पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२६७

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दूसरा खण्ड] युद्ध जारी २३५ तब द्रोण, कर्ण, कृप आदि छः रथियों ने उस असहाय बालक को चारों तरफ से घेर लिया। महावीर अभिमन्यु के हाथ से सैकड़ों सैनिक, घोड़े, हाथी, राजकुमार और योद्धा मारे गये; सैकड़ों रथ चूर हो गये; यहाँ तक कि महारथी राजा वृहन्नल को भी प्राण छोड़ने पड़े। अन्त में शत्रओं ने अधर्म युद्ध करके अभिमन्यु को रथ और शस्त्रहीन कर दिया। तब अभिमन्यु को बहुत थका हुआ और खाली हाथ देख कर दुःशासन के पुत्र ने गदा मारी । उसी से प्यारे अभिमन्यु की मृत्यु हुई । हे धनञ्जय ! तुम्हारे पुत्र ने अत्यन्त अद्भुत काम करके स्वर्ग-लोक को गमन किया है। युधिष्ठिर की बात समाप्त होने पर, अर्जुन हा पुत्र! बस इतना ही कह कर भूमि पर गिर पड़े। उन्हें मूर्छा आ गई; वे बेहोश हो गये। इस तरह अचेत और व्याकुल पड़े हुए अर्जुन को घेर कर सब लोग बैठ गये और बिना पलक बन्द किये परस्पर एक दूसरे को देखने लगे । कुछ देर में महावीर अर्जुन को होश आया। तब वे विषम ज्वर चढ़े हुए आदमी की तरह काँपने और जोर जोर से साँस छोड़ने लगे । उनको आँखों से आँसुओं की धारा बह चली। __इस तरह घड़ी आध घड़ी तक अभिमन्यु के वध से सम्बन्ध रखनेवाली बातें सोचते सोचते अजुन धीरे धीरे क्रोध से अधीर हो उठे। तब बड़े जोर से हाथ मल कर और पागल की तरह इधर उधर देख कर वे युधिष्ठिर से कहने लगे :- महाराज ! हम प्रतिज्ञा करते हैं कि कल ही हम जयद्रथ को मारेंगे। हमारे पहले उपकारों को भूल कर उस पापात्मा ने दुर्योधन का साथ दिया। इतना ही करके वह चुप नहीं रहा। आज वह अभिमन्यु की इस महाशोचनीय मृत्यु का भी कारण हुआ। इससे कल ही हम उसे इस संसार से सदा के लिए बिदा कर देंगे। हे पुरुषों में श्रेष्ठ जन ! जो कुछ हमने कहा वह यदि हम न करें तो पुण्यवान लोगों की सी हमारी गति न हो-हम स्वगे न जायँ। यदि हम जयद्रथ का वध न कर सकें तो हमारी वही गति हो जो माता पिता के मारनेवाले विश्वासघाती मनुष्यों की होती है। यदि कल दुरात्मा जयद्रथ के जीते सूर्य अस्त हो गया तो इसी जगह तुम लोगों के सामने जलती हुई चिता में घुस कर हम भस्म हो जायेंगे। महावीर अर्जुन ने यह प्रतिज्ञा करके अपने गाण्डीव धन्वा को इस जोर से जमीन पर पटका कि उससे जो शब्द हुआ उससे आकाश गूंज उठा। श्रीकृष्ण ने भी अपने पाञ्चजन्य नाम के शंख को बड़े जोर से बजा कर अर्जुन की उस भीषण प्रतिज्ञा का समर्थन किया । उन्होंने उस शंख-ध्वनि से यह सूचित किया कि अर्जुन ने उचित प्रतिज्ञा की; हमें वह बहुत पसन्द आई । कृष्ण को शंख बजाते देख अर्जुन ने भी देवदत्त शंख की ध्वनि की। इस पर चारों तरफ सेना में सैकड़ों-हजारों शंख, दुन्दुभी, तुरही और भेरी आदि बाजे बजने और वीर लोग सिंहनाद करने लगे। कौरवों को अपने जासूसों के द्वारा उस महा कोलाहल का कारण मालूम होने पर, सिन्धुराज जयद्रथ मारे डर के काँप उठे। बहुत देर तक मन ही मन चिन्ता करने के बाद सभा में जाकर वे कहने लगे :- हे भूपाल-वृन्द ! धनञ्जय ने हमें यमराज के घर की हवा खिलाने की प्रतिज्ञा की है। इससे आप लोग हमारे बचाव का कोई अच्छा प्रबन्ध करें; नहीं तो, राम आपका भला करे, लीजिए हम अपने घर जाकर खुद ही अपने प्राण बचाने का यत्न करते हैं। दुर्योधन तो अपना काम निकालने में बड़े ही चतुर थे। जयद्रथ को इस तरह डरा हुआ देख उन्होंने कहा :-