पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२६९

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दूसरा खण्ड ] युद्ध जारी २३७ सुभद्रा, द्रौपदी और उत्तरा को इस प्रकार समझा बुझा कर महात्मा कृष्ण फिर अर्जुन के पास लौट आये। आकर पहले तो उन्होंने जयद्रथ के वध के विषय में सलाह की; फिर कुछ देर के लिए सो गये। किन्तु, कृष्ण कुछ रात रहे ही जगे और अपने सारथि दारुक के पास जाकर रथ सजाने के विषय में उसे बहुत कुछ शिक्षा दी। दारुक ने कहा :- हे पुरुषोत्तम ! आप जिसके सारथि हुए हैं उसका काम अवश्य ही सिद्ध होगा। आपने जिस तरह आज्ञा दी है, सब काम उसी तरह होगा। आपको उसी तरह रथ तैयार मिलेगा। ईश्वर करे अर्जुन ही के विजयी होने के लिए आज प्रात:काल हो ! अर्जुन की भी रात, महादेवजी के दिये हुए अस्त्रों की चिन्ता करते करते, बीत गई। . प्रात:काल होने पर परम वीर द्रोणाचार्य ने अपने रथ के घोड़ों की रास खुद अपने ही हाथ में ली और बड़ी फुरती से सेना की देख-भाल करके व्यूह-रचना प्रारम्भ कर दी। जब व्यूह-रचना हो गई, और जिन सैनिकों को जहाँ रहना चाहिए वहाँ वे अपनी अपनी जगह पर डट गये, तब द्रोण ने जयद्रथ से कहा :- हे सिन्धुराज ! तुम छः कोस हमारे पीछे रहो । वहाँ एक लाख सेना लेकर कर्ण, अश्वत्थामा और कृप तुम्हारी रक्षा करेंगे। कई बड़े बड़े वीर अपनी अपनी ब्रिगेड लेकर बीच में रहेंगे। इससे तुम तक पहुँचने के पहले पाण्डवों को पहले तो हमारी सेना को पार करना पड़ेगा; फिर बीचवाले सेनाध्यक्षों की सेना में घुस कर उस तरफ़ जाना होगा; ओर सूर्यास्त के पहले हम सबको पार करके तुम तक पहुँच जाना पाण्डवों के लिए तो क्या ख़ुद देवताओं के लिए भी असम्भव है। द्रोण के इस कहने से जयद्रथ को बहुत कुछ धीरज हुआ । गान्धार देश के बहुत से योद्धाओं, और रिसाले के बहत से कवच-धारी सवारों को लेकर वे प्राचार्य के बतलाये हए स्थान पर उनके पीछे की तरफ़ गये। धृतराष्ट्र के पुत्र दुःशासन और दुर्मर्षण आगेवाली सेना में रहे। उसके पीछे द्रोणाचार्य ने सेना को शकट (बैलगाड़ी) के आकार में खड़ा करके व्यूह बनाया और अपने रथ को उसके द्वार पर खड़ा किया–अर्थात् व्यूह की द्वार-रक्षा का भार आपने खुद अपने ही ऊपर लिया। उसके पीछे भोजराज कृतवा और काम्बोजराज सुदक्षिण ने अपनी अपनी ब्रिगेड को चक्र के आकार में खड़ा करके जयद्रथ के पास पहुँचने का रास्ता रोका। ___ इस इतने बड़े व्यूह के पीछे, कई योजन का बीच देकर, सूचिनामक एक और बहुत ही गूढ़ व्यूह की रचना की गई। उसके मध्य भाग में कर्ण, दुर्योधन, शल्य, कृप आदि वीर जयद्रथ को बीच में डाल कर खड़े हुए । अद्भुत कौशल से भरे हुए इन दोनों व्यूहों को देख कर कौरवों ने मन ही मन इस बात का निश्चय कर लिया कि जयद्रथ अब बच गये और अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार अर्जुन चिता में जल मरे। . इधर पाण्डवों ने भी अपनी सेना का व्यूह बनाया। उसके बन चुकने पर युधिष्ठिर की रक्षा के लिए उचित प्रबन्ध करके अर्जुन ने कृष्ण से कहा :- हे वासुदेव ! जिस जगह दुर्मर्षण हैं वहीं पहले हमारा रथ ले चलो। इस हाथियों पर सवार सेना को पार करके हम शत्रुओं के व्यूह में घुसना चाहते हैं । अर्जुन के कहने के अनुसार कृष्ण के उस जगह रथ ले जाने पर कौरवों के साथ अर्जुन का महाविकट युद्ध आरम्भ हुआ। वर्षा-काल के मेघ पर्वतों के ऊपर जैसे पानी बरसाते हैं उसी तरह महा-पराक्रमी अजुन ने अपने वैरियों पर बाण बरसाना प्रारम्भ कर दिया। बात की बात में अर्जुन ने