पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२६० सचित्र महाभारत [दूसरा खराब हम अर्जुन का, हमारे लिए डरने की कोई बात नहीं। इससे तुम्हारा और अधिक बकवाद करना व्यथ है। हमने दुर्योधन से वादा कर लिया है कि हम तुम्हारी बातें चुपचाप सुन लेंगे। इसी से तुम अब तक जीते हो। परन्तु, यदि, कदाचित् फिर तुमने ऐसी ही अनुचित बातें कहीं तो हमारी गदा तुम्हारे सिर के सौ टुकड़े कर देगी। शल्य ने कहा :-हे कणे ! जान पड़ता है तुम होश में नहीं हो। तुम तो मतवाल की तरह बातें कर रहे हो। बन्धुभाव के कारण, हम तुम्हारे मतवालपन का इलाज करने की चेष्टा में थे। बिना अपराध के ही तुम हम पर क्यों इतना गजेन-तर्जन करते हो ? हम तुम्हारं सारथि हैं; इससे हम अपना कर्तव्य समझते हैं कि शत्रओं के बली या निर्बली हाने आदि के विषय में तुम्हें उपदेश दें। इसी से हम कहते हैं कि कृष्णार्जुन को जो तुम तुच्छ समझते हो सो यह तुम्हारी नादानी है। जब तुम उन दोनों वीरों को एक रथ में बैठा हुआ देखोगे तब तुम्हारे मुँह से ऐसी बातें न निकलेंगी। गजा दुर्योधन ने देखा कि कर्ण और शल्य का विवाद बढ़ता जाता है। यह बात उन्होंने अच्छी न समझी। इससे मित्र-भाव से कर्ण को, और हाथ जोड़ कर मामा शल्य को. उन्होंने चुप किया। दुर्योधन के समझाने पर कर्ण ने अपने क्रोध को रोका और शल्य की किसी बात का उत्तर न देकर हँसते हुए उन्हें रथ चलान की आज्ञा दी। इधर कर्ण को कौरवों की सेना के आगे देख युधिष्ठिर ने शत्र-संहारक धनञ्जय से कहा :- हे अर्जुन ! यह देखो सूत-पुत्र कर्ण ने युद्ध के लिए कितने विकट व्यूह की रचना की है। इस समय तुम कर्ण के साथ युद्ध करो; हम कृप के साथ युद्ध करेंगे। भीमसेन दुर्योधन के साथ, नकुल वृषसेन के साथ, सहदेव शकुनि के साथ और सात्यकि कृतवर्मा के साथ युद्र करे। अर्जुन ने धर्मराज की बात सुनकर-तथास्तु--कहा। उन्होंने बड़े भाई की आज्ञा को सिर आँखों पर रक्खा और अपने सेना-दल को उसी आज्ञा के अनुसार काम करने के लिए हुक्म दिया। इसके बाद वे कौरव-सेना की तरफ बढ़े।। तब शल्य ने कहा :- हे कर्ण ! तुम जिनकी तलाश में थे वही विकट वीर अर्जुन, कृष्ण के द्वारा चलाये गये परमोत्कृष्ट रथ पर सवार, हमारी सेना को मारते काटते आ रहे हैं। देखो. मेघों की गर्जना के समान गम्भीर शब्द सुनाई पड़ता है; रथ के पहियों के आघात से धरती कैंप रही है, उड़ी हुई धूल का चंदोवा सा आकाश में तन गया है-अतएव इसमें सन्देह नहीं कि कृष्णार्जुन आ रहे हैं। उनके सिवा और कोई नहीं हो सकता। देख लो शत्रओं के हृदय में डर उत्पन्न करनेवाला, देखने में महा-भयङ्कर, बन्दर के चिह्नवाला अजुन का ध्वजाग्र फहराता चला आता है। अभी, ज़रा ही देर में, कृष्ण के साथ एक ही रथ में बैठनेवाले उस शत्र-सन्ताप कारी दुर्मद वीर का प्रभाव मालूम हो जायगा। यह सुनते ही क्रोध से लाल आँखें करके कर्ण ने उत्तर दिया :-- यह देखो, क्रोध से भरे हुए संसप्तक लोगों ने अर्जुन पर धावा किया और मेघों से घिरे सूर्य की तरह उनका रथ न मालूम कहाँ छिप गया। जान पड़ता है, हमारे पास तक पहुँचने के पहले ही उन्हें इस वीर-सागर में डूब कर वहीं प्राण छोड़ना पड़ेगा। शल्य ने कहा :-हे कर्ण ! हवा का रोक रखना, समुद्र को सुखा डालना और इंधन डाल कर आग को बुझा देना जैसे असम्भव है, युद्ध में अर्जुन का संहार करना भी वैसे ही असम्भव है। इसके बाद, अर्जुन के साथ युद्ध करने के पहले, कर्ण के बल का क्षय करने के निमित्त, मद्रराज शल्य ने फिर कर्ण से कहा:-