पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३०५

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दूसरा लण्ड ] अन्त का युद्ध लिया; किसी की छाती फाड़ कर जमीन पर गिरा दिया; किसी का और किसी तरह प्राण-नाश किया। अनेक तरह के अस्त्रों द्वारा उन्होंने एक एक करके सबको यम-लोक भेज दिया। इस प्रकार अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करके वे जोर जोर से आनन्द-ध्वनि करने लगे। अब तक कौरवों की बहुत सेना कट चुकी थी। कुछ ऐसी ही थोड़ी सी रह गई थी। सा वह भी बे-तरह घबराई हुई थी। उसकी दीन दशा देख कृष्ण ने अर्जुन से कहा :- हे अर्जुन ! अनगिनत शत्र मारे जा चुके हैं। हमारे योद्धाओं को जो काम दिया गया था उसे करके वे लोग अपने अपने दल में इस समय आनन्द से आराम कर रहे हैं। बची हुई थोड़ी सी सेना का व्यूह बना कर उसके बीच में खड़े हुए दुर्योधन इधर उधर देख रहे हैं; अपना एक भी अच्छा सहायक इस समय उन्हें नहीं देख पड़ता। इस कारण उनके चेहरे पर दीनता झलक रही है । जो कौरव-वीर मारे जाने से बच गये हैं उनमें से एक भी इस समय उनके पास नहीं। इससे युद्ध समाप्त करने का यही अच्छा अवसर है। इस मौके को हाथ से न जाने दो। दुर्योधन को मार कर बहुत काल से जलती हुई शत्रतारूपी आग को बुझाने में अब देर न करो। उत्तर में अर्जुन ने कहा:- मित्र ! भीमसेन ने धृतराष्ट्र के और सारे पुत्र को संहार किया है। अतएव दुर्योधन का भी उन्हीं के हाथ से मारा जाना उचित है । इस समय कोई पाँच सौ घोड़े, दो सौ रथ, एक सौ हाथी और तीन हजार पैदल सेना कौरवों की बाकी है । यह इतनी सेना अश्वत्थामा, कृपाचार्य, त्रिगतराज, उलूक, शकुनि और कृतवर्मा के अधीन है। ये लोग भी अब तक जीते हैं। किन्तु आज ये भी सेना-समेत काल के गाल में चले जायँगे, बचने के नहीं । हम प्रतिज्ञा करते हैं कि आज ही हम धर्मराज को बिना शत्र का कर देंगे। श्राप रथ चलाइए । यदि दुर्योधन भाग न जायेंगे तो उनकी भी मृत्यु आज हमारे ही हाथ से होगी। यह सुन कर कृष्ण ने अर्जुन का रथ दुर्योधन की सेना के सामने चलाया। इस समय प्रबल प्रराक्रमी सहदेव को अपनी प्रतिज्ञा याद आ गई। वे शकुनि पर दौड़े और बाणों से उन्हें बे-तरह पीड़ित किया। इतने में शकुनि के पुत्र उलूक उन्हें सामने देख पड़े । उनका सिर काट कर सहदेव कहने लगे :- हे सुबल के पुत्र ! क्षत्रियों के धर्म के अनुसार स्थिर होकर युद्ध करो। जुत्रा-घर में खुशी के मारे जो नाच नाच उठे थे उसका फल इस समय भोग करो। वीरवर सहदेव यह कह कर बड़े क्रोध से शकुनि पर अस्त्र-शस्त्र चलाने लगे। अपने ही सामने पुत्र के मारे जाने के कारण आँखों में आँसू भरे हुए शकुनि को विदुर का दिया हुआ वह उस समय का हितोपदेश याद हो पाया। पर यह समय रोते बैठने का न था। इससे क्षण भर शोक करके वे सहदेव के सामने हुए और उनके चलाये गये शस्त्रों से बचने की चेष्टा करने लगे। किन्तु, क्रोध से भरे हुए माद्री-तनय सहदेव का वेग उनसे किसी तरह न सहा गया । उन्होंने देखा कि बाण-युद्ध में हम सहदेव से पार नहीं पा सकते। इससे वे गदा और तलवार आदि हथियार चलाने लगे। परन्तु उनको भी सहदेव ने बीच ही में खण्ड खण्ड करके फेंक दिया। अन्त को शकुनि ने सोने से मॅढ़ा हुआ प्रास नाम का एक शत्र हाथ में लिया और उसे सहदेव पर फेंकने लगे। यह देख कर क्रोध से सहदेव जल उठे। उन्होंने उस प्रास-समेत शकुनि की दोनों भुजायें काट डाली और बड़े जोर से सिंहनाद किया। इसके बाद एक तेज़ बाण धनुष पर चढ़ा कर उन्होंने सारी अनीति और सारे अन्याय की जड़ शकुनि का मस्तक भी काट गिराया। • शकुनि को मारा गया देख कौरवों की सेना का कलेजा कॉप उठा। वह फिर चारों तरफ भागने लगी। इधर पाण्डवों के पक्षवालों ने बड़े जोर से शङ्ख बजाया। इसी समय इधर उधर भागती हुई