पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३२८

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२९६ सचित्र महाभारत [ दूसरा खण्ड यह बात सुन कर युधिष्ठिर चिन्ता करते करते व्याकुल हो उठे; पर बोले नहीं। तब महामति अर्जुन ने कृष्ण से कहा :- हे मित्र ! धर्मराज शाक-सागर में डूबे हुए हैं । यदि तुम उनके उद्वार की चेष्टा न करोगे तो हम लोग इस विपद से पार न हो सकेंगे। अर्जुन की बात सुन कर कृष्ण धर्मराज के पास गये । युधिष्ठिर कृष्ण को लड़कपन ही से बहुत चाहते थे और उनकी बात कभी न टालते थे। इसलिए बुद्धिमान कृष्ण युधिष्ठिर का हाथ पकड़ कर नम्रभाव से कहने लगे :-- हे राजन् ! इस युद्धक्षेत्र में जितने वीर मरे हैं उन सबने क्षात्र धर्म के अनुसार सामने युद्ध करके प्राण त्याग किये हैं और वीरोचित परम पवित्र गति को प्राप्त हुए हैं । अतएव उनके लिए और शोक न करके क्षात्र धर्म के अनुसार तुम भी राजधर्म पालन करो :- ____तब युधिष्ठर ने पशोपेश छोड़ कर व्यासदेव से कहा :- - हे मुनिश्रेष्ठ ! यदि हमें राज्य करना ही पड़ेगा तो हमें आप ऐसा उपदेश दीजिए जिसमें हम अच्छी तरह प्रजा-पालन कर सकें और उचित रीति से राज्य का बोझ उठा सकें। इसके उत्तर में महर्षि द्वैपायन ने कहा :- बेटा ! राजधर्म-सम्बन्धी यदि अच्छे अच्छे उपदेश लेना चाहते हो तो पहले अपने नगर को जाव और प्रजा को धीरज देकर राज-काज सँभालो। फिर महात्मा भीष्म के निश्चित मृत्युकाल के पहले ही उनके पास जाना । उन्होंने बड़े बड़े महात्माओं से उपदेश लिया है; वही तुम्हारे सब सन्देह दूर करेंगे। तब यदुकुल-तिलक कृष्ण ने फिर कहा :-- हे धर्मराज ! शोक से घबरा जाना तुम्हारे लिए अनुचित है । महर्षि व्यास ने जैसा कहा वैसा ही करो । भाइयों, मित्रों और बुद्धिमती द्रौपदी की इच्छा के अनुसार पहले राजधानी में प्रवेश करो। फिर ठीक समय पर पितामह के पास जाकर जानने योग्य बातों के विषय में उपदेश ग्रहण करना । इस पर धर्मराज सब लोगों की बात न टाल सके । वे उठ खड़े हुए और नक्षत्रों से घिरे हुए चन्द्रमा की तरह शोभायमान होकर नगर में जाने के इरादे से सबसे पहले भाइयों के साथ उन्होंने देवताओं की पूजा की। ८-पाण्डवों का एकाधिपत्य पाण्डवों ने हस्तिनापुर जाने की सब तैयारी कर ली। सोलह सफेद घोड़ों से खींचे जानेवाले एक बहुत बड़े रथ पर धर्मराज सवार हुए। महा मराक्रमी भीमसेन उनके सारथि बने । महावीर अर्जुन ने उनके मस्तक पर सफेद छाता लगाया । नकुल और सहदेव उनके दोनों तरफ बैठ कर चॅवर हिलाने लगे। इस तरह पाँचों भाइयों के रथ पर बैठ जाने पर धृतराष्ट्र के पुत्र युयुत्सु, और कृष्ण, तथा सात्यकि अलग अलग रथों पर सवार होकर उनके पीछे पीछे चले। गान्धारी के साथ अन्धे राजा धृतराष्ट्र पालकी पर सबके आगे चले । कुन्ती, द्रौपदी आदि स्त्रियाँ भी विदुर की रक्षा में तरह तरह की सवारियों पर साथ साथ रवाना हुई। इस तरह परिवार से घिरे हुए धर्मराज हस्तिनापुर की ओर चले।