पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२७६

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२४४ सचित्र महाभारत [दूसरा खराब श्रारम्भ कर दिया। इस प्रकार जब धृतराष्ट्र के इकतीस पुत्र मारे जा चुके तब भीम का सामना करने के लिए विलक्षण वीर कणे सूचि-व्यूह से निकल कर आगे आये। ___ . तब दोनों वीरों में महाघोर युद्ध होने लगा। कर्ण अस्त्र-विद्या में बहुत प्रवीण थे ही; उन्होंने भीम के चलाये हुए सारे अस्त्र-शस्त्रों को काट कर खण्ड खण्ड कर डाला। भीम ने देखा कि कर्ण के साथ धनुर्वाण लेकर युद्ध करना व्यर्थ है। इससे ढाल-तलवार लेकर वे रथ से उतर पड़े। किन्तु, कर्ण ने अस्त्र-द्वारा उनकी ढाल-तलवार भी काट डाली। इस तरह भीमसेन खाली हाथ हो गये। तब कर्ण उन पर बड़े वेग से दौड़े। अब भीमसेन क्या करें ? बचने का और कोई उपाय न देख कर कों के सामने से वे भाग गये और जहाँ मारे गये हाथियों के ढेर के ढेर पड़े थे वहाँ उनकी लोथों के बीच जा छिपे। इस समय यदि कर्ण चाहते तो भीमसेन को मार डालते; उन्हें मारने का यह अच्छा मौका था। परन्तु कुन्ती से जो उन्होंने प्रतिज्ञा की थी उसे याद करके उन्होंने भीम को छोड़ दिया। हाथियों की जिन लोथों के बीच में वे घुसे थे उन्हें काट काट कर कर्ण ने रथ के लिए पहले रास्ता बनाया; फिर भीमसेन के पास जाकर उन्होंने अपने धनुष की नोक से उन पर एक तड़ाका लगाया। यह करके कर्ण ने हँस कर कहा :- भीमसेन ! यही तुम्हारी वीरता है ! तुम खाक भी अस्त्र-विद्या नहीं जानते। युद्ध का मैदान तुम्हारे लिए उचित स्थान नहीं। तुम्हें रण-स्थल में क़दम ही न रखना चाहिए । हमारे साथ युद्ध करने से यही दशा होती है। भीम के बदन पर कर्ण के धनुष का स्पर्श होते ही भीम ने धनुष को पकड़ कर तोड़ दिया और उसके एक टुकड़े से कर्ण को मार कर तत्काल ही बदला ले लिया। उन्होंने कहा :-- रे मूढ़ ! खुद इन्द्र की भी हार और जीत दोनों ही होती हैं। हमने भी पहले बहुत दफ़े तुम्हें हराया है। फिर क्यों अपने ही मुँह अपनी वृथा बड़ाई बघारते हो ? यदि वीरता और बल का घमण्ड हो तो आओ हमारे साथ एक बार मल्ल-युद्ध करो। तब हम देखेंगे कि तुममें कितना बल और कितना पौरुष है। किन्तु कर्ण ने सबके सामने भीमसेन से मल्ल-युद्ध करना नामंजूर किया। उन्होंने वहाँ से अपने स्थान को चल दिया। इस बीच में भोज और काम्बोज लोगों को हरा कर सात्यकि अर्जुन के पास जाने लगे । कृष्ण ने उनको दूर से देख कर कहा :-- हे अर्जुन ! तुम्हारे प्यारे शिष्य सात्यकि बड़ी ही बहादुरी दिखा कर तुम्हारी सहायता के लिए आ रहे हैं। किन्तु अर्जुन इस बात को सुन कर प्रसन्न न हुए। उन्होंने कहा :- हे वासुदेव ! हमने सात्यकि को युधिष्ठिर की रक्षा का भार सौंपा था। तब फिर क्यों वे हमारे पास आ रहे हैं ? इसके सिवा थके हुए घोड़े और प्रायः चुके हुए शस्त्र लेकर इस शत्रुओं से परि- पूर्ण स्थान में आकर सात्यकि करेंगे क्या ? इस समय हमें सिर्फ जयद्रथ के वध की चिन्ता है। और कोई काम हमें न करना चाहिए । परन्तु सात्यकि के आने से अब हमें उनकी रक्षा भी करनी होगी, और इसमें समय का व्यर्थ नाश होगा । जान पड़ता है, धर्मराज की भी बुद्धि मारी गई है। द्रोण से न डर कर उन्होंने व्यर्थ ही सात्यकि और भीम को हमारे पास भेजा है। यह काम उनसे नहीं बना। इस तरह अर्जुन कह ही रहे थे कि सात्यकि को आगे बढ़ने से रोकने के लिए विकट वीर भूरिश्रवा दौड़ पड़े। भूरिश्रवा उस समय बड़े जोश में थे। पर सात्यकि बहुत थके हुए थे। मतवाले हाथी