पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२९९

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दूसरा खण्ड ] अन्त का युद्ध २६७ अर्जुन ! इस दफे तुम मारे गये। सूत-पुत्र के द्वारा चलाये गये उस नागास्त्र को आकाश में जलते देख कृष्ण ने एक चाल चली। उनके घोड़े तो खूब सधे हुए थे ही। कृष्ण का इशारा पाते ही घुटने तोड़ कर वे जमीन पर बैठ गये । इससे रथ का अगला भाग अचानक झुक कर नीचा हो गया और अर्जुन का मस्तक तक कर मारा गया वह सास्त्र मस्तक पर न लग कर इन्द्र के दिये हुए सुदृढ़ किरीट पर गिरा । अर्जुन बच गये; किरीट चूर चूर हो गया। अर्जुन इससे ज़रा भी नहीं घबराये । सफेद कपड़े से उन्होंने अपने बाल बाँधे और छड़ी से छेड़े गये साँप की तरह ऋद्ध होकर दो बाण धनुष पर रक्खे । ये बाण यमराज के महा-भयङ्कर डण्डे के समान लोहे के थे। उनसे उन्होंने कर्ण की छाती छेद दी। बाण लगते ही घाव से रुधिर का पनाला बह निकला । कर्ण की मुद्री ढीली हो गई । धनुष और तर्कस छूट पड़े। कर्ण को मूर्छा आ गई । वे रथ पर गिर गये। अर्जुन तो बड़े धर्मात्मा थे। उन्होंने कहा-आतुर आदमी पर चोट करना उचित नहीं । इससे उन्होंने कर्ण को उस मूर्छित दशा में मारने की चेष्टा नहीं की। यह देख कृष्ण ने घबरा कर अर्जुन से कहा :- हे अर्जुन ! क्यों तुम चुप हो ? क्या तुम होश में नहीं ? वैरी के दुर्बल होने पर भी उसे मारने के लिए पण्डित और समझदार आदमी कभी समय की प्रतीक्षा नहीं करते। कृष्ण के उपदेश के अनुसार अर्जुन ने कर्ण पर छोड़ने के लिए फिर धनुष पर बाण चढ़ाया। इस बीच में कर्ण को होश हो आया। किन्तु पीड़ा के मारे परशुराम के सिखलाये हुए अस्त्र-शस्त्र चलाना वे भूल गये-उनकी याद ही उन्हें न आई वे बहुत ही अधीर और विह्वल हो उठे और हाथ उठा कर इस प्रकार आक्षेप-पूर्ण वचन कहने लगे :- धर्मात्मा लोग कहा करते हैं कि धर्म धार्मिक जनों की रक्षा करता है। हमारी तो धर्म में दृढ़ भक्ति है। फिर धर्म हमें क्यों छोड़ता है ? यह कह कर वे बहुत ही उदास हुए और बड़ी बे-परवाही से युद्ध करने लगे । युद्ध में उनका जी न लगने लगा। उनके हर काम में शिथिलता होने लगी । सूतपुत्र की यह दशा देख कृष्ण ने कहा :- हे अर्जुन ! कर्ण को मोह हो रहा है, उनके होश-हवास ठिकाने नहीं । उन्हें संहार करने का यही अच्छा मौका है। किन्तु, अर्जुन की बाण-वर्षा से कर्ण को फिर क्रोध हो आया । उनका उत्साह फिर बढ़ा और उन्होंने ब्रह्मास्त्र छोड़ना आरम्भ कर दिया। वे फिर प्रबल हो उठे। इसी समय उनके रथ का दाहिना पहिया कीचड़ में अचानक फँस गया। कर्ण का रथ उसमें धंस गया; वह आगे न बढ़ सका । यह अवस्था देख कर्ण की आँखों से आँसू बह चले। उन्होंने अर्जुन से कहा :- हे पार्थ ! दैव-योग से हमारे रथ का पहिया धरती में धंस गया है। अतएव जरा देर के लिए युद्ध बन्द रक्खो; हम उसे कीचड़ से निकाल लें। अर्जुन ! तुमने बड़े कुल में जन्म पाया है और क्षत्रियों के धर्म को तुम अच्छी तरह जानते हो। इसी से हम कहते हैं कि इस समय कायर की तरह हम पर चाट न करना। कर्ण की प्रार्थना के उत्तर में कृष्ण बोले :- ___ हे सूत-पुत्र ! यह हमारा अहोभाग्य है जो तुम्हें इस समय धर्म याद आ गया। नीच आदमियों पर जब विपद आती है तब वे अपने दुष्ट कर्म झट भूल जाते हैं और भाग्य की निन्दा करने लगते हैं । इस समय तुम्हारा ठीक यही हाल है। तुम्हारी सलाह से जुआ-घर में जब द्रौपदी का अपमान किया गया था तब तुम्हारा धर्म कहाँ था ? भोले भाले धर्मराज जब शकुनि के द्वारा जुए में अन्यायपूर्वक जीते