पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२३८

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२१० सचित्र महाभारत [दूसरा खण्ड पर यह इलज़ाम लगाते कि तुम जान बूझ कर पाण्डवों को नहीं मारते-तुम उनकी तरफदारी करते हो। किन्तु महात्मा भीष्म दुर्योधन की अन्याय-पूर्ण बातों पर ध्यान न देते, वे गम्भीर वैराग्य में डूबे हुए चुपचाप अपना कर्त्तव्य पालन करते । युद्ध के छः दिन इसी तरह बीत गये। सातवें दिन भीष्म और द्रोण आदि को साथ लेकर दुर्योधन ने एक महाविकट व्यूह बनाया । उसके द्वार की रक्षा खुद प्रधान सेनापति भीष्म करने लगे। उसे देख कर पाण्डवों ने युधिष्ठिर को बीच में डाल कर शृङ्गाटक नाम का एक उससे भी अच्छा व्यूह, कौरवों के व्यूह के जवाब में, बनाया। पहले तो सेनाध्यक्षों ने मन ही मन युद्ध का ढङ्ग सेोचा। फिर परस्पर एक दूसरे को ललकार कर भिड़ गये। उस समय विजली के समान चमकनेवाले असंख्य अस्त्र-शस्त्रों से आकाश परिपूर्ण हो गया। उस समय की वह शोभा देखने ही योग्य थी। ___परम वीर भीष्म ने अपने रथ की कान फोड़नेवाली घरघराहट से युद्ध के मैदान को व्याप्त कर दिया। उसे सन कर पाराडवों की सेना के होश उड गये। भीष्म रथ पर चारों ओर हवा की तरह दौडने लगे। वेक्षण में यहाँ देख पडने लगे. क्षण में वहाँ। रोज की तरह अर्जन ने भी पितामह का सामना किया; पर उनके बुढ़ापे का खयाल करके उन्होंने कठोर युद्ध करना उचित न समझा । फल यह हुआ कि भीष्म की मार से पाण्डवों की अनगिनत सेना कटने लगी। यह देख कर भीमसेन को बड़ा क्रोध हुआ। भीष्म को रोकने के लिए वे खुद दौड़ पड़े। भीम को भीष्म का मुकाबला करने के लिए दौड़ते देख पाण्डवों की सेना बहुत प्रसन्न हुई। उसने बड़े जोर से सिंहनाद किया। उधर भीम को आते देख दुर्योधन को बड़ा रोष हो आया । अपने भाइयों को साथ लेकर वे खुद भीष्म पितामह की रक्षा करने चले । उस समय भीम ने बड़ा ही अद्भुत काम किया। धृतराष्ट्र के अनेक पुत्रों के मिल कर किये हुए आक्रमण को बार बार सहन करके भी, मौक़ा मिलते ही, उन्होंने भीष्म के सारथि को मार गिराया। सारथि के गिर जाने से रथ के घोड़े भड़क उठे। वे रथ को लेकर भागे। फल यह हुआ कि भीष्म को वे उस स्थान से दूर ले गये। ___ भीमसेन तो धृतराष्ट्र के पुत्रों पर पहले ही से जल रहे थे। उन्हें युद्ध के मैदान में पाकर उनके क्रोध की आग और भी दहक उठी। अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र चला चला कर वे दुर्योधन के भाइयों के सिर उतारने लगे। उनमें से कितने ही बात की बात में प्राणहीन होकर जमीन पर लोट गये । भीमसेन के किये हुए इस संहार को देख कर बचे हुए धृतराष्ट्र-पुत्र बे-तरह डर गये। उन्होंने समझा कि भीमसेन आज ही अपनी प्रतिज्ञा पूरी करके छोड़ेंगे। इससे डरे हुए हिरनों के झुंड की तरह वे वहाँ से भाग गये । बूढ़े राजा धृतराष्ट्र प्रतिदिन सायङ्काल सञ्जय से युद्ध का हाल बड़े दुःख से चुपचाप सुनते, किन्तु यह समझ कर किसी तरह धीरज धरते कि हमारे पास एक तो सेना अधिक है, दूसरे भीष्म की बराबरी करनेवाला एक भी योद्धा पाण्डवों की तरफ नहीं है; एक न एक दिन हमारी जीत जरूर ही होगी। परन्तु उस दिन भीमसेन के हाथ से अपने पुत्रों के मारे जाने का हाल सुन कर उनका धीरज छूट गया। वे घबरा कर सञ्जय से बोले :- हे सञ्जय ! आज हम कई दिन से पाण्डवों के साथ अपने पक्ष के वीरों के बहुत तरह के युद्ध का हाल तुम्हारे मुँह से सुन रहे हैं। परन्तु प्रतिदिन तुम पाण्डवों ही की जीत हुई बतलाते हो-प्रतिदिन तुम यही कहते हो कि पाण्डव खूब आनन्द मना रहे हैं। इससे आज हमें यह नि:संदेह मालूम होता है कि भाग्य हमारे पुत्रों के प्रतिकूल है। सञ्जय ने कहा :-महाराज ! आपके पक्षवाले कुछ कम वीर नहीं हैं। वे भी अद्भुत वीरता