पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२७८

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२४६ सचित्र महाभारत [ दूसरा खण्ड रहे थे। उनकी सारासार-विचार-शक्ति जाती रही थी-उचित और अनुचित का ज्ञान उस समय उन्हें न था। अतएव उन्होंने उस तरह चुपचाप बैठे हुए भूरिश्रवा का सिर तलवार से काट लिया। सात्यकि को ऐसा नीच काम करते देख चारों तरफ से लोग उनकी निन्दा करने लगे। अर्जुन को भी सात्यकि का यह काम अच्छा न लगा। मन ही मन भूरिश्रवा की प्रशंसा करते करते उन्होंने जयद्रथ की तरफ अपना रथ फेरा। जिस समय अर्जुन ने, इसके पहले, कौरवों की सेना को पार किया था, उस समय उनके दोनों चक्र-रक्षक उनके साथ उस सेना-समुद्र को पार न कर सके थे। परन्तु पीछे से युधामन्यु और उत्तमौजा, दोनों ही, कौरवों की सेना को पार कर गये और अर्जुन को ढूँढ़ते हुए धीरे धीरे सेना के बाहरी मार्ग से आकर वहाँ उपस्थित हुए। भीम और सात्यकि दोनों के रथ टूट गये थे, इससे इन चक्र- रक्षकों को देख कर वे बड़े प्रसन्न हुए । वे इनके साथ एक ही रथ पर सवार होकर अर्जुन के पीछे पीछे चले । तब जयद्रथ की रक्षा करनेवाल दुर्योधन, कर्ण, कृप, अश्वत्थामा आदि वीर और स्वयं सिन्धुराज युद्ध के लिए तैयार हुए। सारे दिन की चेष्टा के बाद जयद्रथ को सामने देख कर क्रोध से जलते हुए नेत्रों से अर्जुन मानो उन्हें जलाने लगे। दुर्योधन ने कहा :-हे कर्ण! अर्जुन के साथ युद्ध करने का अब तुम्हें अवसर मिला है। अतएव ऐसा उपाय करो जिसमें जयद्रथ की जान बचे । सूर्यास्त होने में कुछ ही देरी है। इससे यदि हम लोग अर्जुन के युद्ध में विघ्न डाल सकें तो जयद्रथ की प्राणरक्षा भी हो जाय और अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार अर्जुन के जल मरने से युद्ध में हमारी जीत भी हो जाय । उत्तर में कर्ण ने कहा :- महाराज ! इसके पहले ही महाबलशाली भीमसेन के साथ युद्ध करने में हमारा शरीर बे-तरह घायल हो चुका है । खैर, कुछ भी हो । आपही के लिए हम अब तक प्राण धारण किये हुए हैं । अतएव जहाँ तक हो सकेगा, हम अर्जुन को रोकने की चेष्टा करेंगे। इतने में, जयद्रथ के पास तक पहुँच जाने के लिए, अर्जुन ने कौरवों की सेना का संहार आरम्भ कर दिया। वीरों की भुजायें और मस्तक काट काट कर उन्होंने रुधिर की नदियाँ बहा दी। अन्त में जयद्रथ को अपने पीछे करके दुर्योधन, कर्ण, शल्य, कृप और अश्वत्थामा ने अर्जुन पर आक्रमण किया। इसके साथ ही कौरवों के अन्यान्य वीरों ने भी, सूर्य को लाल रङ्ग धारण करते देख बड़े उत्साह में आकर, अर्जुन पर अनन्त बाण-वर्षा आरम्भ कर दी। महावीर अर्जुन ने क्रोध में आकर पहले तो सबके आगे बढ़ कर युद्ध करनेवाले कर्ण के सारथि और घोड़ों को मार गिराया। फिर कर्ण के मर्म-स्थानों में बाण छेद कर उन्हें बे-तरह घायल किया। कर्ण का सारा शरीर लोहू से लदफद हो गया । उनका रथ बे-काम हो चुका था; इससे उन्हें अश्वत्थामा के रथ पर सवार होना पड़ा । तब अर्जुन अश्वत्थामा और मद्रराज के साथ युद्ध करने लगे। कौरवों ने इस बीच में बाणों की इतनी वर्षा की कि चारों तरफ अन्धकार छा गया। अर्जुन ने इस अन्धकार को दिव्यास्त्र द्वारा दूर कर दिया । इस प्रकार अपने शत्रओं के प्राण और यश दोनों का नाश करके महावीर अर्जुन युद्ध के मैदान में साक्षात् मृत्यु के समान विचरण करने लगे। इन्द्र के वन की प्रचण्ड गर्जना के समान गाण्डीव की टङ्कार सुन कर, तूफान आने से क्षुब्ध हुए सागर की तरह कौरवों के सैन्य-दल में बे-तरह खलबली मच गई। चारों तरफ सेना तितर-बितर हो गई। परन्तु प्रधान प्रधान कौरव-वीरों ने जब देखा कि सूर्यास्त होने में अब देर नहीं है तब खुशी के मारे वे फूल उठे और अपने अपने रथों को एक दूसरे से भिड़ा कर जयद्रथ की रक्षा करने में बड़ी