पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३३१

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दूसरा खण्ड ] पाण्डवों का एकाधिपत्य २९९ महात्मा भीष्म सूर्य की तरह अस्त हो रहे हैं । ये महात्मा चारों वर्षों के धर्म बहुत ही अही तरह जानते हैं। इसलिए इनके मग्ने और स्वर्ग जाने के पहल तुम लोग जानने योग्य बातें इसे पूछ कर अपने अपने सन्देह दूर कर लो । भगवान् की कृपा से इस समय इनका सारा शारीरिक और मानसिक क्लेश दूर हो गया है। ___महार्ष नारद ने जब यह बात कही तब सब लोग भीष्म की तरफ बढ़े और एक दूसरे का मुँह देखने लगे। अन्त में युधिष्ठिर ने कृष्ण से कहा :- __ हे कृष्ण ! तुम्हारे सिवा ऐसा कोई नहीं जो पितामह से कुछ पूछ सके। हम लोगों में तुम्ही धम्ज्ञ हो। इसलिए तुम्हीं इनसे धर्म की बातें पूछो। तब भीष्म का प्रण म करके कृष्ण ने कहा :- हे कौरवनाथ ! अपने गुरु अपने कुटुम्बियों और अपने बधु-बान्धवों को मारने के कारण धर्म ज युधिष्ठिर बड़े लज्जित हैं । इसलिए आपके सामने आने का साहस नहीं करते । भीष्म ने उत्तर दिया :- हे वासुदेव ! दान देना. वेद पढ़ना और तपस्या करना जैसे ब्राह्मण का धर्म है वैसे ही युद्र में शत्रओं का मारना क्षत्रियों का धर्म है । मनु ने कहा है कि ललकारे जाने पर क्षत्रिय को जरूर ही लड़ना चाहिए । युद्र ही के द्वारा क्षत्रिय को यश धर्म और स्वर्ग मिलता है। भीष्म की बात सुन कर धर्मराज को धीग्ज हुआ। तब पास जाकर उन्होंने बड़ी नम्रता से उनके पैर छुवे । धनुर्धारियों में श्रेष्ठ, पग्भ उदार, भीष्म ने भी प्रसन्न-मन से धर्मराज का माथा तूंगा और उनको बैठने की आज्ञा देकर कहा :- धर्मगज ! तुम डरो नहीं। धर्म-सम्बन्धी जो जो बातें तुम जानना चाहते हो वे हमसे तुम बेखटके पूछ सकते हो। तब युधिष्ठिर बोले :- हे पितामह ! सब लोग हमसे राज्य करने को कहते हैं। परन्तु यह काम हमें बहुत कठिन जान पड़ता है। इसलिए इस विषय में हमें उपदेश दीजिए। थोड़ा बहुत शास्त्र-ज्ञान जो हमने प्राप्त किया है वह आपही से प्राप्त किया है । इसलिए अब बताइए कि हमको क्या करना चाहिए। धर्मराज का प्रश्न सुन कर भीष्म ने उनसे कहा :- बेटा ! राजों के लिए राज-धर्म ही सब धम्मो से श्रेष्ठ है। इसी धर्म से मनुष्य-समाज सधा हुआ है। जैसे लगाम से घोड़ा सधा रहता है वैसे ही राजधर्म के प्रभाव से मनुष्य अपने अपने धर्म की मर्यादा के भीतर रहता है । हे धर्मराज ! यदि इस धर्म के अनुसार तुम प्रजा पालन कर सको तो निश्चय ही तुम्हें बड़ा पुण्य होगा और तुम बहुत यशस्वी भी होगे । इसके सिवा, तुम्हें कोई क्लेश न होगा। तुम सुख से और स्वच्छन्दतापूर्वक रहोगे। इस तरह युधिष्ठिर को राज्य करने के लिए उत्साहित करके भीष्म राजधर्म के विविध कर्त्तव्यों के सम्बन्ध में उन्हें कई दिनों तक उपदेश देते रहे । पाण्डव लोग रात को घर चले आते और दूसरे दिन सबेरे भीष्म के पास फिर जाकर अपने अपने संशय निवारण करते। बहुत दिनों तक महावीर भीष्म राजधर्म, आपद्धर्म, मोक्षधर्म, और शासन करने की विधि के सम्बन्ध में उपदेश देकर जब चुप हो गये तब उपस्थित राजों और महर्षियों में थोड़ी देर के लिए सन्नाटा छा गया। बाणों की सेज पर पड़े हुए भीष्म से उस समय व्यासदेव बोले :- हे भीष्म ! आपकी कृपा से कुरुराज युधिष्ठिर के सब सन्देह दूर हो गये । आपकी आज्ञा के