पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२६

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पहला खण्ड]
सचित्र महाभारत
राजा बनाया। परन्तु राजा होने के कुछ ही दिनों पीछे एक गन्धर्व के हाथ से चित्राङ्गद को प्राण छोड़ने पड़े। उस समय चित्राङ्गद के छोटे भाई विचित्रवीर्य बालक थे। उन्हीं को भीष्म ने हस्तिनापुर के राजसिंहासन पर बिठाया । भीष्म की सहायता और उपदेश से विचित्रवीर्य्य राज-काज चलाने लगे।

जब विचित्रवीर्य बड़े हुए तब भीष्म ने उनके विवाह का विचार किया। इस समय उन्होंने सुना कि काशी के राजा की तीन कन्यायें-अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका--स्वयंवर की रीति से विवाह करने की इच्छा रखती हैं। महात्मा भीष्म माता की आज्ञा लेकर काशी पहुँचे । वहाँ उन्होंने देखा कि विवाह की इच्छा रखनेवाले बहुत से राजा देश-देशान्तर से आकर इकट्ठे हुए हैं । भीष्म ने सोचा कि जब इतने राजा इन कन्याओं से विवाह करना चाहते हैं तब कौन जाने हमारा मनोरथ सफल हो या न हो। इससे, उन तीनों कन्याओं को रथ पर बिठला कर सभा से उन्होंने जबरदस्ती हरण किया । जो राजा लोग स्वयंवर में आये थे उनसे यह बात न देखी गई। उन्होंने इससे अपना अपमान समझा । वे लड़ने पर मुस्तैद हो गये। भीष्म के साथ उन्होंने घोर युद्ध किया। किन्तु बालकपन में गङ्गा ने भीष्म को बहुत ही अच्छी युद्ध-शिक्षा दी थी। इससे एक भी राजा युद्ध में भीष्म को न जीत सका। सबको हार माननी पड़ी। भीष्म की युद्ध करने में चतुरता और अपनी रक्षा करने में कुशलता देखकर उनके शत्रुओं तक ने उन्हें बहुत बहुत धन्यवाद दिया। ऐसा कठिन काम करके उन तीनों कन्याओं को भीष्म हस्तिनापुर ले आये और उनके साथ विचित्रवीर्य का विवाह करने की तैयारी करने लगे। यह देख कर जेठी कन्या अम्बा, लज्जा से अपना सिर नीचा किये हुए, भीष्म के पास आई और बोली : हे वीर ! इसके पहले ही मैंने मन ही मन शाल्वराज के साथ विवाह करने का निश्चय कर लिया है। उन्होंने भी विवाह के लिए मुझसे प्रार्थना की थी। यदि स्वयंवर होता तो मैं उन्हीं के कण्ठ में वर-माला डालती। इसमें मेरे पिता की भी अनुमति थी। इस दशा में, इस समय, दुसरे के साथ मेरा विवाह कर देना क्या आपको उचित है ? यह बात सुन कर मारे चिन्ता के भीष्म बहुत व्याकुल हुए। अम्बा ने जो बात उनसे कही उसे उन्होंने यथार्थ माना। अन्त को मन में बहुत दुखी होकर उन्होंने अम्बा को आज्ञा दी कि तुम शाल्वराज के पास चली जावो । अम्बिका और अम्बालिका के साथ विचित्रवीर्य का शास्त्र-रीति से विवाह हुआ। इधर अम्बा एक वृद्ध ब्राह्मण और अपनी धाय के साथ शाल्वराज के पास उपस्थित हुई और उनसे इस प्रकार विनयपूर्वक बोली :___ मैंने पहले आप ही को मन ही मन अपना पति माना था। आपने भी इसलिए मुझसे प्रार्थना की थी। इसी से मैं आपके पास आकर आज उपस्थित हई हूँ। म परन्तु शाल्वराज ने अम्बा को दूसरे की स्त्री समझा । स्वयंवर में भीष्म के द्वारा अपनी हार स्मरण करके उसे क्रोध और दुःख भी हुआ। इससे कुछ मुसकराते हुए शाल्वराज ने अम्बा से कहा : तुमने स्वयंवर की सभा में जिसे पति बनाना पसन्द किया उसी के पास तुम्हें जाना चाहिए । तुमसे हमारा कोई सरोकार नहीं । तुम्हारे साथ हम विवाह करना नहीं चाहते। शाल्वराज के ऐसे कठोर वचन सुन कर अभिमान से भरी हुई अम्बा वहाँ से चल दी। किन्तु भीष्म के पास हस्तिनापुर लौट आने के लिए उसके मन ने गवाही न दी उधर अपने पिता के पास जाने को भी उसका जी न चाहा । पिता के यहाँ जाने में उसे लज्जा मालूम हुई । और कोई उपाय न देख कर अम्बा पिता को, भीष्म को, शाल्वराज को और स्वयं अपने को बार बार धिक्कारवाक्य कह कर, अनाथ की तरह गली गली रोती हुई घूमने लगी। स्वीर