पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२६८

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सचित्र महाभारत [दूसरा खण्ड हे सिन्धुराज ! डरिए मत । इन सब वीरों के बीच में तुम्हारे रहने से कोई भी तुम्हारा कुछ न कर सकेगा। हम अपनी ग्यारह अक्षौहिणी सेना को आज्ञा देंगे कि और सब काम छोड़ कर कल वह सिर्फ तुम्हारी ही रक्षा करे। कर्ण, भूरिश्रवा, शल्य, सुदक्षिण, अश्वत्थामा, शकुनि श्रादि वीर तुम्हें बीच में डाल कर तुम्हारे चारों तरफ रहेंगे। तुम खुद भी रथी वीरों में एक श्रेष्ठ योद्धा हो। फिर अर्जुन की प्रतिज्ञा से डरने का क्या काम ? दुर्योधन जब जयद्रथ को इस तरह दिलासा दे चुके तब उनके साथ जयद्रथ द्रोणाचार्य की शरण गये। द्रोणाचार्य ने जयद्रथ को अभय-दान दिया-उन्होंने कहा, तुम निश्चिन्त रहो; हम तुम्हारी रक्षा करेंगे। वे बोले :- हे राजन् ! घबराने की कोई बात नहीं; हम तुम्हें अर्जुन से ज़रूर बचावेंगे। तुम्हारी रक्षा के लिए कल हम एक ऐसा व्यूह बनावेंगे जिसके भीतर अर्जुन कभी न घुस पावेंगे। तुम हरगिज़ न डरो; निडर होकर तुम खूब युद्ध करो। द्रोणाचार्य के इस प्रकार कहने से जयद्रथ का डर छूट गया। उन्होंने कहा :-बहुत अच्छा; तो हम ज़रूर युद्ध करेंगे। तब सारी कौरव-सेना अनेक प्रकार के बाजे बजाने और सिंहनाद करने लगी। इधर कृष्ण और अर्जुन को सोच के कारण उस रात को नींद नहीं आई। वे लोग शय्या पर पड़े पड़े बड़ी देर तक ठंडी साँसें भरते रहे । बहुत सोच-विचार के बाद अर्जुन ने कृष्ण से कहा :- हे केशव ! तुम अपनी बहन सुभद्रा और हमारी बहू उत्तरा को दिलासा देकर उनका शोक दूर करो। तब अर्जुन के घर के भीतर जाकर बुद्धिमान कृष्ण ने रोती और सिर पीटती हुई अपनी बहन से कहा :- हे सुभद्रा ! अच्छे कुल में जन्म लेनेवाले धर्मज्ञ क्षत्रिय को जिस तरह प्राण छोड़ना चाहिए, तुम्हारे पुत्र ने उसी तरह छोड़ा है। इससे तुम अब और शोक न करो। पिता के समान पराक्रमी अभिमन्यु को बड़ा भाग्यशाली समझना चाहिए; इसी से वीर जनों की गति को वह प्राप्त हुआ है । वीर लोग इसी तरह रण में वीरता दिखा कर प्राण छोड़ने की इच्छा रखते हैं। तुम वीर-माता, वीर-पत्नी, वीर-पुत्री और वीर-बान्धवा हो; इससे अभिमन्यु के स्वर्ग-गमन के कारण तुम्हें शोक न करना चाहिए । हे बहन ! बाल-हन्ता पापी जयद्रथ बन्धु-बान्धवों सहित अपने इस कर्म का फल बहुत जल्द पावेगा। इसी समय उत्तरा को साथ लिये हुए द्रौपदी वहाँ आकर उपस्थित हुई । उत्तरा को देख कर उन लोगों का शोक नया हो गया। वे फिर रोने और विलाप करने लगीं। उन्हें बाल बिखराये हुए जमीन पर पड़ी देख कृष्ण को बड़ा दुःख हुआ। उन्होंने अपनी शोक-विह्वला बहन के शरीर पर हाथ रख कर कहा :- हे सुभद्रा ! तुम्हारे पुत्र को पुण्य-लोक प्राप्त हुआ है । फिर उसके लिए इतना शोक क्यों ? हे पाञ्चाली ! तुम अपने शोक को रोक कर उत्तरा को समझायो। हे चन्द्रवदनी ! हमारी तो यही कामना है कि यशस्वी अभिमन्यु ने जो गति पाई है, अन्त-काल में हम सब लोग वही गति पावें! अकेले अभिमन्यु ने जैसे कठिन काम किये हैं, जी से हमारी यही इच्छा है कि हम सब लोग मिल कर वैसे ही काम कर सकें!