पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२७५

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दूसरा खण्ड] युद्ध जारी मूल कारण है । पीछे से सात्यकि को अकेले हमने उनकी सहायता के लिए भेजां । इससे, दुबारा जलाई गई आग की तरह हमारा शोक और भी अधिक हो गया है। हमारी बात मानना यदि तुम अपना कर्तव्य समझते हो तो उनकी रक्षा के लिए तुम्हें तुरन्त ही खाना होना चाहिए। भीमसेन ने कहा :-महाराज ! बस, अब और वृथा शोक करने की जरूरत नहीं । लीजिए, हम चले । उनके पास पहुँच कर हम शीघ्र ही तुम्हें समाचार देंगे। इसके अनन्तर भाई के हित में तत्पर भीमसेन ने अस्त्र-शस्त्र लेकर शङ्क-ध्वनि की और सिंहनाद करके चल दिया । हवा के समान जानेवाले घोड़ों के रथ पर सवार होकर, कौरवों की सेना को मारते-काटते और राह रोकनेवालों को हटाते हुए, बड़े वेग से वे उस व्यूह की तरफ दौड़े जिसके द्वार की रक्षा द्रोण बड़ी सावधानी से कर रहे थे। ___ उन्हें आते देख द्रोण ने कहा :-हे भीमसेन ! आज हम तुम्हारे विपक्ष में हैं तुम्हारा मुक़ाबला करने को खड़े हैं । हमें जीते बिना तुम हमारी सेना में कदापि न घुस सकोगे। भीम इस बात से क्रुद्ध होकर बोले :-- ब्रह्मन् ! अब तक हम आपको अपना गुरु और बन्धु जानते रहे हैं। आज आप हम से वैरी के समान व्यवहार कर रहे हैं ! खैर, जो आपके जी में आवे करें । हम भोले भाले अर्जुन नहीं जो आप पर कृपा करेंगे । यदि आप हमारे शत्रु बनने की इच्छा रखते हैं तो हम भी आपके साथ शत्रु ही के समान व्यवहार करने को तैयार हैं। इतना कह कर महा पराक्रमी भीमसेन ने काल-दण्ड के समान गदा घुमा कर द्रोण पर फेंकी। उससे बचने का और कोई उपाय न देख द्रोण तत्काल रथ से कूद पड़े। वे तो बच गये, पर उस गदा के प्रचण्ड आघात से रथ, सारथि और घोड़े सब एक ही साथ नष्ट हो गये। तब धृतराष्ट्र की सन्तान चारों तरफ से दौड़ पड़ी और भीमसेन पर उसने आक्रमण किया। परन्तु, सामने आये हुए वीरों का अनायास ही संहार करके, भीमसेन ने कौरवों की सेना के इस तरह धुएँ उड़ा दिये जिस तरह कि प्रचण्ड पवन का वेग पेड़ों को तोड़ ताड़ और उखाड़ कर फेंक देता है। इस तरह मारते काटते भीमसेन शकटव्यूह के पिछले हिस्से तक पहुँच गये । वहाँ जाकर उन्होंने देखा कि भोज और काम्बोज-राज की ब्रिगेड के साथ सात्यकि घोर युद्ध कर रहे हैं। भीम को यह अच्छा मौका मिला। वे चुपचाप शकटव्यूह को पार करके निकल गये; किसी ने उन्हें न देखा । आगे जाते ही उन्हें अर्जुन का कपिध्वज रथ कृष्णार्जुन सहित देख पड़ा । तब उन्होंने वर्षाकाल के बादलों की गम्भीर गर्जना के समान भयङ्कर सिंहनाद किया। कृष्णार्जुन ने भीम की आवाज़ पहचान ली। भीम को अपनी सहायता के लिए आया देख वे बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने भीम के सिंहनाद का उत्तर हर्ष सूचक ध्वनि से दिया। यह शब्द सुनने पर युधिष्ठिर के आनन्द का पारावार न रहा। वे भीमसेन पर बहुत प्रसन्न हुए और उनकी प्रशंसा करके मन ही मन कहने लगे :- ओहो ! भीम ने सचमुच ही हमारी आज्ञा का पालन करके अर्जुन का कुशल-समाचार हमें ज्ञात कराया । शत्रओं पर विजय पानेवाले अर्जुन के सम्बन्ध में जो हम इतना घबरा रहे थे वह हमारी घबराहट अब दूर हो गई। हमारे मन में जो अनेक प्रकार की चिन्तायें हो रही थीं वे सब इस समय जाती रहीं। __व्यूह पार करके भीम को निकल जाते देख धृतराष्ट्र की सन्तान ने जीने की आशा छोड़ दी और उन पर पीछे से फिर आक्रमण किया । यद्यपि वे लोग बहुत अधिक थे तथापि महाबली भीम ने उनकी अधिकता की कुछ भी परवा न करके अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार एक एक को यमपुरी भेजना