पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३४०

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३०८ सचित्र महाभारत [दूसरा खण्ड यह देखो घोड़ा जाता है । यह देखो गाण्डीव लिये हुए अर्जुन भी उसके पीछे पीछे जाते हैं। ईश्वर करे इनके जाने और लौटने में कोई विघ्न न पड़े। किसी किसी ने कहा : भीड़ के कारण हम लोग अर्जुन को देख नहीं पाते । सिर्फ उनका प्रसिद्ध गाण्डीव धन्वा देख पड़ता है। जो हो, भगवान् करे रास्ते में कोई विन्न न हो। यह निश्चय है कि वे घोड़ा लेकर ही लौटेंगे। हम लोग उस समय उनको अच्छी तरह देखेंगे। यज्ञ का घोड़ा पहले उत्तर की तरफ़ चला । बहुत से छोटे छोटे राजा अर्जुन से लड़ने आये। वे सब परास्त हुए । कोई अर्जुन का कुछ भी न बिगाड़ सका। तब पूर्व की ओर घूम कर वह घोड़ा त्रिगर्त्त देश में पहुँचा। वहाँ के राजकुमारों ने अस्त्र-शस्त्रों से सज कर घोड़े को घेर लिया। महावीर अर्जुन को युधिष्ठिर की बात याद थी। इसलिए पहले तो उन्होंने उन लोगों को विनयपूर्वक समझा बुझा कर लड़ने का इरादा छोड़ देने की प्रार्थना की । पर अर्जुन की बात न मान कर उन्होंने उन पर धावा किया। अर्जुन ने उन लोगों को बाणों से ढक कर त्रिगतराज सूर्यवर्मा को हरा दिया । तब दूसरे राजकुमार आगे बढ़ कर लड़ने लगे। महावीर केतुवा ने आश्चर्यजनक फुरतीलेपन से अर्जुन को बाण से ढक दिया। यह देख कर वे बड़े प्रसन्न हुए और उसे निरा बालक समझ कर उसके साथ नरमी से युद्ध करने लगे। - इस समय महावीर केतुवर्मा ने अर्जुन के हाथ पर एक तेज़ बाण मारा। बाण लगा और अर्जुन का हाथ घायल हो गया। इससे वे बेहोश हो गये और गाण्डीव उनके हाथ से छूट कर जमीन पर गिर पड़ा । इस पर केतुवा की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा । वे जोर से हंस पड़े। यह देख अर्जुन को बड़ा क्रोध आया। उन्होंने हाथ से बहते हुए रुधिर को पोंछ कर वज्र की तरह लोहे के बाणों से शत्रुओं के अठारह योद्धा मार गिराये । तब त्रिगर्त लोग हतोत्साह होकर अर्जुन से बोले : हे अर्जुन ! आज से हम लोग आपके दास हुए। अर्जुन ने उनसे कहा, अच्छी बात है। कृपा करके यथासमय यज्ञ में आना । यह कह कर फिर वे घोड़े के पीछे पीछे चले। इसके बाद वह घोड़ा प्रागज्योतिष देश में पहुँचा। वहाँ भगदत्त के पुत्र महाराज वञदत्त घोड़े को पकड़ कर अर्जुन से घोर युद्ध करने और कहने लगे : हे पाण्डुपुत्र ! अब तुम अधिक दिन न जीते रहोगे । हम शीघ्र ही तुम्हें मार कर अपने पिता के ऋण से उद्धार होंगे। - इसके बाद अर्जुन ने वञदत्त के हाथी को मारने की चेष्टा की । इस पर वञदत्त ने पहाड़ की तरह उस हाथी को अर्जुन की तरफ बढ़ाया। उस उतने बड़े हाथी को समीप श्राता देख अर्जुन को बेहद क्रोध आ गया। उन्होंने आग की तरह जलता हुआ एक ऐसा बाण मारा कि उस हाथी का हृदय फट गया और वह, बिजली से तोड़े गये पहाड़ की तरह, धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ा। तब महावीर अर्जुन ने वञदत्त से कहा : हे वञदत्त ! युधिष्ठिर ने हमसे कह दिया है कि जहाँ तक बने किसी राजा को युद्ध में न मारना। इसी लिए हम तुमको नहीं मारते । यज्ञ के दिन हस्तिनापुर आकर तुम्हें उत्सव में शामिल होना पड़ेगा।