पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३२

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१२ सचित्र महाभारत [पहला खण्ड है । इस मन्त्र का उच्चारण करके जिस समय जिस देवता का तुम स्मरण करोगी उसी समय वह तुम्हारे पास आकर उपस्थित होगा और तुम्हें एक पुत्र देगा। . कुन्ती उस समय निरी बालिका थी। उसने इस मन्त्र को खेल समझा । महामुनि दुर्वासा उसके यहाँ से गये ही थे कि चपलता के कारण वह उस मन्त्र की परीक्षा करने लगी। सूर्य के नाम से उसने वह मन्त्र पढ़ना शुरू किया। मन्त्र के बल से, चारों दिशाओं को अपने प्रकाश से उज्ज्वल करते हुए सूर्य-नारायण उसी क्षण कुन्ती के सामने आकर खड़े हो गये । ऐसी आश्चर्यकारक घटना देख कर कुन्ती कुछ देर तक चुपचाप सशंक खड़ी रही। सूर्य्यदेवता को देख कर वह चकित हो गई। पीछे उसके ध्यान में आया कि मैंने व्यर्थ ही सूर्यदेव को बुलाया। उससे उसे बड़ी लज्जा हुई। तब हाथ जोड़ कर उसने इस प्रकार विनती की : हे भुवनदीपक देव ! मैंन बड़ी भूल की। मैंने बड़ा लड़कपन किया। एक ब्राह्मण के दिये हुए मन्त्र की परीक्षा करने के लिए मैंने आपको व्यर्थ कष्ट पहुँचाया। मुझसे बड़ा अपराध हुआ। मुझ अपराधिनी को आप क्षमा कीजिए। बालिका कुन्ती की यह विनती सुन कर सूर्यदेव ने मधुर वचनों में उसे धीरज दिया। वे बोले : सुन्दरी ! डरने की बात नहीं ! तुमने कोई अपराध नहीं किया । महर्षि दुर्वासा के दिये हुए जिस मन्त्र का तुमने उच्चारण किया है उसके प्रभाव से तुम्हारे एक बहुत ही रूपवान् पुत्र होगा। ___पुत्र होने की बात सुन कर कुमारिका कुन्ती को बड़ा दुःख हुआ। उसे कुण्ठित और दुखी देख सूर्यदेव, उसे धीरज देने के लिए, फिर उससे इस प्रकार बोले : हे भीरु ! हे अकारण डरनेवाली ! हमारे दिये हुए पुत्र के होने से तुम्हें कोई डर नहीं। तुम्हें इससे कुछ भी सङ्कोच न करना चाहिए । सङ्कोच की कौन बात है ? हम जानते हैं कि तुम अभी कन्या हो-कुमारी हो-तुम्हारा विवाह नहीं हुआ। पर, हमारा दिया हुआ पुत्र पाने से तुम्हारे कुँवारेपन को कुछ भी हानि न पहुँचेगी। हम तुम पर प्रसन्न होकर यह वर देते हैं कि तुम्हारा यह पुत्र दिव्य कुण्डल और अभेद्य कवच धारण करके जन्म लेगा। उसके बदन पर एक ऐसा कवच, जिरहबखतर, या कोट होगा जिसे कोई न तोड़ सकेगा-जिसे कोई हथियार न काट सकेगा। यह कह कर भगवान सूर्य आकाश में चढ़ गये और कुन्ती वहीं उन्हें देखती खड़ी रह गई। ___ कुछ समय पीछे कुन्ती के कवच और कुण्डल धारण किये हुए एक पुत्र हुआ। कुन्ती सोचने लगी, मैं इस पुत्र को लेकर क्या करूँ ? कहाँ रक्खू ? किस तरह इसका पालन करूं । परन्तु वह कुछ भी निश्चय न कर सकी। अन्त में, बहुत सोच-विचार करके उसने उस तत्काल जन्मे हुए बालक को नदी में डाल दिया। कुरुराज का रथ हाँकनेवाले, सारथि, अधिरथ उस समय उस नदी के किनारे थे। उन्होंने उस तेजस्वी बालक को नदी में बहते देखा। उसे देख उन्हें बड़ी दया आई। उन्होंने उसे नदी से निकाल लिया और अपनी स्त्री राधा को दिया। उसका नाम उन्होंने वसुसेन रक्खा। उसका पालनपोषण वे अपने ही पुत्र की तरह करने लगे। . इस घटना के कुछ ही समय पीछे कुन्ती विवाह-योग्य हुई । उसे यौवनावस्था प्राप्त हुई । उसकी सुन्दरता अब पहले की भी अपेक्षा बढ़ गई । यह समाचार चारों तरफ फैल गया। देश-देशान्तर के राजा उसके साथ विवाह करने की इच्छा प्रकट करने लगे। सबने अपने अपने दूत प्रार्थनापत्र ले-लेकर कुन्तिभोज के पास भेजे । कुन्ती एक, पर उसे पाने की इच्छा रखनेवाले राजे