक देने की प्रतिज्ञा करके, प्रसन्न-मन एक एक अक्षौहिणी सेना अपने साथ ली। सेनापति भीष्म सफेद पगड़ी, सफेद कवच और सफेद छत्र धारण करके, बची हुई एक अक्षौहिणी सेना लेकर, सबके आगे चले । इसके पहले इतनी बड़ी सेना एक जगह इकट्ठी हुई कभी नहीं देखी गई थी। ____ जब युधिष्ठिर ने देखा कि दुर्योधन की इतनी विशाल सेना युद्ध के लिए तैयार है, और भीष्म ने बड़े कौशल से ऐसी मोरचाबन्दी की है कि किसी तरह धावा नहीं किया जा सकता, तब उनका मुँह उतर गया । वे बहुत उदास होकर अर्जुन से कहने लगे :-.. ___ हे धनजय ! पितामह भीष्म जब कौरवों के सेनापति हुए हैं तब कहो किस तरह हम उनके साथ युद्ध करके सफलता प्राप्त कर सकेंगे ? महातेजस्वी भीष्म ने युद्ध-शास्त्र के अनुसार जो यह व्यूह- रचना की है जो यह विकट मोरचा-बन्दी बनाई है-उसे देख कर हमारे मन में बेतरह सन्देह हो रहा है। इस व्यूह के तोड़ने अथवा इससे अपनी रक्षा करने का कोई उपाय हम नहीं देखते । अर्जुन अपने जेठे भाई को इस तरह उदासीन और निराश देख कर बोले :- महाराज ! बुद्धि, बल और पराक्रम होने से थोड़ी भी सेना बहुत अधिक सेना को हरा सकती है। उद्योगपूर्वक युद्ध करने से हमें जरूर ही सफलता होगी। आप डरिए नहीं; डरने का कोई कारण हम नहीं देखते । भीष्म के इस व्यूह को देख कर आप चिन्ता न कीजिए । हम इससे भी थोड़ी सेना लेकर इस व्यूह के जवाब में एक दूसरा व्यूह बनाना जानते हैं। इस समय हमें एक ऐसा व्यूह बनाना होगा जिसके भीतर प्रवेश करने का द्वार सुई के छेद के आकार का हो। उसके द्वार पर भीमसेन के समान कोई योद्धा रहने से शत्र उसे देख इस तरह डर कर भागेंगे जैसे सिंह को सामने देख हिरणों का झुण्ड भागता है। महाबलवान् अर्जुन ने धर्मराज को इस तरह धीरज देकर, जैसा उन्होंने कहा था वैसा ही, वजा नामवाला एक व्यूह बनाया। इसके बाद वे कौरवों की सेना की तरफ हाथी की तरह धीरे धीरे चले। इस तरह दोनों तरफ मोरचाबन्दी हो जाने पर कौरवों और पाण्डवों की सेना के वीरों के सिंहनाद और घोड़ों, हाथी और रथों आदि के कोलाहल से दसों दिशायें व्याकुल हो उठीं। दोनों सेनाओं की चाल से उड़ी हुई धूल ने अाकाशमण्डल को बिलकुल ही छा लिया-यहाँ तक कि दिन-दोपहर घोर अन्धकार हो गया। दोनों दल एक दूसरे के सामने आ जाने पर अपनी अपनी जगह पर ठहर गये। तब कहीं धूल का उड़ना कुछ कम हुश्रा और आकाश थोड़ा बहुत साफ हो गया। नये निकले हुए सूर्य के प्रकाश में सोने की झूलों और हौदों से शोभित हाथी, और सोने ही के परदे पड़े हुए रथ, इस तरह मालूम होने लगे जैसे मेघमण्डल में बिजली चमक रही हो । योद्धा लोग चमकते हुए चित्र-विचित्र कवचों से सजे हुए अग्नि और सूर्य की तरह प्रकाशमान देख पड़ने लगे। - धनुष, बाण, तलवार, गदा, शक्ति और दूसरे प्रकार के सैकड़ों अस्त्र-शस्त्रों से सजे हुए दोनों सेना-दल ऐसे मालूम होने लगे जैसे प्रलय होने के समय सैकड़ों तरह के उन्मत्त मगर आदि जल-जीवों से पूर्ण, उछलते हुए, दो समुद्र मालूम होते हैं। सोने के कामवाले, जलती हुई आग के समान उज्वल, नाना