पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३३६

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३०४ सचित्र महाभारत [दूसरा लए पिता ! कौरव पाण्डवों के युद्ध में क्षत्रियों ने बड़े बड़े अद्भुत काम, न मालूम कितने, किये हैं। यदि सौ वर्ष तक बराबर उनका हाल बताया जाय तो भी पूरा न होगा। इसलिए हम उन्हें बड़े संक्षेप से वर्णन करते हैं; सुनिए। यह कह कर भीष्म, द्रोण, कर्ण आदि के मारे जाने की तरह तरह की जितनी बड़ी बड़ी घटनायें कुरुक्षेत्र के युद्ध में हुई थीं सब कृष्ण ने कह सुनाई। पर इस डर से कि कहीं बूढ़े वसुदेव नाती के लिए शोकातुर न हो उठे उन्होंने अभिमन्यु का ज़िक्र न किया। सुभद्रा वहाँ बैठी थीं। उन्होंने देखा कि अभिमन्यु ने युद्ध में जो असाधारण वीरता दिखाई थी उसका वर्णन नहीं किया गया। इससे वे बोल उठी :-- भाई ! तुमने हमारे अभिमन्यु का तो कुछ भी हाल न कहा। यह कह कर वे जमीन पर गिर पड़ीं । कन्या को इस प्रकार व्याकुल होते देख असल बात वसुदेव समझ गये। इससे वे भी मूर्च्छित हो गये। थोड़ी देर बाद होश में आकर वे कृष्ण से कहने लगे:- पुत्र ! सत्यवादी होकर भी तुमने यह बात हमसे क्यों छिपाई ? हमारे नाती को शत्रुओं ने कैसे मारा ? हाय ! अभिमन्यु को मरा सुन कर भी जब हमारी छाती नहीं फटती तव यह निश्चय है कि समय आने के पहले मनुष्य नहीं मरता । हमारे प्यारे अभिमन्यु ने मरते समय अपनी माता के और हमारे लिए क्या कहा था ? युद्ध में पीठ दिखा कर तो वह शत्रुओं के हाथ से नहीं मारा गया ? वृद्व वसुदेव के इस तरह विलाप करने पर कृष्ण ने दुखी मन से उन्हें धीरज देकर कहा :- पिता ! अभिमन्यु युद्र छोड़ कर कभी नहीं भागा, उसके मुख का भाव कभी नहीं बदला। उस महावीर ने युद्ध में सैकड़ों राजों को मार गिराया । यदि एक एक वीर उससे लड़ता तो उसे कभी न हरा सकता । वज्रधारी इन्द्र भी उसे अकेले न मार सकते । किन्तु जिस समय अर्जुन संसप्तक लोगों से लड़ रहे थे उस समय द्रोण आदि सात योद्धाओं ने मिल कर बाणों से उसे ढक दिया और दुःशासन के पुत्र ने उसको मार डाला। आपका प्यारा नाती ऐसे अलौकिक युद्ध में मर कर निश्चय ही स्वर्ग- लोक गया है । अतएव उसके लिए शोक न कीजिए। यह कह कर कृष्ण ने जब अभिमन्यु की वीरता के सब काम मिलसिलेवार कह सुनाये तष वसुदेव ने शोक छोड़ कर नाती का श्राद्व किया। भानजे का औधदैहिक कार्य समाप्त होने पर कृष्ण ने भी ब्राह्मणों को बहुत सा धन देकर सन्तुष्ट किया। इसके बाद सब यादव-वीरों ने भी अभिमन्यु का द्धि करके शोक मनाया। है-अश्वमेध यज्ञ कृष्ण के चले जाने पर एक दिन युधिष्ठिर ने भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव को खुला कर कहा :- भाई ! हम लोगों के परम गुरु व्यासदेव, पितामह भीष्म और महा-बुद्विमान् कृष्ण ने यज्ञ करने के सम्बन्ध में जो कुछ कहा था उसे तुमने सुना ही है । इसलिए उनके आज्ञानुसार यज्ञ करने की हमारी बड़ी इच्छा है । महात्मा वेदव्यास ने राजा मरुत का धन ले आने की आज्ञा हम लोगों को दी थी। यदि तुम उसे ला सको और लाना चाहो तो सब काम सिद्ध हो सकता है।