पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३१६

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२८४ सचित्र महाभारत [ दूसरा खण्ड सबको साती करके हम शपथ करते हैं कि चाहे जैसे हो आज हम इन सब अन्यायों का बदला लिये बिना न रहेंगे । कृपा करके तुम अब हमें ऐसा करने की आज्ञा दो। अश्वत्थामा के ऐसे वचन सुन कर दुर्योधन बहुत प्रसन्न हुए। कृपाचार्य को उन्होंने आज्ञा दी कि एक जल-पूर्ण कलश लाओ। उसके लाये जाने पर उन्होंने कृप से कहा :-- हे प्राचार्य ! आप यदि हमारी भलाई चाहते हों--यदि हम पर आपका कुछ भी प्रेम हो- तो अश्वत्थामा को सेनापति के पद पर नियत करो। कृपाचार्य ने इस बात का प्रसन्नतापूर्वक मान लिया और उस समय अश्वत्थामा को शास्त्र की रीति से सेनापति बनाया। तब द्रोणपुत्र अश्वत्थामा ने दुर्योधन को हृदय से लगाया और भीषण सिंहनाद करके दसों दिशाओं को कँपा दिया। इसके अनन्तर वे तीनों वीर वहाँ से खान हुए । रुधिर में डूबे हुए दुर्योधन ने वह घोर रात वहीं पड़े पड़े काटी। कृपाचार्य, अश्वत्थामा और कृतवर्मा ने वहाँ से चलकर पाण्डवों को आनन्द से कोलाहल करते सुना । तब उन्हें यह शङ्का हुई कि पाण्डव लोग कहीं उनका पता न पा जाय और उनके पीछे दौड़ न पड़ें। इससे वे लोग छिपे छिपे पूर्व की ओर चले। कुछ देर में उन्हें एक घना वन मिला। उसके पेड़ों पर चारों ओर से लतायें छाई हुई थीं। वहाँ बरगद का एक वृक्ष बहुत पुराना था। उसकी हजारों डालियाँ दूर दूर तक चली गई थीं। उसी के नीचे उन लोगों ने रथ खड़ा करके घोड़े खोल दिये और रात भर वहीं विश्राम करने का विचार किया। कुछ ही देर में रात हो गई। ग्रह और नक्षत्र निकल आय । उनस आकाश बहत ही शोभाय- मान देख पड़ने लगा। निशाचर लोग अपनी इच्छा के अनुसार सब कहीं आने जाने लगे। कृपाचार्य और कृतवर्मा के शरीर पर अनेक घाव थे। थक भी वे बहुत गये थे। इससे लेटने के साथ ही उन्हें नींद आ गई । परन्तु अश्वत्थामा क्रोध से पागल हो रहे थे। इससे बहुत थके होने पर भी उन्हें नींद न आई । बिना पलकें झपकाये ही वे पाण्डवों से बदला लेने का उपाय सोचने लगे। उनके सामने ही एक पेड़ पर बहुत से कौवे रहते थे। वे अपने अपने घोसलों में सुख से सो रहे थे। इतने में बादामी रङ्ग का एक बहुत बड़ा उल्लू वहाँ आया। उसने धीरे धीरे एक डाल से दूसरी डाल पर जाकर एक एक कौवे का संहार आरम्भ किया। किसी के पङ्ख उखाड़ डाले, किसी का सिर काट लिया, किसी के पैर तोड़ दिये । इस प्रकार उस उल्लू पक्षी ने सारे कौवों को मार डाला। यह घटना देख कर महा-तेजस्वी अश्वत्थामा मन में सोचने लगे :-- यह पक्षी हमें अपने शत्रओं का नाश करने की युक्ति बतला रहा है। आज हमने दुर्योधन के सामने बदला लेने की प्रतिज्ञा तो की है; किन्तु पाण्डव लोग बलवान् हैं, अस्त्र-शस्त्र भी उनके पास हैं, और जीत के मद से मतवाले हो रहे हैं। अतएव उनके सामने होकर युद्ध करने से हमें जरूर ही अपने प्राण देने पड़ेंगे, हम बचने के नहीं। हाँ, यदि, हम रात को चुपचाप उन पर आक्रमण करें तो काम सिद्ध होने में कोई सन्देह नहीं । ये पाण्डव महानीच हैं। पद पद पर इन्होंने हमारे साथ अन्याय किया है । ये लोग शठता और अनीति करने से कभी नहीं सकुचे । अतएव इनके साथ जैसा व्यवहार करना हमने विचारा है वह कदापि अनुचित नहीं। इनके साथ ऐसा ही करना चाहिए। ये इसी के पात्र हैं। ___ इस प्रकार मन में सोच कर अश्वत्थामा ने कृपाचार्या और कृतवर्मा को जगाया। परन्तु अश्वत्थामा की बात सुन कर उन्होंने लज्जा से अपना सिर नीचा कर लिया; उनकी बात का कुछ भी उत्तर उन्होंने न दिया। इस पर द्रोणपुत्र अश्वत्थामा आँखों में आँसू भर कर फिर कृपाचार्य से कहने लगे -