पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२३२

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२०४ सचित्र महाभारत [ दूसरा खराब इसके अनन्तर मामा की मानमर्यादा के अनुसार बहुत कुछ नम्रता दिखा कर भाइयों को साथ लिये हुए युधिष्ठिर अपने शत्रु कौरवों की सेना से बाहर निकल आये। इस बीच में कर्ण को कौरवों के पक्ष से अलग कर लेने की फिर एक बार चेष्टा करने के इरादे से कृष्ण कर्ण के पास गये थे। कर्ण से मिल कर कृष्ण ने कहा :- हे वीर ! सुनते हैं, भीष्म के जीते रहते तुम युद्ध न कर सकोगे। अतएव तुम्हारा अपमान करने- वाले भीष्म जब तक मार न जाये तब तक तुम्हारे लिए यही बेहतर होगा कि तुम हमारी तरफ होकर युद्ध करो। उनके मारे जाने पर तुम फिर दुर्योधन की सहायता करने चले जाना और उनकी तरफ होकर लड़ना । । कर्ण ने कहा :-हे केशव ! दुर्योधन की इच्छा के विरुद्ध हम कोई काम न कर सकेंगे। आप इस बात को निश्चय समझिए कि हम उनके भले के लिए अपने प्राण तक दे देने में सङ्कोच न करेंगे। कृष्ण का मनोरथ इस दफे भी सफल न हुआ । लाचार होकर वे कर्ण के पास से लौट आये और पाण्डवों से आ मिले। जिस समय युधिष्ठिर कौरवों की सेना से बाहर होने लगे उस समय उन्होंने जोर से पुकार कर कहा :- यदि कौरवों के पक्षवालों में से हमारा कोई हितचिन्तक हो-हमारा कोई भला चाहनेवाला हो-तो वह हमारे पास निःशङ्क चला श्रावे । हम उसे प्रेमपूर्वक अपने पक्ष में लेने को तैयार हैं। धृतराष्ट्र के एक वेश्या थी। उसके गर्भ से उनके एक पुत्र था। उसका नाम युयुत्सु था। उसने सबकी तरफ़ देख कर युधिष्ठिर की बात का इस प्रकार उत्तर दिया :- हे धर्मराज ! हम तुम्हारी तरफ होकर कौरवों के साथ युद्ध करेंगे। युधिष्ठिर ने कहा :-भाई ! आश्रो, सब इकट्ठे होकर तुम्हारे इन मूर्ख भाइयों के साथ युद्ध करें। हम प्रसन्नतापूर्वक तुम्हें अपने पक्ष में लेते हैं। यह बात अब साफ मालूम हो रही है कि धृतराष्ट्र के बुढ़ापे की लकड़ी अकेले तुम्ही होगे। तुम्हीं उनके वंश की रक्षा करोगे; तुम्हारे और सब भाई जरूर ही इस युद्ध में मारे जायेंगे। युधिष्ठिर को अपने गुरुजनों और माननीय पुरुषों की मान-मर्यादा की रक्षा करते देख, जितने राजा लोग वहाँ उस युद्ध के मैदान में थे सबने उनकी बार बार प्रशंसा की। चारों तरफ से दुंदुभि और भेरी के शब्द सुनाई पड़ने लगे । पाण्डवों के पक्ष के वीर अानन्द से फूल उठे और सिंह की तरह गजने लगे। युधिष्ठिर फिर रथ पर सवार हुए और फिर उन्होंने अपने अस्त्र-शस्त्र धारण किये । उनके भाई और दूसरे राजा लोग भी रथों पर सवार होकर अपनी अपनी जगह पर जा डटे। उनके चले जाने से व्यूह में जो जगहें खाली हो गई थीं वे भिर भर गई । व्यूह फिर जैसे का तैसा बन गया। इसके बाद दुर्योधन की आज्ञा से दुःशासन ने भीष्म को आगे किया और बहुत सी सेना लेकर युद्ध प्रारम्भ करने के इरादे से पाण्डवों की तरफ पैर बढ़ाया। यह देख कर पाण्डवों के व्यूह के दरवाजे की रक्षा करनेवाले भीमसेन ने मतवाले बैल की तरह बड़ी जोर से गजेना की और जो सेना उनके अधीन थी उसे लेकर शत्रुओं पर टूट पड़े। उस समय महासागर की तरह दोनों सेनायें प्रचण्ड वेग से परस्पर भिड़ गई। उनके सिंहनाद से श्राकाश-मण्डल गूंज उठा। जितने बड़े बड़े वीर और बड़े बड़े महारथी थे वे सब जब अपने अपने जोड़ के वीरों और महारथियों के सामने हुए तब थोड़ी देर तक वह कौरवों और पाण्डवों का दल चित्र में लिखा हुआ