पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२२९

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दूसरा खण्ड ] युद्ध का प्रारम्भ २०१ वेद जाननेवालों में सबसे श्रेष्ठ व्यासजी ने जब सुना कि दोनों पक्षों की प्रचण्ड सेना युद्ध के मैदान में युद्ध करने के लिए तैयार खड़ी है तब वे धृतराष्ट्र के पास आये। धृतराष्ट्र ही की अनीति और अन्याय से युद्ध की नौबत आई थी। इससे इस युद्ध को अपनी ही अनुदार नीति का परिणाम समझ कर धृतराष्ट्र इस समय बहुत शोकाकुल हो रहे थे । व्यासजी उन्हें इस दशा में देख कर एकान्त में ले गये और बोले :- हे गजन् ! काल बड़ा बली है। वही सब कुछ करता है। उसी के कारण आज इस युद्ध का उपक्रम हुआ है । तुम्हारे पुत्र और भतीजे आदि परस्पर एक दूसरे को मरने मारने पर जो उतारू हैं उनके लिए तुम शाक न करो । हे पुत्र ! यदि युद्ध के मैदान में उन्हें देखने की तुम्हारी इच्छा हो तो हम तुम्हें दिव्य चक्ष दे सकते हैं-तुम्हारे हृदय की आँखें हम खोल सकते हैं। युद्ध में जो कुछ होगा वह सब तुम उनसे देख सकोगे। धृतराष्ट्र ने कहा :-हे ब्रह्मर्षि ! अपनी जातिवालों का वध देखने की हमारी इच्छा नहीं । परन्तु आपकी कृपा से युद्ध का सारा हाल हम सुनना चाहते हैं। व्यासजी ने धृतराष्ट्र की बात सुन कर सञ्जय को वर दिया और कहा :- सञ्जय तुमसे युद्ध का सब हाल कहेगा । युद्ध की कोई बात इससे छिपी न रहेगी-गुप्त हो या प्रकट, दिन में हो या रात में, जो कुछ होगा सञ्जय को सब मालूम हो जाया करेगा। न इसे अस्त्र-शस्त्र से कोई बाधा पहुँच सकेगी, न परिश्रम से इसे थकावट ही मालूम होगी। हे भरतश्रेष्ठ ! तुम शोक न करो। हम कौरवों और पाण्डवों की इस कीर्ति को चिरकाल के लिए विख्यात कर देंगे। महात्मा व्यास धृतराष्ट्र को इस तरह धीरज देकर चले गये। व्यास के दिये हुए वर के प्रभाव से सजय प्रति दिन युद्ध के मैदान में, बिना किसी विघ्न-बाधा के, घूमा किये, और सायङ्काल, युद्ध समाप्त होने पर, सारा हाल धृतराष्ट्र से कहते रहे । ३-युद्ध का प्रारम्भ दोनों तरफ से युद्ध की तैयारी हो चुकी । युद्ध प्रारम्भ करने का समय आ गया। सेनापति लोग अपनी अपनी सेना को आगे बढ़कर भिड़ जाने की आज्ञा देने ही को थे कि इतने में एक आश्चर्यजनक बात हुई। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने अस्त्र-शम्ब रख दिये और रथ से उतर कर वे कौरवों की सेना की तरफ पैदल ही चले । अपने जेठे भाई का यह अद्भुत आचरण देख कर पाण्डवों को बड़ी चिन्ता हुई ! वे भी अपने अपने रथ से उतर पड़े और युधिष्ठिर के पीछे पीछे दौड़े। अर्जुन के साथ कृष्ण भी चले। और भी कितने ही राजा लोग उसी तरफ़ को रवाना हुए। उन्हें बड़ा कौतूहल हुआ कि बात क्या है जो युधिष्ठिर इस तरह अचानक कौरवों की सेना की तरफ जा रहे हैं। और तो कोई न बोला, पर अर्जुन से न रहा गया। उन्होंने पूछा :- हे धर्मराज ! आप क्यों इस तरह पैदल ही शत्रों की सेना में जा रहे हैं ? अर्जुन को इस तरह पुकारते देख भीमसेन ने भी कहा:- सारी सेना युद्ध के लिए तैयार खड़ी है। ऐसे समय में हथियार डाल कर आप कहाँ जा रहे हैं ? फा०२६