पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२८५

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दूसरा खराड] युद्ध जारी २५३ सके। अतएव यदि और किसी के हाथ से प्राचार्य का नाश करना होगा तो बिना कोई कौशल रचे काम न चलेगा। यदि प्राचार्य के कान में यह बात पड़े कि अश्वत्थामा मारे गये तो वे जरूर ही शोक से व्याकुल होकर निस्तेज हो जायेंगे। इससे कोई उनसे कहे कि अश्वत्थामा मारे गये। ____ इस बात पर अर्जुन ने कान ही न दिया-उन्होंने उसे सुना ही नहीं। परन्तु, कृष्ण के कहने से युधिष्ठिर ने उनकी सलाह बड़े कष्ट से किसी तरह मान ली। खोज करने से मालूम हुआ कि अवन्तिराज के पास अश्वत्थामा नाम का एक हाथी है। अतएव सब बातों का निश्चय हो जाने पर भीमसेन ने इस हाथी को मार डाला। फिर वे मन ही मन बहुत लज्जित होकर द्रोण के पास गये और अश्वत्थामा मारे गये, अश्वत्थामा मारे गये-कह कर चिल्लाने लगे। यह महा-दारुण समाचार सुन कर शोक के मारे द्रोणाचार्य्य विकल और विह्वल हो उठे। किन्तु, अश्वत्थामा को परम पराक्रमी समझ कर पुत्र की मृत्यु पर उन्हें विश्वास न हुआ। इससे धीरज धर कर वे धृष्टद्युम्न के साथ फिर युद्ध करने लगे। उन्होंने मन में कहा कि यदि पुत्र के मरने की बात सच होगी तो उसका समर्थन और भी कोई जरूर ही करेगा। यह दशा देख कर कृष्ण ने फिर युधिष्ठिर से कहा :- हे राजन् ! यदि क्रोध के वशीभूत होकर और आधा दिन प्राचार्य इसी तरह युद्ध करेंगे तो निश्चय ही तुम्हारी सारी सेना मारी जायगी। अतएव तुम्हें अश्वत्थामा के मरने का समाचार फिर द्रोण को सुनाना चाहिए । बिना तुम्हारे ऐसा किये सेना को बचाने और द्रोण को मारने का और कोई उपाय नहीं। प्राण बचाने के लिए झूठ बोलने से पाप नहीं होता। भीम की बात पर आचार्य को विश्वास नहीं। किन्तु यदि तुम कहोगे तो जरूर विश्वास आ जायगा। युधिष्ठिर ने सोचा, भावी नहीं टलती-जो होने को होता है वह हुए बिना नहीं रहता। उन्होंने यह भी देखा कि प्राचार्य धर्म अथवा अधर्म का विचार न करके बड़ी ही निर्दयता से सेना का संहार कर रहे हैं। इससे सब बातों का विचार करके कृष्ण के कहने के अनुसार काम करने को वे तैयार हो गये। किन्तु जब वे द्रोण के पास गये तब झूठ बोलने से बे-तरह डरे। उधर जीतने की अभिलाषा भी उनके हृदय में बड़े जोर से जगी। अतएव पाप के डर और जीत की इच्छा के भूले में वे झोंके खाने लगे। अन्त में उन्हें एक युक्ति सूझी । अश्वत्थामा मारे गये--यह बात साफ साफ़ जोर से कह कर-हाथी शब्द उन्होंने धीरे से कहा। पहला वाक्य तो द्रोण ने सुन लिया; परन्तु पिछला शब्द उन्हें न सुन पड़ा। इस तरह भीम की बात का युधिष्ठिर के द्वारा समर्थन होने पर द्रोणाचार्य ने समझा कि अश्वत्थामा सचमुच ही मारे गये। इससे पुत्र-शोक के कारण उनका सारा शरीर सुन्न हो गया और उनकी चेतना-शक्ति प्राय: जाती रही। ऐसा अच्छा मौका हाथ आया देख तलवार को घुमाते हुए धृष्टद्युन्न रथ से कूद पड़े। उस समय अर्जुन को श्राचार्य पर दया आई। खबरदार, आचार्य पर हाथ मत छोड़ना-खबरदार आचार्य को मत मारना-कह कर चिल्लाते हुए धृष्टद्यन को रोकने के लिए वे उनकी ओर दौड़े। किन्तु उनके पहुँचने के पहले ही द्रपद-नन्दन धृष्टद्युम्न द्रोणाचार्य के पास पहुँच गये और उनके सिर को धड़ से अलग करके जमीन पर गिरा दिया। यह देख कर भुजा पर भुजा को मार भीमसेन ने धरती को कपा दिया। फिर परमानन्दित होकर धृष्टद्यन को हृदय से लगा कर उन्होंने कहा :- ___ हे शत्रमद्दन ! कर्ण और दुर्योधन की भी यही दशा होने पर हम तुम्हें समर-विजयी कह कर फिर गले से लगावेंगे। इसके अनन्तर प्रति दिन के नियम के अनुसार रात होने पर सञ्जय धृतराष्ट्र के पास गये और प्राचार्य के मारे जाने का हाल उनसे कहा । उस महा-शोककारक समाचार को सुन कर धृतराष्ट्र को इतना