पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२८४

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२५२ सचित्र महाभारत [ दूसरा खण्ड अर्जुन की प्रशंसा करके कोई रथ पर, कोई हाथी पर, कोई घोड़े पर और कोई जमीन पर लेट कर निद्रासुख लेने लगे। इसके अनन्तर, नेत्रों को आनन्द देनेवाले पाण्डु-वर्ण चन्द्रमा ने पूर्व दिशा की शोभा बढ़ा कर धीरे धीरे सारे संसार को अपनी चाँदनी से सफेद रंग का कर दिया। उजेला होते ही सब लोग जाग उठे और पिछली रात में फिर युद्ध के लिए तैयार हो गये । तब द्रोणाचार्य के पास जाकर दुर्योधन ने कहा :- हे आचार्य ! पाण्डवों को प्रसन्न करने के लिए आपने शत्रुओं को थकावट दूर करने का मौका दे दिया। आप पाण्डवों की रक्षा कर रहे हैं। इसी से उनकी जीत होती जा रही है और हमारे बल-वीर्य का नाश । अब आप आज्ञा दें तो आज हम दुःशासन, कर्ण और मामा शकुनि को लेकर अर्जुन को मारें। महावीर द्रोण को इस तरह के तिरस्कार-वाक्य सहन न हुए। उन्होंने क्रोध में आकर कहा :- हे दुर्योधन ! तुम बड़े ही निठुर और निर्दयी हो। जी-जान होम कर तुम्हारी भलाई करने की हम निरन्तर चेष्टा करते हैं। तिस पर भी तुम सन्देह करते हो। कुछ भी हो, इस शत्रता के मूल कारण तुम्ही हो। इससे अर्जुन का सामना करना तुम्हारा ही काम होना चाहिए। शकुनि निश्चय ही बड़े वीर हैं । वे अर्जुन को मारेंगे, इसमें आश्चर्य ही क्या है ! हम पाञ्चाल लोगों को मार कर अपना कर्तव्य-पालन करेंगे; तुम अर्जुन से युद्ध करो। . इसके बाद कौरवों की सेना के दो भाग हुए। एक भाग द्रोणाचार्य के, दूसरा दुर्योधन और कर्ण के अधीन हुआ। पाण्डवों के पक्ष की सेना से फिर घोर युद्ध आरम्भ हो गया। तब युधि- ष्ठिर ने कहा :- हे केशव ! अभिमन्यु की मृत्यु के सम्बन्ध में जयद्रथ का बहुत ही थोड़ा अपराध था। किन्तु, अर्जुन ने उन्हें मार कर कल की। हमारी समझ में तो यदि किसी प्रधान शत्र को मारने की सबसे अधिक जरूरत है तो अर्जुन को पहले द्रोण और कर्ण को मारना चाहिए। इन्हीं की मदद से दुर्योधन अब तक युद्ध कर रहे हैं। ____ यह कह कर युधिष्ठिर ने द्रोण पर आक्रमण किया। और और वीरों के साथ अर्जुन उनकी रक्षा करने लगे। सबसे आगे द्रपद और विराट द्रोण पर दौड़े। किन्तु द्रोण ने बिना विशेष परिश्रम के ही उनके चलाये हुए अस्त्र-शस्त्रों के टुकड़े टुकड़े कर डाले। तब विराट ने एक तोमर और द्रपद ने एक प्रास चलाया। इस पर द्रोण बेहद क्रुद्ध हुए और उन दोनों हथियारों को खण्ड खण्ड करके अपने तीक्ष्ण बाण द्वारा द्रपद और विराट दोनों को एक ही साथ यम के दरबार में हाजिरी देने भेज दिया। यह देख कर द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न ने प्रतिज्ञा की :- यदि द्रोण अाज हमारे हाथ से बच जाये तो हम मानो क्षत्रियों के लोक से भ्रष्ट हुए । तब एक तरफ से पाञ्चाल लोगों ने और दूसरी तरफ़ से अर्जुन ने द्रोणाचार्य पर शस्त्र चलाना प्रारम्भ किया। परन्तु देवराज इन्द्र ने ऋद्ध होकर जिस तरह दानवों का संहार किया था, उसी तरह वीरवर द्रोणाचार्य पाञ्चाल लोगों के प्राण-हरण करने लगे। तब पाण्डवों ने कहा :- जब प्राचार्य पर हाथ उठाने के लिए किसी तरह अर्जुन राजी नहीं तब इस में कुछ भी सन्देह नहीं कि हमें आचार्य से हार खानी पड़ेगी। यह सुन कर कृष्ण ने कहा :- हे अर्जुन ! तुम्हारे सिवा और किसी में इतना बल-पराक्रम नहीं कि द्रोणाचार्य को मार