पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२८८

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२५६ सचित्र महाभारत [ दूसरा खण्ड बाई तरफ भीमसेन, दाहिनी तरफ़ महा-धनुर्द्धर धृष्टद्युम्न, बीच में अर्जुन से रक्षा किये गये धर्मराज, और पीछे की तरफ नकुल तथा सहदेव विराजमान हुए। तब हाथियों, घोड़ों और मनुष्यों का वह कुरु-पाण्डव-सेना-समुद्र उमड़ कर परस्पर भिड़ गया। एक वीर दूसरे पर प्रहार करने लगा। योद्धा लोग अनेक प्रकार के शस्त्रास्त्रों द्वारा नर-मस्तक काट काट कर पृथ्वी को पाटने लगे । धीरे धीरे बड़े बड़े महारथी समर में एक दूसरे के सामने निकल आये और बहुत तरह के द्वैरथ-युद्ध उन्होंने प्रारम्भ कर दिये । अन्त में कर्ण इतने प्रवल हो उठे और उन्होंने इतनी वीरता दिखाई कि कोई भी उन्हें रोकने को समर्थ न हुआ। उनके विषम बाणों से छिद कर हाथियों के समूह के समूह इतने व्याकुल हो उठे कि महाभीषण चिग्घाड़ मार कर चारों तरफ़ दौड़े दौड़े फिरने लगे। पैदल सेना की दुर्दशा तो कुछ पूछिए ही नहीं। उसके तो दल के दल मर मर कर जमीन पर गिरने लगे। अपनी सेना की ऐसी दुर्गति देख नकुल से न रहा गया। उन्होंने कर्ण पर आक्रमण करके उनके सारथि को बाण से वेध दिया। इस पर वीर शिरोमणि कर्ण के कोप की सीमा न रही। उन्होंने पहले की भी अपेक्षा अधिक भयानक मूर्ति धारण की और सैकड़ों शरों से नकुल को तोप कर उनके धनुष को काट गिराया। जब तक नकुल दुसरा धनुष ले तब तक कर्ण ने उनके सारथि और घोड़ों को मार कर अस्त्र-शस्त्र समेत उनके रथ के टुकड़े टुकड़े कर डाले। नकुल बिना रथ और शस्त्रों के हो गये । इससे लाचार होकर उन्होंने भागने की ठानी। पर सूत-पुत्र कर्ण ने हँस कर उनका पीछा किया और अपने धनुष को उनके गले में डाल कर खींच लिया। इससे नकुल भाग न सके; उनका गला घुटने लगा, वे वहीं खड़े रह गये । तब कर्ण ने उनसे कहा :- हे माद्री-नन्दन ! तुम हमारे साथ युद्ध करने योग्य नहीं। तुम्हें ऐसे साहस का काम न करना चाहिए था। खैर, अब लज्जित होने से क्या है; किन्तु महा-पराक्रमी कौरवों के साथ फिर कभी युद्ध करने की चेष्टा न करना। महावीर कर्ण यदि चाहते तो नकुल को उसी क्षण मार डालते; परन्तु कुन्ती से उन्होंने जो प्रतिज्ञा की थी उसे याद करके नकुल को उन्होंने छोड़ दिया। उन्हें छोड़ कर कर्ण ने पाञ्चाल लोगों पर आक्रमण किया और चक्र की तरह चारों तरफ घूम घूम कर उनका नाश करने लगे। कुछ ही देर में कर्ण ने पाञ्चाल लोगों के रथों के पहियों; अारों और ध्वजाओं आदि को तोड़ ताड़ डाला। तब जीते बचे हुए रथी लोगों को उन्हीं टूटे रथों में डाल कर उनके सारथि भगा ले चले । ___ इस प्रकार प्रचण्ड पराक्रमी कर्ण के बाणों की मार से पाण्डवों की सेना के योद्धात्रों की दुर्गति हो गई। अब तक अर्जुन दूसरी जगह संसप्तक लोगों के साथ युद्ध कर रहे थे। पाण्डव-वीरों को बे-तरह भयभीत होकर भागते देख कृष्ण ने अर्जुन से कहा :- हे धनञ्जय ! तुम यह क्या खेल सा करके समय को वृथा नष्ट कर रहे हो। इन संसप्तक लोगों का बहुत जल्द नाश करके कर्ण के मारने की चेष्टा करो। कृष्ण की बात सुन कर महावीर अर्जुन उत्तेजित हो उठे और दानवों के मारनेवाले इन्द्र की तरह बल-विक्रम दिखला कर बचे बचाये संसप्तक लोगों पर टूट पड़े ! उन्होंने इस फुरती से उन लोगों को मारना प्रारम्भ किया कि कब उन्होंने तरकस से बाण खींचा, कब धनुष पर चढ़ाया, और कब छोड़ा-यह सब व्यापार बहुत ध्यान से देखने पर भी किसी को न दिखाई दिया। अर्जुन के हाथ की ऐसी आश्चर्य-जनक सफाई देख कृष्ण को भी बड़ा कौतूहल हुआ। इसके अनन्तर वहाँ की सारी कौरव-सेना के मारे जाने पर कर्ण के वध का मन ही मन निश्चय करके अर्जुन उनकी तरफ दौड़े। रास्ते में अश्वत्थामा और दुर्योधन ने उन्हें रोकने की चेष्टा की;