पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२७९

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दूसरा खण्ड] युद्ध जारी २४७ तत्परता दिखाने लगे। खूब जी कड़ा करके और खूब मन लगा कर उन्होंने अर्जुन के बाणों का निवारण प्रारम्भ कर दिया। इससे महावीर अर्जुन को जयद्रथ पर आक्रमण करने का जरा भी मौका न मिला। ___ इस संकट की अवस्था में अस्त होनेवाले सूर्य का बिम्ब बादलों में छिप गया। इससे कौरवों ने समझा कि दिन डूब गया । तब वे आनन्द के मारे उछलने और युद्ध में बे-परवाही करने लगे। उन्होंने सोचा, सूर्य तो अस्त हो ही गया, अब सावधानता रखने की क्या जरूरत ? उधर जयद्रथ भी आनन्द से फूल उठे और जिस रक्षित स्थान में थे उसे छोड़ कर छिपे हुए सूर्य की तरफ़ खुशी खुशी देखने लगे। ठीक बात क्या है सो अकेले कृष्ण ही की समझ में आई । एक-मात्र उन्हीं ने जाना कि सूर्य अभी अस्त नहीं हुआ। इससे उन्होंने तत्काल अर्जुन से कहा :- हे अर्जन ! यथार्थ में सूर्य्य डूबा नहीं। जरा देर के लिए वह छिप भर गया है। इस मौके को तुम हाथ से न जाने दो। तुरन्त ही जयद्रथ के सिर को धड़ से अलग कर दो। इस समय इस काम को तुम अनायास ही कर सकते हो। ___ इतनी बात सुनते ही अर्जुन जयद्रथ के रथ के सामने तत्काल ही दौड़ पड़े। जो लोग जयद्रथ की रक्षा करते थे वे पहले की तरह सावधान तो थे ही नहीं । इससे जयद्रथ को घेर कर खड़े होने का उन्हें अच्छा अवसर न मिला। अर्जुन को क्रोध से भरे हुए आते देख सैनिक लोग भी डर गये और उन्हें घुस जाने के लिए राह दे दी । तब वे अभिमन्यु की मृत्यु के कारणीभूत जयद्रथ के पास पहुँच गये और अपना ही होंठ अपने ही दाँतों से काटते हुए एक अत्यन्त भीषण बाण छोड़ा। बाज़ जैसे किसी चिड़िया को लेकर उड़ जाता है वैसे ही गाण्डीव से छूटा हुआ वह बाण जयद्रथ के मस्तक को ले भागा। इस बीच में बादल हट गया और सूर्य के लाल लाल बिम्ब का बचा हुआ अंश निकल आया। तब सबने देखा कि सूर्यास्त होने के पहले ही अर्जुन ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दी। . उस समय जीत की सूचना देने के लिए कृष्ण ने अपना पाञ्चजन्य शङ्ख जोर से बजाया और भीम ने महा घोर सिंहानाद करके पृथ्वी-आकाश एक कर दिया। उसे सुन कर युधिष्ठिर समझ गये कि जयद्रथ अब जीते नहीं हैं। इससे उन्हें परमानन्द हुआ । बाजे बजवा कर उनकी ध्वनि से उन्होंने दिशाओं को कँपा दिया। इसके बाद अर्जुन को हृदय से लगा कर कृष्ण ने कहा :- हे धनञ्जय ! हम लोगों को अपना भाग्य सराहना चाहिए जो तुम जयद्रथ को मार कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर सके । कौरवों की इस सेना में देवताओं के सेनापति खुद स्वामिकार्तिक भी यदि उतर पड़ते तो उन्हें भी व्याकुल होना पड़ता । तुम्हारे सिवा और किसी के भी हाथ से यह काम होने योग्य न था। अर्जुन ने कहा :-हे कृष्ण ! आप ही की कृपा से हम इस कठिन प्रतिज्ञा को पूरी कर सके हैं। जिसके सहायक श्राप हैं उसकी जीत होने में आश्चर्य ही क्या ? इसके अनन्तर, धीरे धीरे रथ चला कर कृष्ण ने पाण्डव-सेना की तरफ लौटना प्रारम्भ किया। युधिष्ठिर के पास रथ पहुँचने पर कृष्ण रथ से उतर पड़े और अत्यन्त आनन्दित होकर युधिष्ठिर के पैर उन्होंने छुए । कृष्ण बोले :- हे नर-श्रेष्ठ । हम लोगों के भाग्य से महावीर अर्जुन ने आज अपनी प्रतिज्ञा पूरी की। शत्र को मार कर आज वे अपनी महा भयङ्कर प्रतिज्ञा की फाँस से उद्धार हो गये।